अल्मोड़ा में हृयूमन राईटस लॉ नेटवर्क की गोष्ठी विगत शनिवार से शुरू हो गई है। गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि सरकारें विकास के नाम पर विनाश की नीतियां अपना रही है। यह गोष्ठी आज रविवार को भी जारी रहेगी।
शनिवार को पहले दिन उत्तराखण्ड में वर्षों से कार्यरत विषय विशेषज्ञ, बड़ी संख्या में अधिवक्ता तथा विभिन्न विषयों पर आन्दोलनरत समूहों के लोगों ने गोष्ठी में भागीदारी की। कार्यक्रम में जनगीत गाकर जनाधिकारों की रक्षा के लिए अपेक्षित उपायों को करने की जरूरत पर जोर दिया गया। कोरोना के कारण पद्म श्री डा.शेखर पाठक, प्रसिद्ध भूगर्भशास्त्री डा.नवीन जुयाल तथा प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डा.भरत झुनझुनवाला ने विषय के संदर्भ में शोधपरक एवं तथ्यात्मक जानकारियां जूम एप के माध्यम से प्रस्तुत की।
कार्यक्रम की शुरुआत में आयोजकों की ओर से एडवोकेट पी.सी.तिवारी ने कहा कि विकास के नाम पर हो रहे विनाश से हिमालयी राज्य संकट की ओर बढ़ रहे हैं। जिसके लिए हम लोगों को जनाधिकारों की पैरवी के लिए सम्मिलित प्रयास करने चाहिए। उन्होंने राज्य निर्माण संघर्ष, मुजफ्फरनगर कांड तथा रामपुर तिराहा कांड का जिक्र करते हुए कहा कि राज्य निर्माण के 20 वर्ष बाद भी उत्तराखण्ड में हालात बदले नहीं हैं। दिल्ली से चलने वाले राष्ट्रीय पार्टियों की सरकारों ने उत्तराखण्ड को दूषित किया है।
जूम एप के माध्यम से कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पद्मश्री डा.शेखर पाठक ने कहा कि जलवायु परिवर्तन केवल क्षेत्रीय समस्या नहीं, बल्कि एक वैश्विक चिन्ता है, जिसके लिए इन समस्याओं को वैश्विक परिदृश्य से ही समझना होगा। अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन से ग्लेशियर पिघल रहे हैं। विकास के नाम पर हो रहे भ्रष्टाचार और विनाश की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि विकास की परिभाषा टिकाऊ होनी चाहिए। हिमालय की संवेदनशीलता को बताते हुए उन्होंने कहा कि हिमालय का व्यवहार किशोरवय की तरह है। इसलिए हमें हिमालय पर कुछ करने से पहले संवेदनशील होना होगा। दुनियां भर की जैव विविधता में से अकेले हिमालय में 10 प्रतिशत जैव विविधता पाई जाती है। जिसमें 12 सौ से अधिक पक्षी तथा 14 सौ से अधिक तितलियों की प्रजातियां हैं। उन्होंने हिमालय को ‘‘वाॅटर टाॅवर्स आफ ट्वेंटी फस्र्ट सेंचुरी’’ से संबोधित किया। मानवाधिकारों के संदर्भ को रखते हुए उन्होंने कहा कि मनुष्य के पैदा होने के साथ ही मानवाधिकारों की कवायद शुरू हो गई थी। भूमि बंदोबस्ती पर उन्होंने कहा कि जब राज्य का गठन हुआ, तो दुबारा यहाॅं बंदोबस्ती होनी चाहिए थी, लेकिन राजनैतिक चेतना के अभाव में आज तक यह नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि वन पंचायत की जिस भूमि पर जंगल खत्म हो गए हैं, उस भूमि को खेती के लिए ग्राम पंचायतों के सुपुर्द कर दिया जाना चाहिए।
प्रसिद्ध भूगर्भशास्त्री डा.नवीन जुयाल ने जलवायु परिवर्तन पर बोलते हुए कहा कि वर्तमान समय में ग्लेशियरों को और अधिक जमना चाहिए था, लेकिन वे लगातार तापमान बढ़ने के कारण पिघलकर कम हो रहे हैं। विकास की अवधारणाएॅं ही बदल गई हैं। जो मनुष्य संसाधनों को उपयोग कर रहा था, वह दोहन करने लगा है। उन्होंने कहा कि नदियां सिर्फ पानी ही नहीं लाती, बल्कि अपने साथ पर्याप्त गाद भी लेकर आती है। लेकिन हमने इन्हीं नदियों में विकास का मलबा भी ढो दिया है, जिसके कारण नदियों पर मलबे का संकट आ रहा है। हमारी समझ पहाड़ की होनी चाहिए, लेकिन हम मैदानी समझ से ही पहाड़ में भी काम कर रहे हैं। कहा कि ग्लेशियरों की मारक क्षमता कई गुना अधिक होती है, जो पिछले दिनों रैणी तथा तपोवन क्षेत्र में देखने को मिला है। इस आपदा में मारे गए लोगों के लिए तपोवन-विष्णंगाड़ परियोजना की निर्माणदायी संस्था एनटीपीसी को हत्या का जिम्मेवार माना जाना चाहिए।
