उत्तराखंड के चकराता क्षेत्र में करीब दो दर्जन गांवों ने सामूहिक शादियों में फास्ट फूड महंगे तोहफे और दिखाए वाली रस्मों को पूरी तरह रोक दिया है। इसका मकसद केवल इतना है कि इससे सामाजिक दबाव कम होगा और पुरानी परंपराओं को फिर से जीवित किया जा सकेगा।
जौनसार बाबर क्षेत्र के गांव प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से यह सारे नियम बनाए हैं। उनका कहना है की शादी विवाह फिर से सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटे और परिवारों का आर्थिक बोझ भी कम हो। नियम तोड़ने वाले को ग्राम पंचायत ₹100000 का जुर्माना भी लगा सकती है।
दोहा गांव समूह के मुख्य राजेंद्र तोमर का कहना है की शादियों में धन दौलत के प्रदर्शन से इलाके में दिखावे की होड़ पैदा होती है। यह रस्में एक किस्म की प्रतियोगिताएं बन जाती हैं और परिवार पर अनावश्यक दबाव भी पड़ता है। नए नियम लागू करने वाले गांव में दाऊ, दोहा, छुटौ, बजौ, घिंगो और कैटरी आदि शामिल हैं।
इस फैसले में चाऊमीन मोमोज और अन्य फास्ट फूड स्नैक्स आदि को भी शादी के खाने से पूरी तरह बाहर कर दिया गया है। इसके बजाय परिवारों से कहा गया है कि मंडुआ, झंगोरा जैसे स्थानीय अनाजों से बनी पारंपरिक गढ़वाली थाली ही परोसी जाए। महंगे तोहफे और लग्जरी सामान का आदान-प्रदान भी प्रतिबंधित कर दिया गया है।
क्यावा गांव के निवासी कर्मू पाल ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा, हम खुशी है कि हमारी स्थानीय खान-पान और संस्कृति को बढ़ावा मिल रहा है। नई पीढ़ी को यह नहीं भूलने दिया जाएगा कि हम कहां से आए हैं। यही भावना पड़ोसी उत्तरकाशी के नौगांव क्षेत्र में भी दिखी।
यहां कोटी थाकराल और कोटी बनाल गांव के लोगों ने शादियों में डीजे म्यूजिक और शराब पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। अब सभी उत्सवों में पारंपरिक लोक संगीत और स्थानीय वाद्य यंत्र अनिवार्य होंगे।
