अमेरिकी कंपनियों ने स्थानीय कर्मचारियों को निकाला H-1B वीज़ा पर विदेशियों को नौकरी, व्हाइट हाउस ने लगाए गंभीर आरोप और बढ़ाई फीस

अमेरिका में H-1B वीज़ा को लेकर खड़ा हुआ नया विवाद बड़ी कंपनियों और व्हाइट हाउस के बीच गर्म बहस में बदल गया है। व्हाइट हाउस…

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अमेरिका में H-1B वीज़ा को लेकर खड़ा हुआ नया विवाद बड़ी कंपनियों और व्हाइट हाउस के बीच गर्म बहस में बदल गया है। व्हाइट हाउस ने आरोप लगाया है कि कई बड़ी अमेरिकी टेक कंपनियां अपने देश के कर्मचारियों को नौकरी से निकाल रही हैं और उनकी जगह विदेशी कर्मचारियों को H-1B वीज़ा पर भर्ती कर रही हैं। यह मामला तब सामने आया जब डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीज़ा के लिए 100000 डॉलर की नई फीस लागू करने की घोषणा की।

व्हाइट हाउस ने इस मामले में आंकड़े भी पेश किए हैं। एक कंपनी ने इस साल 16000 अमेरिकी कर्मचारियों को काम से निकाला जबकि उसे 5189 H-1B वीज़ा मिली। दूसरी कंपनी ने ओरेगन में 2400 अमेरिकी कर्मचारियों की छंटनी की लेकिन उसे 1698 वीज़ा मंजूर हुए। तीसरी कंपनी ने 2022 से अब तक 27000 अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी से हटाया जबकि उसे 25075 वीज़ा मिली। व्हाइट हाउस ने बताया कि कुछ अमेरिकी आईटी कर्मचारियों को अपनी नौकरी खोने के बाद प्रशिक्षित होना पड़ा ताकि उनकी जगह आए विदेशी कर्मचारी काम कर सकें और इसके लिए उन्हें नॉन-डिस्क्लोजर एग्रीमेंट पर साइन करना पड़ा।

सरकार का कहना है कि H-1B वीज़ा का गलत इस्तेमाल हो रहा है जिससे अमेरिकी कर्मचारियों की सैलरी घट रही है और राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा बन रहा है। इसलिए ट्रंप प्रशासन ने कंपनियों के लिए भारी फीस तय की ताकि इस प्रोग्राम का दुरुपयोग रोका जा सके और भविष्य में अमेरिकी छात्र STEM जैसे करियर चुनने से हिचकें नहीं।

नए नियम का असर सिर्फ नए आवेदन पर होगा। पुराने वीज़ा धारक जिनमें बड़ी संख्या भारतीय पेशेवर भी शामिल हैं, उन पर यह फीस लागू नहीं होगी। USCIS ने स्पष्ट किया कि 21 सितंबर से पहले जमा हुए आवेदन पर कोई असर नहीं पड़ेगा और जो लोग अभी विदेश में हैं उन्हें वापस आने के लिए यह शुल्क नहीं देना होगा।