दर्द से टूटा शरीर लेकिन हौसला बरकरार, इंदौर की शिक्षिका ने राष्ट्रपति से मांगी इच्छामृत्यु

इंदौर शहर से एक ऐसी खबर सामने आई है जिसने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। जबरान कॉलोनी के सरकारी मिडिल स्कूल…

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इंदौर शहर से एक ऐसी खबर सामने आई है जिसने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। जबरान कॉलोनी के सरकारी मिडिल स्कूल में पढ़ाने वाली 52 साल की शिक्षिका चंद्रकांता जठवानी ने राष्ट्रपति से इच्छामृत्यु की इजाजत मांगी है। पिछले चार साल से वह रोज व्हीलचेयर पर बैठकर स्कूल आती हैं और बच्चों को पढ़ाती हैं। लेकिन अब उनका शरीर इतना कमजोर हो गया है कि दर्द सहना मुश्किल हो गया है। बावजूद इसके वो आत्महत्या नहीं करना चाहतीं क्योंकि वह अपने छात्रों को हर हाल में जीना सिखाती हैं।चंद्रकांता को 2020 में एक इलाज के दौरान डॉक्टर की लापरवाही का शिकार होना पड़ा। उनकी हड्डियों का इलाज ठीक से नहीं हुआ और तब से उनके शरीर का निचला हिस्सा काम नहीं करता। वो एक दुर्लभ बीमारी से भी जूझ रही हैं जिससे शरीर की हड्डियां बहुत कमजोर हो जाती हैं। हालत ये है कि अब हर दिन उठना बैठना चलना सब कुछ बेहद तकलीफदेह हो गया है। लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी।उन्होंने राष्ट्रपति को पत्र लिखते हुए कहा कि वह आत्महत्या नहीं करेंगी क्योंकि उन्होंने हमेशा अपने छात्रों को हिम्मत से जीने की सीख दी है। लेकिन अब उनका शरीर जवाब दे चुका है। हर दिन असहनीय दर्द से गुजरना पड़ता है। इसलिए वह चाहती हैं कि उन्हें गरिमामयी मृत्यु की इजाजत दी जाए ताकि उनके अंग दूसरों की जिंदगी में उजाला ला सकें।चंद्रकांता पिछले चार साल से व्हीलचेयर पर बैठकर रोजाना आठ घंटे स्कूल में पढ़ा रही हैं। उनके इस जज्बे को स्कूल के स्टाफ और छात्र दोनों सलाम करते हैं। स्कूल के प्रिंसिपल सखाराम प्रसाद ने बताया कि वह विज्ञान पढ़ाती हैं और बहुत समर्पित शिक्षिका हैं। हालांकि उन्होंने कभी उनसे इच्छामृत्यु की बात नहीं की।चंद्रकांता की जिंदगी में कोई परिवार नहीं है। उन्होंने अपनी पूरी संपत्ति छह गरीब छात्रों के नाम कर दी है। साथ ही अपने अंग इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज को दान करने की घोषणा की है। उनका कहना है कि उनके अंग उनके लिए भले ही किसी काम के नहीं हों लेकिन अगर किसी की आंखों की रोशनी या जान बचा सकें तो वह कोहिनूर से भी अनमोल होंगे।उनकी इस भावुक अपील ने पूरे देश में गरिमामयी मृत्यु। अंगदान। और लंबी बीमारी से जूझ रहे लोगों के अधिकारों को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है।