उत्तराखंड में यहां मनाई जा रही बूढ़ी दीवाली, भगवान राम के लौटने की खबर मिली थी देरी से

उत्तराखंड में जौनसार के कालसी और चकराता ब्लॉक के करीब 200 गांव खेड़ों, मजरों में बूढ़ी दीपावली का जश्न मनाया जा रहा है। यहां खत…

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उत्तराखंड में जौनसार के कालसी और चकराता ब्लॉक के करीब 200 गांव खेड़ों, मजरों में बूढ़ी दीपावली का जश्न मनाया जा रहा है। यहां खत देवघार और खत शैली में दीपावली मनाई गई। सुबह मंदिरों में देव दर्शन के लिए बड़ी संख्या में ग्रामीण इकट्ठा हुए। चकराता, कालसी ब्लॉक के गांव में पौराणिक बूढ़ी दीपावली मनाई जाती है।

ग्रामीण पंचायती आंगन में सामूहिक रूप से नृत्य करते हैं। नृत्य के दौरान सितलू मोडा की हारुल के बाद कैलेऊ मैशेऊ की हारुल गाई। सभी गांव में सुबह 4:00 बजे ग्रामीण हाथों में भीमल की मशालें लेकर नाचते-गाते हुए होलियात लेकर बाहर निकले। यहां होलियत जलाकर जश्न मनाया जाता है हर गांव में ढोल दमाऊ , रणसिंघे के साथ पंचायती आंगनों में लोक संस्कृति का दौर चला।

जैसे-जैसे रात बढ़ती गई, वैसे-वैसे लोक संस्कृति का रंग चढ़ता गया।


जौनसार के सभी गांव में बूढ़ी दीपावली पर देव दर्शन के लिए मंदिरों में लोग इकट्ठा होते हैं। कहीं पर ग्रामीणों ने महासू देवता तो कहीं पर शिलगुर विजट और चुड़ेश्वर महाराज तो कहीं पर भगवान परशुराम के दर्शन कर घर परिवार की खुशहाली की मन्नतें मांगी।

पुरातत्व महत्व के प्राचीन शिव मंदिर लाखामंडल में भी देवदर्शन को लोग उमड़े। प्राचीन शिव मंदिर लाखामंडल, प्राचीन परशुराम मंदिर डिमऊ, शिलगुर विजट मंदिर सिमोग, महासू मंदिर लखवाड़, थैना, बुल्हाड़ में आस्था का सैलाब उमड़ा।


इस दीपावली का जिक्र रामायण से जुड़ा हुआ है। बताया जाता है कि भगवान राम के लौटने में देरी हुई इसलिए हिमालय में इसके लिए अलग तिथि मनाई गई। हिमाचल प्रदेश के कुछ कथाओं में भगवान परशुराम का भी उल्लेख किया गया है।

राजा बलि के भक्ति के कारण उनका प्रतीक दहन किया जाता है।पूरे देश में दीवाली की चमक एक माह पहले थम चुकी है। जौनसार और हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाकों में दीवाली का जश्न एक महीने बाद आज से शुरू होगा। यहां इसे बूढ़ी दीपावली या पुरानी दीवाली कहा जाता है। हर साल पर्व नवंबर के अंत या दिसंबर की शुरुआत में मनाया जाता है।

यह त्योहार सर्द रातों में अलाव की गर्माहट और पारंपरिक नृत्य से सजा होता है। पटाखों के बजाय मशालों की रोशनी और लोकगीतों की धुन इसकी खासियत है।


इस पर्व को लेकर मान्यता है किजब प्रभु श्रीराम अयोध्या लौटे तो हिमालयी इलाकों में बर्फबारी के कारण यह खबर एक माह के बाद मिली। इसके बाद जौनसार क्षेत्र में दीवाली का त्योहार मनाया गया। इस वजह से यहां दीवाली की जगह बूढ़ी दीवाली मनाई जाती है।