सरकारी स्कूल में लेक्चरर बनी कविता की सच्चाई खुली तो उड़ गए होश, भाई ने बेचा प्लॉट बहन ने खरीदा पेपर

राजस्थान में स्कूल लेक्चरर भर्ती के नाम पर जो खेल खेला गया वो हर किसी को चौंका देने वाला है. मामला साल 2022 में हुई…

राजस्थान में स्कूल लेक्चरर भर्ती के नाम पर जो खेल खेला गया वो हर किसी को चौंका देने वाला है. मामला साल 2022 में हुई परीक्षा का है जिसे आरपीएससी ने आयोजित किया था. अब जब स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप यानी एसओजी ने इसकी परतें खोली हैं तो सामने आ रहा है कि परीक्षा से पहले ही पेपर बिक चुका था और लाखों रुपये में खरीदा गया था.

सबसे ताजा नाम जो इसमें सामने आया है वो कविता लखेरा का है. कविता की गिरफ़्तारी जयपुर से हुई है. उसने अपने ही भाई दीपक के जरिए पच्चीस लाख रुपये देकर पेपर खरीदा था. कविता अभी ब्यावर के जालिया गांव के एक सरकारी स्कूल में अर्थशास्त्र पढ़ा रही थी. एसओजी की पूछताछ में साफ हुआ कि परीक्षा से ठीक एक दिन पहले कुछ उम्मीदवारों को एक जगह बुलाया गया और वहीं पेपर रटवाया गया. कविता भी उन लोगों में शामिल थी. उसने दोनों दिन का पेपर पढ़कर परीक्षा दी और सीधे मेरिट में बीसवें नंबर पर पहुंच गई.

एडीजी वीके सिंह ने बताया कि कविता को तीन दिन की रिमांड पर लिया गया है.

यह भी सामने आया है कि कविता के भाई दीपक ने टोंक के ओमप्रकाश गुर्जर से पेपर खरीदा था. पहले बारह लाख एडवांस दिए और फिर सिलेक्शन होने के बाद तेरह लाख और दिए. इसके लिए उन्हें अपना प्लॉट तक बेचना पड़ा. इस पूरे मामले में कई और नाम सामने आए हैं जिनमें राम रतन, गणपत विश्नोई, रामचंद्र मीणा और पुरुषोत्तम लखेरा शामिल हैं. मोबाइल चैटिंग की जांच के बाद ये पूरा नेटवर्क बेनकाब हुआ.

सिर्फ पेपर लीक ही नहीं बल्कि फर्जी डिग्रियों का भी खुलासा हुआ है. हिंदी विषय में परीक्षा देने वाली कमला कुमारी और ब्रह्माकुमारी नाम की दो युवतियों ने भी फर्जी एमए डिग्री लगाकर नौकरी पाई थी. कमला ने पहले वर्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी की डिग्री दिखाई और बाद में मेवाड़ यूनिवर्सिटी की डिग्री लगाकर भर्ती में हिस्सा लिया.

परीक्षा में एक को सातवीं रैंक मिली और दूसरी को छत्तीसवीं. जब डॉक्युमेंट वेरिफिकेशन की बारी आई तो दोनों भाग गईं लेकिन बाद में आईं तो उन्हें पकड़कर सिविल लाइन थाने भेजा गया. पूछताछ में उनके भाई भी पकड़े गए जो खुद सरकारी टीचर और डॉक्टर थे.

एसओजी ने बताया है कि अब तक करीब नब्बे लोगों की पहचान हो चुकी है जिनमें सत्तर अकेले सांचौर से हैं. फिलहाल फर्जी डिग्री देने वाले संस्थानों की भी जांच चल रही है. खासकर मेवाड़ यूनिवर्सिटी पर शक गहराया है जहां से ये डिग्रियां बनी थीं. इन्हीं कागज़ों की मदद से कई लोगों ने सरकारी नौकरी तक ले ली थी.

अब ये जांच कहां तक जाएगी ये देखना बाकी है लेकिन जो खुलासा अब तक हुआ है वो ये बताता है कि सिस्टम की जड़ें कितनी खोखली हो चुकी हैं. नौकरी के लिए परीक्षा नहीं अब पैसे चाहिए और पेपर खरीदने के लिए बस सही लिंक.