उत्तरकाशी के थराली की आपदा से मिले जख्मो से लोग अभी तक उबरने की कोशिश कर रहे हैं। लोगों को अपनी छत से लेकर हर एक समान की व्यवस्था करनी पड़ रही है। वह कहां रहेंगे कैसे फिर से घर तैयार करेंगे इन सब चीजों के बारे में चिंताएं बनी हुई है।
आपदा प्रभावितों के बीच इसके अलावा उनके बच्चे भी उलझन में उलझे हुए हैं। आपदा ने खुशियों के साथ उनके भविष्य को भी छीन लिया। मलबे के ढेर में घर के साथ-साथ उनका बस्ता, कॉपी किताबें स्कूल ड्रेस सब बह गया। आपदा प्रभावित थराली , सारी, चैपड़ो के ऐसे 35 बच्चे राहत शिविरों में रह रहे हैं, जिनकी पढ़ाई भी मझधार में फंसी हुई है।
राड़ी गांव निवासी पवनेश भी राहत शिविर में रह रहा है। वह सातवीं कक्षा में पढ़ता है। पनवेश का कहना है कि आपदा के बाद उसके स्कूल बंद हो गए हैं और वह यहां रहकर पढ़ाई करने की स्थिति में नहीं है। वैसे भी पढ़ाई वह करें किस्से, ना उसके पास किताबें बची है नहीं उसके पास बस्ता है और नहीं उसके पास यूनिफॉर्म है।
उसे फिर से इन सब चीजों का इंतजाम करना होगा लेकिन अभी लोग अपने घर को प्राथमिकता दे रहे हैं।
थराली के आपदा बाजार की रहने वाली हेमलता कहती हैं कि जब घर ही नहीं बचा तो फिर पढ़ाई भी कहां से होगी। वह तलवाड़ी महाविद्यालय में बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा है। आपदा ने हमारे सपनों को तोड़कर रख दिया है। पिताजी ने मेहनत कर जो कमाया था, वह सब बर्बाद हो गया।
नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक लड़की ने भी अपने हालात बयां किया। उसने बताया कि ऐसे हालात ही नहीं थे कि कोई अपने साथ अपनी किताबें लेकर आप जाता क्योंकि आपदा के समय हर कोई अपनी जान बचाकर भाग रहा था। इसके बाद लौट जैसे हालात भी नहीं है किताबें दब गई हैं
कक्षा सात में पढ़ने वाली कृष्णा पंत कुलसारी स्थित राजकीय पॉलीटेक्निक में बनाए गए राहत शिविर में रह रही है। वह शुक्रवार रात साढ़े 12 बजे आई आपदा को याद करते हुए कहती है कि हमें कुछ भी मौका नहीं मिला कि अपना सामान, कपड़े, किताबें ले आएं।
अब सबकुछ मलबे में दब गया है। मलबे में दबे घर में मेरी किताबें भी हैं। पता नहीं अब कैसे पढ़ाई फिर से शुरू होगी, जो नोट्स बनाए थे, उसे कैसे पूरा कर पाऊंगी।
