उत्तराखंड में अब तक इस साल 7 बाघों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा एक बाघ और एक शावक भी मारे गए हैं जबकि पिछले साल भी 9 बाघ मरे थे जिसमें पांच बाघिन थी। बाघ की तुलना में बाघिन की अधिक मृत्यु ने विशेषज्ञ को चिंता में डाल दिया है। इस तरह यूं बाघिन की मृत्यु चिंता का विषय है।
राजाजी टाइगर रिजर्व में बाघों का कुनबा बढ़ाने के लिए दो बाघों के साथ तीन बाघिन को लाया गया है। एनटीसीए के आंकड़ों के अनुसार, इस साल उत्तराखंड में सात बाघों की मौत में से पांच बाघिन थीं, जिनकी मौत के कारण आपसी संघर्ष, बीमारी और सड़क हादसे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी वन्य जीव प्रजाति में मादा की मौत नर की तुलना में कम होनी चाहिए। चाहे वह हाथी हो, गुलदार हो या बाघ मादा की संख्या प्रजाति की वृद्धि के लिए ज्यादा जरूरी होती है। इसलिए बाघिनों की अधिक मृत्यु के पीछे का कारण पता लगाकर प्रभावी कदम उठाना चाहिए।
भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कमर कुरैशी के मुताबिक किसी भी वन्यजीव में मादा की अधिक मौत चिंताजनक होती है। यह उनकी संख्या और प्रजाति के अस्तित्व के लिहाज से खतरनाक संकेत है। बाघिन की मौतों की असल वजह सामने आनी चाहिए, ताकि रोकथाम की जा सके। बाघिनों की मृत्यु बाघों से कम होनी चाहिए।
यह हरिद्वार के शिवालिक पर्वतमाला की तलहटी में बसा है। यह टाइगर रिजर्व, राजाजी राष्ट्रीय उद्दान का हिस्सा है। इसका नाम प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी सी राजगोपालाचारी के नाम पर रखा गया था। उन्हें लोगों के बीच राजाजी के नाम से जाना जाता था।
भारत में बाघों के संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट टाइगर चलाया जा रहा है, इसे वन्यजीव संरक्षण पहल के तहत साल 1973 में शुरू किया गया था।
