यह बात सभी को पता ही है कि डिलीवरी रूम में जैसे ही नवजात की जो पहली आवाज सुनाई देती है, वह आमतौर पर रोने की होती है, न कि हंसने की। यह आवाज सुन माता पिता सुकून देती है। लेकिन अपने कभी यह सोचा कि यह आवाज रोने की क्यों होती है।
आखिर जीवन की शुरुआत आंसुओं से ही क्यों होती है?
मेडिकल साइंस की माने तो बच्चे का यह पहला रोना उसका शुरुआती संवाद होता है, जो यह बताता है कि उसकी सांस, शरीर और दिमाग ठीक तरह से अब काम करना शुरू चुके है।
जैसे ही बच्चा अपनी मां के गर्भ से बाहरी दुनिया इस धरती में प्रवेश करता है तो वह एक सुरक्षित और शांत माहौल से निकलकर बिल्कुल अलग दुनिया में आ जाता है। गर्भ में जहां तापमान नियंत्रित रहता है, रोशनी हल्की होती है और आवाजें धीमी होती हैं, तो वहीं बाहर का वातावरण ठंडा, उजला और शोरगुल से भरा होता है। बच्चे के लिए यह अचानक बदलाव होता है जिससे बच्चे का शरीर तुरंत प्रतिक्रिया देता है और यही प्रतिक्रिया रोने के रूप में सामने आती है, जो उसके जीवित होने और नए माहौल के अनुकूल ढलने का संकेत होती है।
डॉक्टरों के अनुसार, बच्चे का पहला रोना उसकी सेहत का सबसे महत्वपूर्ण संकेत माना जाता है।।गर्भ के दौरान बच्चे के फेफड़े पूरी तरह सक्रिय नहीं होते, क्योंकि उसे ऑक्सीजन नाल के माध्यम से मिलती रहती है। जन्म के बाद उसे खुद सांस लेनी होती है। रोते समय जब बच्चा गहरी सांस लेता और छोड़ता है, तो उसके फेफड़े फैलते हैं और उनमें भरा तरल बाहर निकल जाता है। यही प्रक्रिया उसे स्वतंत्र रूप से सांस लेने में सक्षम बनाती है।
यह पहला रोना केवल आवाज नहीं होता, बल्कि शरीर के भीतर कई अहम बदलावों की शुरुआत भी हुती है। इसके अलावा दिल की धड़कन तेज होती है और रक्त संचार का नया सिस्टम सक्रिय हो जाता है, जिससे शरीर के हर हिस्से तक ऑक्सीजन पहुंचने लगती है। इसी वजह से डॉक्टर अक्सर बच्चे के रोने का इंतजार करते हैं, क्योंकि यह उसके हृदय और फेफड़ों के सही ढंग से काम करने का प्रमाण होता है।
