महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के नवरगांव का रहने वाला अनुराग अनिल बोरकर सिर्फ उन्नीस साल का था। गांव का हर शख्स उस पर फख्र करता था। नीट परीक्षा में निन्यानवे दशमलव निन्यानवे परसेंटाइल लेकर उसने ओबीसी श्रेणी में चौदह सौ पचहत्तरवीं रैंक हासिल की थी। एमबीबीएस में दाखिला तय हो चुका था। मां बाप का अरमान था कि बेटा डॉक्टर बने। गांव की उम्मीद थी कि वह नाम रोशन करेगा। लेकिन यह सपना अनुराग का कभी था ही नहीं।
गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए जिस दिन उसे रवाना होना था। उसी दिन उसने अपने ही घर में फांसी लगाकर जान दे दी। कमरे में किताबों का ढेर पड़ा था। दीवार पर टाइम टेबल चिपका था। सपनों की फाइल अधूरी रह गई। बीच में ही एक सुसाइड नोट मिला। उसमें साफ लिखा था। मैं डॉक्टर नहीं बनना चाहता।
घरवाले और गांव वाले जहां बेटे की नई शुरुआत की तैयारी में थे। वहीं सब कुछ खत्म हो गया। पुलिस ने अब तक सुसाइड नोट को सार्वजनिक नहीं किया है। लेकिन स्थानीय लोगों के मुताबिक उसमें यही लिखा था। डॉक्टर बनने की राह अनुराग की नहीं थी। उसने दबाव के बीच यह कदम उठाया।
