लखनऊ। उत्तर प्रदेश ने भाजपा को 2014 में 71 लोकसभा सीटें दी थीं, तो 2019 में भी उसके 62 सांसद यहीं से हैं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, स्मृति ईरानी और मुख्तार अब्बास नकवी जैसे नेता पार्टी के कद्दावर नेता यहीं से हैं। उत्तर प्रदेश की वर्तमान विधानसभा में भी उसके 312 विधायक जीतकर आये थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं कद्दावर जमीनी नेता माने जाते हैं। भाजपा का दावा है कि पिछले 4.5 साल में बेहतर कामकाज कर उन्होंने जनता पर अच्छी पकड़ बनाई है। भाजपा उन्हीं के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ने की भी तैयारी कर रही है।
सवाल यह है कि जिस राज्य में भाजपा इतनी मजबूत है, वहां उसे अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए जितिन प्रसाद जैसे ऐसे बाहरी नेताओं पर भरोसा क्यों करना पड़ रहा है जो लगातार तीन बार से अपना चुनाव हार रहे हैं। भाजपा को ऐसा क्यों लगता है कि ये नेता उसके लिए सफल साबित होंगे। खबर तो यहां तक हैं कि कांग्रेस के दो अन्य दिग्गज नेता भी अभी इसी कतार में हैं और वे भी जल्दी ही भाजपा का दामन थाम सकते हैं।
बाहरी नेताओं को ‘आयात’ कर चुनाव जीतने की भाजपा की रणनीति कुछ राज्यों में सफल तो कुछ जगहों पर असफल साबित हुई है। उत्तर प्रदेश, बिहार, असम जैसे राज्यों में भाजपा की यह नीति सफल रही है तो वहीं दिल्ली और पश्चिम बंगाल में उसे इसका नुकसान भी हुआ है। दिल्ली में किरण बेदी को चुनाव की कमान सौंपने से पार्टी कार्यकर्ताओं में गहरी नाराजगी पैदा हुई और उन्होंने पार्टी का साथ नहीं दिया। लिहाजा पार्टी चुनाव हार गई।
पश्चिम बंगाल में भी भाजपा की यह नीति कारगर नहीं रही जहां तृणमूल कांग्रेस के सैकड़ों नेताओं को लाने के बाद भी भाजपा बुरी तरह हार गई। अब मुकुल रॉय जैसे नेता घर वापसी कर उसके लिए अलग मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। सवाल यह है कि ऐसे में पार्टी अपने कार्यकर्ताओं पर भरोसा क्यों नहीं करती?
उत्तर प्रदेश भाजपा के एक शीर्ष नेता के मुताबिक़ पार्टी के अंदर कार्यकर्ताओं के बीच केन्द्रीय नेतृत्व के इन फैसलों को लेकर गहरी नाराजगी है। उन्हें यह लग रहा है कि पार्टी के लिए लगातार संघर्ष वे करते हैं, लेकिन जब मुख्य अवसर आता है तो दूसरे दलों से नेताओं को लाकर यहां बिठा दिया जाता है। पिछली बार भी इसी तरह ब्रजेश पाठक और रीता बहुगुणा जोशी जैसे लोगों को बाहर से लाकर उनके ऊपर थोप दिया गया था तो इस बार भी इसकी शुरुआत हो चुकी है।
नेता ने अपनी गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि अगर किसी भी समाज का पार्टी में प्रतिनिधित्व नहीं था, तो पिछले साढ़े चार सालों में उस समाज का प्रतिनिधित्व बढ़ाकर उसकी भागीदारी बढ़ाई जा सकती थी, उस वर्ग से पार्टी का बड़ा नेता खड़ा किया जा सकता था, लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया। अब जब चुनाव सिर पर आ गये हैं, तब पार्टी बाहर से नेताओं को लाकर समाज का गुस्सा कम करने की कोशिश कर रही है। नेता के मुताबिक पार्टी को इस सोच का नुकसान हो सकता है।
समाजवादी पार्टी की वरिष्ठ नेता जूही सिंह ने अमर उजाला से कहा कि सच्चाई यह है कि भाजपा को इस बात का बखूबी अहसास है कि जमीन पर जनता के बीच उसके खिलाफ जबर्दस्त गुस्सा है। कोरोना काल में सरकार केवल लाशों को छिपाने की कोशिश ही करती रह गई, जबकि इसी दौरान इलाज, दवाओं, बिस्तर और ऑक्सीजन की कमी से लोग मरते रहे।
उन्होंने कहा कि भाजपा ने जनता से जो भी वादा किया था, उनमें से किसी एक पैमाने पर भी वे खरे नहीं उतरे। युवाओं में बेरोजगारी के कारण अभी भी भारी निराशा है तो किसानों को उसकी लागत तक नहीं मिल पा रही। योगी आदित्यनाथ सरकार पिछले साढ़े चार सालों में केवल उन्हीं योजनाओं का फीता काटती रह गई जिसे अखिलेश यादव सरकार ने शुरू किया था।

