उत्तराखंड में गुलदार और बाघ के हमले के डर से 500 से ज्यादा गांव जी रहे हैं दहशत में

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में वन्य जीव -मानव संघर्ष ज्यादा ही बढ़ गया है। अब 500 से ज्यादा गांव डर में जी रहे हैं। जंगलों…

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उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में वन्य जीव -मानव संघर्ष ज्यादा ही बढ़ गया है। अब 500 से ज्यादा गांव डर में जी रहे हैं। जंगलों के किनारे बसे इन गांव में गुलदार, बाघ, भालू, हाथी, अन्य जंगली जानवरों का आना-जाना लगा रहता और रोज हमले का डर बना रहता है।

यहां लोगों के जीवन के लिए एक चुनौती बन गया है। खेत खलिहान रास्ते और यहां तक की घरों की दहलीज भी अब सुरक्षित नहीं रह गई है। वन विभाग का कहना है कि इन संवेदनशील गांव में सबसे ज्यादा खतरा गुलदार और बाघ से है। दिन में खेतों में काम करना और शाम होते घरों से बाहर निकलना जोखिम भरा हो सकता है।

कई स्थानों पर गुलदार के लगातार दिखने की वजह से स्कूल जाने वाले बच्चे भी डरे हुए हैं विगत महीना में इन गांव में वन्य जीव हमले की घटना लगातार बढ़ गई है। कई लोग घायल और कई लोगों की तो जान भी चली गई। इन बढ़ती घटनाओं को देखते हुए वन विभाग ने त्वरित प्रतिक्रिया दल सोलर लाइटिंग , झाड़ियों की कटान और फेंसिंग जैसे उपाय शुरू किए हैं, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि दहशत कम होने का नाम नहीं ले रही।

स्थानीय लोगों का दावा है कि पानी के स्रोतों के आसपास और सुनसान रास्तों पर सबसे अधिक खतरा रहता है।


रात होते ही गांव जंगल में बदल जाता है और लोग घर से निकल नहीं पाते हैं। वन विभाग का कहना है कि संवेदनशील क्षेत्रों में गश्त बढ़ाई गई है और जल्द ही अतिरिक्त सुरक्षा उपाय लागू किए जाएंगे।
राज्य के अलग-अलग क्षेत्र में मानव-भालू संघर्ष की घटनाएं सामने आने के बाद वन विभाग अब भालू की सक्रियता वाली जगहों को चिन्हित करेगा।

साथ ही ड्रोन कैमरों से निगरानी की जाएगी। वन विभाग ने सभी वन संरक्षक, निदेशक, प्रभागीय वनाधिकारी और उप निदेशकों के लिए एडवाइजरी जारी की है, जिसमें मानव-भालू संघर्ष की रोकथाम के लिए उचित कदम उठाने को कहा है। सभी वन अधिकारियों को अपने क्षेत्रों में परिस्थिति के अनुसार सतर्कता बरतने के लिए कहा गया है।

क्षेत्र में जनजागरूकता कार्यक्रम, गोष्ठी के जरिए स्थानीय लोगों से संवाद स्थापित कर भालू से बचाव के लिए जरूरी जानकारी भी दी जाएगी।


चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन उत्तराखंड रंजन कुमार मिश्रा ने कहा कि मानव वन्य जीव संघर्ष के लिहाज से संवेदनशील इलाके चिन्हित किए गए हैं। उनमें संघर्ष रोकने के लिए उपाय और जागरूकता की गाइडलाइन भी जारी की गई है।


आपको बता दे कि वन्यजीवों के हमले से अब तक काफी मानव क्षति हो चुकी है। आंकड़ों के अनुसार बाघ के हमले से 11, गुलदार से नौ, हाथी से सात, सांप से पांच, भालू से आठ लोग जान गंवा चुके हैं।


वन प्रभागवार संवेदनशील गांवों की संख्या इस प्रकार है


पिथौरागढ़- 86 गांव
गढ़वाल- 71 गांव
बागेश्वर- 48 गांव
सीटीआर (कॉर्बेट टाइगर रिजर्व) – 45 गांव
हरिद्वार- 35 गांव
रामनगर- 35 गांव
तराई पश्चिमी- 29 गांव
हल्द्वानी- 26 गांव