नैनीताल इस नाम को सुनते ही मन में ठंडक, सुकून और प्रकृति की अद्भुत सुंदरता का एहसास होता है। यह सिर्फ एक पहाड़ी शहर नहीं, बल्कि उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की संस्कृति, इतिहास और प्राकृतिक वैभव का जीवंत प्रतीक है। देश-दुनिया से हर साल लाखों लोग नैनीताल की वादियों, हरी-भरी पहाड़ियों और शुद्ध आबोहवा का आनंद लेने आते हैं। नैनी झील, जो इस शहर का दिल और आत्मा है, अपनी पवित्रता और मनमोहक दृश्य से हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देती है।
पौराणिक त्रि-ऋषि की कथा : स्कंद पुराण के मानस खंड में नैनीताल को ‘त्रि-ऋषि सरोवर’ कहा गया है। यहाँ तीन महान ऋषि—अत्री, पुलस्थ्य और पुलाहा—तपस्या करने आए थे। कहा जाता है कि इस क्षेत्र में उन्हें पीने का पानी नहीं मिला। अपनी तपस्या के बल पर उन्होंने तिब्बत स्थित पवित्र मानसरोवर झील का जल लाकर इस क्षेत्र में बड़े गड्ढे में डाल दिया। यही जल आज नैनीताल की झील में है। माना जाता है कि यहाँ डुबकी लगाने का महत्व मानसरोवर में डुबकी लगाने जितना ही पवित्र है।
शक्ति पीठ और नैना देवी का महत्व: नैनीताल ’64 शक्तिपीठों’ में से एक माना जाता है। यहाँ सती की बायीं आँख गिरी थी, जिसे नैनीताल का संरक्षक देवता माना गया। ताल के उत्तरी छोर पर स्थित नैना देवी का मंदिर आज भी धार्मिक श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण स्थल है। इस कारण इस जगह को पहले ‘नैन-ताल’ कहा गया, जो बाद में नैनीताल के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
अंग्रेजों का आगमन और नगर का निर्माण : 1839 में अंग्रेज व्यापारी पी. बैरन नैनीताल पहुँचे और इसकी प्राकृतिक सुंदरता देखकर मंत्रमुग्ध हो गए। उन्होंने स्थानीय थोकदार नूरसिंह से क्षेत्र खरीदने का प्रयास किया। नूरसिंह ने पहले मना किया, लेकिन बाद में ताल में नौकायन के दौरान डर के चलते दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर कर दिए। इसके बाद 1842 में नैनीताल में पहला कॉटेज ‘पिलग्रिम’ बनवाया गया। धीरे-धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी ने पूरे क्षेत्र पर अपना अधिकार स्थापित किया और नैनीताल को व्यवस्थित नगर का रूप दिया।
नैनीताल का जन्मदिन : नैनीताल का औपचारिक जन्म 18 नवंबर 1841 को हुआ था। इस दिन से लेकर आज 18 नवंबर 2025 तक नैनीताल 184 साल और 11 महीने से अधिक का हो चुका है। जन्मदिन के अवसर पर पूरे शहर में प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक वैभव और ऐतिहासिक महत्व का जश्न मनाया जाता है।
हिल स्टेशन और प्रशासनिक केंद्र : 1847 तक नैनीताल एक लोकप्रिय हिल स्टेशन बन गया और 3 अक्टूबर 1850 को नगर निगम का गठन हुआ। 1862 में यह उत्तर पश्चिमी प्रांत का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय बन गया। शहर में शानदार बंगलों, मनोरंजन केंद्रों, क्लब, सचिवालय और अन्य प्रशासनिक इकाइयों का निर्माण हुआ। आज भी नैनीताल में राजभवन और उच्च न्यायालय स्थित हैं, जो इसके ऐतिहासिक और प्रशासनिक महत्व को दर्शाते हैं।
आज नैनीताल: आज नैनीताल केवल एक पर्यटन स्थल ही नहीं है, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अद्वितीय शहर है। यहाँ की शुद्ध हवा, हरियाली और नैनी झील की पवित्रता हर किसी के दिल को छू जाती है। पौराणिक ऋषियों की तपस्या की कथा, शक्तिपीठों की धार्मिक महत्ता और अंग्रेजों द्वारा बसाए गए नगर की सुंदरता—सब मिलकर नैनीताल को हर मौसम में पर्यटकों के लिए स्वर्ग बनाते हैं।