जोशीमठ निवासी सामाजिक कार्यकर्ता तथा आन्दोलनकारी अतुल सती ने कहा कि दो हजार- तीन हजार फीट तक की ऊंचाई पर ऐसी कोई परियोजना नहीं बननी चाहिए, जो पहाड़ों के लिए हानिकारक है। एनटीपीसी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इस हादसे के बाद रैणी गांव को विस्थापन की जरूरत हो गई है। वहाॅं के लोग कैसे हैं, किस हाल में हैं, कंपनी और सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है। आपदा के सभी प्रभावितों की अनदेखी हो रही है। भारत के विभिन्न हिस्सों के प्रभावितों में से कुछेक को कंपनी प्रभावित मान रही है, लेकिन नेपाली मूल के मृतक/लापता मजदूरों पर यह सबसे बड़ा संकट है। उन्हें किसी भी रूप में प्रभावित ही नहीं माना जा रहा है, जिससे उन्हें कोई राहत मिलने की उम्मीद तक नहीं। उन्होंने कहा कि सात फरवरी जोशीमठ क्षेत्र में आई आपदा पूरे देश की आपदा थी। श्रीनगर गढ़वाल से आए गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूगोलवेत्ता डा.मोहन पंवार ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के तीन मुख्य परिणाम पर्वतीय क्षेत्रों में सामने आए हैं। पलायन, जमीनों में परिवर्तन तथा गरीब व वंचित जनों की समस्याएं बढ़ी हैं। कहा कि वायुमण्डल का तापमान ही नहीं, बल्कि पृथ्वी का तापमान भी बढ़ रहा है। मुआवजा पीड़ितों का अधिकार है, न कि सरकार की कृपा।
अल्मोड़ा नगरपालिकाध्यक्ष प्रकाश जोशी ने संबोधित करते हुए कहा कि संघर्षों ने ही उत्तराखण्ड को बनाया और बचाया है। यदि विकास के नाम पर पहाड़ के लोग ही पिसें, तो ऐसे विकास की पहाड़ को कोई जरूरत नहीं है।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डा.भरत झुनझुनवाला ने कहा कि बड़ी जल-विद्युत परियोजनाओं से उत्तराखण्ड के पर्यावरण को पांच तरह के नुकसान हो रहे हैं। इसमें भूमि का कटान, विस्फोटकों से घरों और पहाड़ों को खतरा, पानी राकने से मछलियों और जलीय-जीवों के प्रवास में रोक तथा संकट, वायु प्रदूषण तथा नदी के सौंदर्य समाप्त होना शामिल हैं। जबकि इसके विपरीत कार्बन गैसों के उत्सर्जन में कुछ कमी होती है। उन्होंने कहा कि उक्त पर्यावरणीय दुष्प्रभावों तथा सकारात्मक प्रभावों का मूल्य निकाला जाए, तो दुष्प्रभावों का मूल्य बहुत अधिक है। इसलिए ये परियोजनाएं पहाड़ के लिए उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि सतत विकास के लिए हमें सौर ऊर्जा को अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जनता को मंहगी बिजली बेचकर सरकार को राजस्व देना और कार्यकारी कंपनी को लाभ पहुंचाना इन परियोजनाओं का मुख्य उद्देश्य है। सुप्रीम कोर्ट में अपनी लड़ाई का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत होने के लिए अपना मजबूत पक्ष तैयार किया जाना चाहिए। इसके लिए पीड़ित पक्ष के पास पर्याप्त सबूत होने चाहिए।
इस अवसर पर रैणी गांव से आए संग्राम सिंह, सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट अनुप्रथा, एडवोकेट सुरभि शाह, दीपक, नेपाली मूल के मजदूर मंगल, सरिता मेहरा, अनिरूद्ध’ आदि ने संबोधित किया। उत्तराखण्ड के तमाम हिस्सों से बड़ी संख्या में आए लोग इस गोष्ठी में शामिल हुए।

