छह महीने बाद भी बदला नहीं किसान आंदोलन

नई दिल्ली: किसान आंदोलन का तेवर अब भी जस का तस है। अगर शुरुआती दिनों से इसकी तुलना की जाय तो अभी यहां भीड़ कम…

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नई दिल्ली: किसान आंदोलन का तेवर अब भी जस का तस है। अगर शुरुआती दिनों से इसकी तुलना की जाय तो अभी यहां भीड़ कम है, लेकिन किसानों ने अपनी व्यवस्था पहले से अधिक चाक चौबंद कर ली है। भीषण गर्मी से बचने के लिए किसानों ने धरना स्थल पर वाटर कूलर, एयर कूलर, एसी लगा लिया है। बरसात से बचने के लिए टीन और वाटर प्रूफ टेंट लगाया है।

सिंघु बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा का मंच करीब चालीस गुणा सौ वर्ग फुट क्षेत्रफल का है। तेज धूप हो, आंधी-बरसात हो टीन शेड के मंच पर इसका खास असर नहीं होगा। इसके चारों तरफ बड़े-बड़े फर्राटा पंखे व कूलर लगे हैं। मंच किसान नेताओं से भरा था और सामने सैकड़ो किसान बैठकर भाषण सुन रहे थे। मंच से किसान नेता दम भर रहे थे कि वह गुरु अर्जनदेव के विरासत हैं, बिना अपना हक वापस लिये दिल्ली से वापस नहीं जाएंगे। मंच के बाईं तरफ सेवादार शरबत बनाने व बांटने में जुटे थे। ठीक सामने बांस की पटरियों से बना एक सुंदर मेडिकल कैंप नजर आया। यहां भीड़ नहीं दिखी, मेडिकल कैंप पर मौजूद अंकित ने बताया कि सुबह शाम यहां दवा देने वालों की भीड़ होती है। डॉक्टर भी लोगों की जांच करने आते हैं। बगल में ही एक ट्राली नजर आई, जिसकी छत वाटरप्रूफ टेंट से ढकी थी, इसे चारों तरफ से हरे रंग की नेट से घेरा गया था। मच्छरों से बचने के लिए करीब सभी टेंटों को इसी प्रकार हरे रंग की नेट से कवर किया गया था। प्रत्येक टेंट में कूलर या एसी लगे नजर आए। थोड़ी-थोड़ी दूर पर वाटर कूलर की बड़ी मशीनें भी नजर आईं। ताकि किसानों और यहां आने वाले बाकी लोगों को पीने के लिए ठंड़ा पानी मिल सके। सड़कें साफ सुथरी दिखीं, टेंट के सामने गमले भी रखे हुए थे। यहां भीड़ कम थी, लेकिन व्यवस्था पहले से चाक चौबंद थी।

व्यवस्थाओं की बात की जाय तो टीकरी बॉर्डर पर सिंघु जितनी अच्छी व्यवस्था नहीं दिखी। लेकिन यहां भी किसानों के तेवर ऐक जैसे हैं। किसान अपने इरादे पर अटल नजर आए। किसान नेता पुरुषोत्तम उदत ने कहा कि सरकार की जितनी मर्जी हो उन्हें सड़कों पर बैठाके रखे। लेकिन किसान बिना तीनों कृषि कानूनों को वापस किए दिल्ली से वापस नहीं जाएंगे। ट्रैक्टर और ट्रालियों की संख्या पहले की तुलना में यहां कम नजर आईं। किसानों ने बताया कि धान की रोपाई का समय है, ऐसे में बड़ी संख्या में नौजवान मौजूदा समय खेती के काम के लिए घर लौट गए हैं। लेकिन जल्द ही वो फिर यहां लौट आएंगे। धरना स्थल पर यहां पहले जैसी रौनक नहीं थी। सड़क के दोनों तरफ जगह-जगह जल जमाव और कीचड़ भी नजर आया। किसानों ने बताया कि मच्छरों का प्रकोप अधिक है, लेकिन वह हर मुसीबत का सामना करने को तैयार हैं। धरना स्थल के दोनों तरफ की दुकानें खुली हुई थीं, किसान गलियों में सब्जी व खाने पीने के दूसरे सामान खरीदते दिखे। किसानों ने गर्मी से बचने के लिए फर्राटे पंखे लगा रखे थे, कई किसानों ने कूलर का बंदोबस्त भी किया है।

सिंघु बॉर्डर 26 नवम्बर 2020 से बंद है। इसके कारण जीटी करना रोड से दिल्ली-हरियाण-पंजाब का आवागमन बाधित है। लेकिन मौजूदा समय बॉर्डर पर स्थित सिंघु गांव का लिंक रोड लोगों के लिए वरदान साबित हुआ है। छोटे वाहनों के लिए यह रास्ता लाइफ लाइन की तरह है। धरना स्थल के पहले दिल्ली पुलिस ने तीन लेयर की बैरीकेडिंग की है। सबसे पहली बैरीकेडिंग से दाहिनी ओर एक रास्ता निकलता है, जो कि सिंघु गांव से होते हुए करीब दो किलोमीटर की दूरी तय करते हुए जाठी रोड़ पर जाकर जुड़ता है। जाठी रोड आगे किसान धरना स्थल के बीचोबीच जुड़ता है। लेकिन किसानों ने आम लोगों को यहां से निकलने की जगह दी है। छोटे वाहन इस रास्ते से दिल्ली-करनाल-चंडीगढ़ आवागमन कर पा रहे हैं। 

आंदोलन लंबा खिंचने के साथ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों की भीड़ जरूर कम हुई है लेकिन जो हैं उनका हौसला बुलंद है। वे कहते हैं कि कानून वापस कराकर ही लौटेंगे। अब देखना यह है कि आने वाला मानसूनी मौसम किसान किस तरह बिताएंगे।