देहरादून से खबर है कि उत्तराखंड में लगातार चार साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहने वाले पुष्कर सिंह धामी अब पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के बाद पहले ऐसे नेता बन गए हैं जिन्होंने लंबा वक्त इस पद पर गुजारा है। हालांकि उनके ये चार साल दो अलग अलग सरकारों में गिने गए हैं। पहली बार उन्होंने चार जुलाई दो हजार इक्कीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इसके बाद दोबारा सरकार बनने पर भी उन्हें ही जिम्मेदारी सौंपी गई और अब दूसरी पारी के भी तीन साल पूरे हो चुके हैं।
मुख्यमंत्री धामी ने इन चार सालों में कई बड़े फैसले लिए जिनकी गूंज सिर्फ उत्तराखंड तक ही नहीं बल्कि पूरे देश में सुनाई दी। कुछ फैसलों ने जहां उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई वहीं कुछ पर सवाल भी उठे। लेकिन उन्होंने हर बार अपना पक्ष मजबूती से रखा।
उत्तराखंड की राजनीति में अक्सर मुख्यमंत्री बदलने की परंपरा रही है। ऐसे में जब पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया तो सवाल उठा कि क्या वे भी बाकी नेताओं की तरह बीच में ही हटा दिए जाएंगे या फिर वे नारायण दत्त तिवारी की तरह अपना कार्यकाल पूरा कर पाएंगे। शुरूआत में जब उन्होंने खटीमा सीट से चुनाव लड़ा और हार गए तो यही चर्चा और तेज हो गई कि अब शायद हाईकमान उन्हें हटा देगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पार्टी ने उन पर भरोसा बरकरार रखा और दोबारा उन्हें मुख्यमंत्री बनाया।
चार जुलाई दो हजार इक्कीस को जब उन्हें पहली बार मुख्यमंत्री बनाया गया तब वे खटीमा से विधायक थे। उसके बाद से उन्होंने लगातार पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश की है। शायद यही वजह है कि आज उनके चार साल पूरे होने का जश्न जोरशोर से मनाया जा रहा है।
उनके फैसलों की बात करें तो एक ऐसा फैसला जिसने उन्हें देशभर में चर्चा में ला दिया वह था समान नागरिक संहिता को लेकर उठाया गया कदम। उत्तराखंड भले ही छोटा राज्य है लेकिन यहां होने वाले राजनीतिक फैसलों पर पूरे देश की नजर रहती है। मुख्यमंत्री धामी ने उस वादे को पूरा कर दिखाया जो भाजपा लंबे समय से करती आई थी। जब उन्होंने UCC का मसौदा पास कराया तो देशभर में इस पर प्रतिक्रियाएं आईं। केंद्र से लेकर अलग अलग राज्यों में इसकी चर्चा हुई। इसी फैसले ने उन्हें एक मजबूत नेता के तौर पर स्थापित किया।
