भारत हर साल जितना पैसा तेल मंगाने में खर्च करता है उतना किसी और चीज पर नहीं होता है। करीब बाइस लाख करोड़ रुपये की मोटी रकम सिर्फ इस एक जरूरत पर चली जाती है। इससे देश की कमर पर बोझ भी बढ़ता है और बाहर के देशों पर निर्भरता भी। लेकिन अब इस कहानी को पलटने की तैयारी हो रही है। सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी खुद इसकी कमान संभाले हुए हैं और वो चाहते हैं कि देश बाहर से तेल मंगाने वाला नहीं बल्कि ऊर्जा बेचने वाला देश बने।
गडकरी ने हाल ही में एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया जहां टोयोटा और ओहमियम इंटरनेशनल के बीच करार हुआ। वहीं से उन्होंने यह साफ किया कि सरकार अब उन विकल्पों को तेजी से बढ़ावा देने जा रही है जो देश में ही बन सकें। इसमें चार तरह के ईंधन शामिल हैं। एक तो ग्रीन हाइड्रोजन है जो पवन और सौर ऊर्जा से बनती है। दूसरा इथेनॉल और फ्लेक्स फ्यूल है जो देश में गन्ने और अनाज से तैयार हो सकता है। तीसरा बायोगैस है जिसे कचरे और गोबर से बनाया जाता है। और चौथा इसोब्यूटेनॉल डीजल मिक्स है जिस पर अब प्रयोग शुरू हो चुके हैं।
देश के अलग अलग हिस्सों में हाइड्रोजन से चलने वाले ट्रकों का ट्रायल भी शुरू हो गया है। इसके लिए करीब पांच सौ करोड़ रुपये लगाए गए हैं। ये ट्रक दिल्ली आगरा मुंबई पुणे जैसे बड़े हाइवे रूट्स पर दौड़ रहे हैं। इनमें दो तरह की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हो रहा है। एक तो फ्यूल सेल सिस्टम और दूसरा हाइड्रोजन इंजन। ट्रायल के लिए नौ जगह हाइड्रोजन भरने वाले स्टेशन भी बन गए हैं।
गडकरी ने कहा है कि ग्रीन हाइड्रोजन देश का भविष्य है लेकिन फिलहाल इसकी कीमत आम लोगों की पहुंच से बाहर है। इसलिए उन्होंने स्टार्टअप और रिसर्च करने वालों से अपील की है कि वो कचरा बांस और दूसरे जैविक चीजों से हाइड्रोजन बनाने के रास्ते खोजें। एनटीपीसी और कुछ निजी कंपनियां इस पर पहले से काम कर रही हैं।
गडकरी की पूरी रणनीति में इथेनॉल और बायोगैस की भी बड़ी भूमिका है। पेट्रोल में अब बीस प्रतिशत इथेनॉल मिलाना देश भर में लागू हो चुका है। इसके अलावा फ्लेक्स फ्यूल गाड़ियों का दौर भी आने वाला है। टोयोटा इनोवा हायक्रॉस जैसी गाड़ियां इसका ट्रायल मॉडल बन चुकी हैं। डीजल में इसोब्यूटेनॉल मिलाकर चलाने का प्रयोग भी जारी है। और गांवों में बायोगैस प्लांट लगाकर किसानों की आमदनी बढ़ाने की कोशिश भी की जा रही है।
भारत की गाड़ी बाजार अब दुनिया में तीसरे नंबर पर पहुंच गई है। गडकरी का सपना है कि आने वाले कुछ सालों में हम पहले नंबर पर हों। इसके लिए जरूरी है कि गाड़ियां हाइड्रोजन इलेक्ट्रिक इथेनॉल और बायोगैस जैसे विकल्पों पर चलें। यही वजह है कि अब ऑटो कंपनियां भी अपना पैसा इन्हीं टेक्नोलॉजी पर लगा रही हैं और देश एक नई ईंधन क्रांति की तरफ आगे बढ़ रहा है।
