अल्मोड़ा: पर्यावरण संस्थान द्वारा पिथौरागढ़ जनपद के सीमावर्ती क्षेत्रों में संकटग्रस्त पौधों के संरक्षण एवं किसानों की आजीविका वृद्धि हेतु एक पहल
गो.ब. पन्त राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी-कटारमल, अल्मोड़ा के जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन केंद्र द्वारा पिथौरागढ़ जनपद के दारमा एवं व्यास घाटी में संकटग्रस्त औषधीय पादपों के संरक्षण एवं कृषिकरण हेतु दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया ।
कार्यशाला में संस्थान द्वारा विभिन्न संकटग्रस्त औषधीय पादपों कूट, गन्दरायणी, कुटकी एवं वन हल्दी के वृहद कृषिकरण हेतु स्थानीय समुदाय को जानकारी दी एवं बीज निशुल्क वितरित किए गए। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ के.एस. कनवाल द्वारा कृषकों को औषधीय पौधों की गुणवत्ता, बाजार उपलब्धता, पंजीकरण इत्यादि की जानकारी प्रदान की गयी।
साथ ही उन्होंने बताया कि संस्थान में संचालित डीबीटी, भारत सरकार, नई दिल्ली परियोजना के तहत दारमा घाटी के दुग्गतु, दांतू, बोन, फिलम, नागलिंग, बालिंग, सेला एवं व्यास घाटी के कुट्टी, नाभी, गूंजी, कालापानी, नाभी डांग, बूंदी तथा गर्ब्यांग में औषधीय पौधों के कृषिकरण हेतु चिन्हित किया गया है।
इसी क्रम में स्थानीय कृषकों को विभिन्न संकटग्रस्त प्रजातियों के बीज स्थानीय कृषकों एवं सीमा सुरक्षा बल के जवानों को वितरित किए गये। डॉ अमित बहुखंडी द्वारा कार्यशाला के प्रतिभागियों को औषधीय पौधों द्वारा तैयार होने वाले हर्बल उत्पादों, दवा, एवं न्यूट्रासूटिकल आवश्यकताओं की जानकारी प्रदान की गयी। साथ ही उन्होंने बताया कि इनके उत्पादन द्वारा इनके संकटग्रस्तता को कम किया जा सकता है एवं बाजार की आवश्यकताओं को भविष्य में पूर्ण किया जा सकता है।
डॉ बसंत सिंह ने उत्तराखंड सरकार की पंजीकरण इकाई एचआरडीआई गोपेश्वर द्वारा किए जाने वाले कृषक पंजीकरण एवं दस्तावेजीकरण की जानकारी साझा की तथा उन्होंने बताया कि औषधीय पौध उत्पाद का वैल्यू एडिशन द्वारा अधिकतम धन लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
उक्त कार्यशालाओं में मुकेश सिंह मेर, ललित सिंह, लक्ष्मण मर्तोलिया, प्रतिनिधि वरदान सेवा समिति धारचूला एवं नयन ज्योति बोराह, प्रतिनिधि अदिति ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन प्राइवेट लिमिटेड बैंगलोर ने प्रतिभाग किया।
इस कार्यक्रम में रूप सिंह सलाल, ग्राम सेला दारमा घाटी, अर्चना गुंज्याल, पूर्व ग्राम प्रधान, गूंजी, ठाकुर गुंज्याल, सुनील कुटियाल, ग्राम कुट्टी, सुभाष, प्रकाश ग्राम नाभि डांग व्यास घाटी द्वारा अपने विचार व्यक्त किए गए।
इस कार्यशाला में दारमा एवं व्यास घाटी के 35 स्थानीय कृषकों द्वारा सक्रिय रूप से प्रतिभाग किया गया एवं भविष्य में औषधीय पादपों के संरक्षण हेतु संस्थान को सहयोग हेतु सहमति व्यक्त की गयी।
