15 जुलाई 2025 को भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से पृथ्वी पर लौट आए। उनका स्पेसक्राफ्ट अमेरिका के कैलिफोर्निया तट पर सफलतापूर्वक लैंड हुआ। वापसी के बाद मेडिकल प्रोटोकॉल के तहत उन्हें सीधे रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम के लिए ले जाया गया, जहां शरीर को दोबारा पृथ्वी के वातावरण के अनुरूप ढालने की प्रक्रिया शुरू की गई। इसरो ने गुरुवार को उनकी सेहत को लेकर स्थिति साफ करते हुए बताया कि शुभांशु की हालत फिलहाल पूरी तरह स्थिर है और उन्हें किसी भी तरह की कोई आपात चिकित्सकीय समस्या नहीं है।
इसरो ने एक आधिकारिक बयान में कहा है कि वो Axiom Space के साथ मिलकर शुभांशु के रिहैब प्रोग्राम पर काम कर रहा है। मेडिकल टीम उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति की बारीकी से जांच कर रही है। शुरुआती रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि माइक्रोग्रैविटी के असर से उनके शरीर पर कोई गंभीर प्रभाव नहीं पड़ा है, लेकिन एहतियात के तौर पर कार्डियोवैस्कुलर, मस्कुलोस्केलेटल और सायकोलॉजिकल जांचें की जा रही हैं। ये तमाम टेस्ट Axiom के फ्लाइट सर्जन और इसरो की चिकित्सकीय टीम की निगरानी में हो रहे हैं।
गौरतलब है कि शुभांशु Axiom Mission 4 का हिस्सा थे, जिसमें वह पायलट की भूमिका निभा रहे थे। यह मिशन 25 जून को स्पेसएक्स के रॉकेट ‘Falcon 9’ और ‘ड्रैगन’ स्पेसक्राफ्ट के ज़रिए लॉन्च हुआ था। 26 जून को शुभांशु और उनकी टीम इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंची थी। उनके साथ अमेरिका की अनुभवी कमांडर पैगी व्हिटसन, पोलैंड के स्लावोस्ज़ और हंगरी के तिबोर कपू भी इस मिशन में शामिल थे। इन तीनों देशों के प्रतिनिधि पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पहुंचे थे।
स्पेस से लौटने के बाद चारों एस्ट्रोनॉट्स को सीधे डीब्रीफिंग और चेकअप के लिए ले जाया गया। शुभांशु को कैलिफोर्निया तट से हेलीकॉप्टर द्वारा मेडिकल सुविधा केंद्र ले जाया गया, जिसके बाद उन्हें एक सप्ताह के लिए ह्यूस्टन स्थित रिहैब सेंटर भेजा गया है। वहां विशेषज्ञों की टीम उनकी स्थिति पर लगातार नजर रख रही है।
इसी बीच, बुधवार को शुभांशु कई दिनों बाद अपनी पत्नी कामना शुक्ला और 6 साल के बेटे किआश से मिले। उनके परिवार संग मुलाकात की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं और लाखों भारतीयों के लिए यह भावुक क्षण गर्व का विषय बन गया है।
शुभांशु की सुरक्षित वापसी और उनकी वर्तमान हालत ने इसरो और देशवासियों को राहत दी है। भारत के अंतरिक्ष अभियानों की दिशा में यह एक और अहम कदम साबित हुआ है।