देहरादून में भारी बारिश और भूस्खलन से पहाड़ी इलाके मुख्य शहरों से कट गए हैं। इसका सबसे ज्यादा असर किसानों पर पड़ा है क्योंकि अब वे अपने उत्पाद बाजारों तक पहुंचाने में भारी परेशानियों का सामना कर रहे हैं। पिछले महीने से लगातार हो रही बारिश ने यही स्थिति बनाई है। रास्ते बार-बार खुलते और बंद होते रहने के कारण किसानों की मुश्किलें और बढ़ गई हैं।
अगस्त का महीना राज्य में बेहद बारिश वाला रहा और इस दौरान पहाड़ी इलाकों की सड़कें कई जगहों पर क्षतिग्रस्त हो गईं या भूस्खलन के कारण पूरी तरह से बंद हो गईं। इससे पहाड़ी इलाके मैदानी जिलों से अलग-थलग पड़ गए हैं। नतीजतन खेती और बागवानी पर गहरा असर पड़ा है। कई उत्पाद समय पर मंडियों तक नहीं पहुंच पाए और मांग पूरी नहीं हो सकी।
देहरादून की बड़ी सब्जी-फल मंडियों में भी इसका असर साफ दिखाई दिया। पहाड़ी इलाकों से आए किसान अपनी फसलों को सही दाम पर बेचने के लिए संघर्ष करते नजर आए। खासकर सेब और नाशपाती की बागवानी सबसे ज्यादा प्रभावित हुई। सेब की पेटियों को मंडियों तक पहुंचाना मुश्किल हो गया और नाशपाती की फसल भी बर्बाद हो गई। टमाटर और सालभर उगाई जाने वाली सब्जियों पर भी असर पड़ा है।
किसान मंडियों में फसलों के सही दाम न मिलने से नाराज दिखे। देहरादून की निरंजनपुर मंडी में किसान इस बार सेब की अच्छी पैदावार के लिए उत्साहित थे लेकिन बारिश ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। आढ़ती भी मानते हैं कि फसल सही समय पर मंडी तक न पहुंच पाने और ट्रांसपोर्टेशन सही न होने के कारण गुणवत्ता घट गई और किसानों को नुकसान उठाना पड़ा।
रास्तों के बंद होने की वजह से पहाड़ी इलाकों में खाद्य सामग्री और सब्जियों की आपूर्ति भी प्रभावित हुई है। सरकार फिलहाल नुकसान का आकलन कर रही है लेकिन किसानों का कहना है कि अकेले उत्तरकाशी जिले में सेब की फसल से ही करोड़ों रुपए का नुकसान हो चुका है। इसके अलावा अन्य किसान भी अपनी बर्बाद हुई खेती की वजह से भारी आर्थिक संकट में हैं।
कृषि और उद्यान विभाग अब नुकसान का आंकलन कर राहत देने का प्रयास कर रहे हैं। उत्तराखंड में करीब 25,785 हेक्टेयर में सेब की खेती होती है और लगभग 62 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है। उत्तरकाशी जिले में सबसे ज्यादा उत्पादन होता है जबकि देहरादून के चकराता और कालसी, चमोली, अल्मोड़ा और नैनीताल जिले भी सेब उत्पादन में शामिल हैं।
