नई दिल्ली: विशेषज्ञों का कहना है कि वैक्सीन लगने के बाद भी शरीर में एंटीबॉडी बनते हैं। अगर ऐसे व्यक्तियों की सीरो सर्वे में जांच की जाएगी तो वह पॉजीटिव ही मिलेंगे लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि उन्हें प्राकृतिक संक्रमण हुआ है। चूंकि देश में पिछले पांच महीने से टीकाकरण चल रहा है। इसलिए सीरो सर्वे में टीकाकरण को भी साथ लेना जरूरी है।
जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. चंद्रकांत लाहरिया ने कहा कि एंटीबॉडी की पहचान करने के लिए सीरो-सर्वे में किस टेस्ट किट का इस्तेमाल किया जाता है, यह काफी मायने रखता है। फिलहाल अधिकतर सीरो सर्वे वैक्सीन और प्राकृतिक संक्रमण दोनों से एंटीबॉडी बताएंगे लेकिन अगर व्यक्ति के टीकाकरण की स्थिति ज्ञात है तो उसकी समीक्षा की जा सकती है।
दूसरी लहर के दौरान सीरो सर्वे करने पर पता चला है कि 55.7 फीसदी बच्चे और 63.5 फीसदी वयस्क कोरोना की चपेट में आकर संक्रमित हुए और फिर ठीक भी हो गए। इन लोगों को पता ही नहीं था कि संक्रमण कैसे और कब हुआ? इस सर्वे के दौरान डॉक्टरों ने एलाइजा जांच किट का इस्तेमाल किया था।
चूंकि वैक्सीन लगने या फिर कोरोना संक्रमण होने के बाद शरीर में एंटीबॉडी बनने लगती हैं। सीरो सर्वे के दौरान भी एंटीबॉडी का ही टेस्ट होता है। नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया समेत कई विशेषज्ञों का मानना है कि सर्वे में टीकाकरण को भी शामिल किया जाना चाहिए।
दिल्ली एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि सीरो सर्वे के परिणाम काफी सकारात्मक मिले हैं। यह इसलिए भी क्योंकि तीसरी लहर के दौरान बच्चों को विशेषतौर पर खतरा होने की बात कही जा रही थी लेकिन सर्वे में साफ पता चल रहा है कि बच्चे और बड़े दोनों को बराबर का खतरा है। किसी एक वर्ग के लिए संक्रमण का खतरा नहीं है।
डॉ. गुलेरिया ने कहा कि व्यापक परिणाम के लिए हमें बड़े स्तर पर ऐसा सर्वे करने की आवश्यकता है। आईसीएमआर की अलग-अलग टीमें चौथा सीरो सर्वे कर रही हैं। उन्होंने कहा कि सर्वे के दौरान जिन जगहों पर सैंपल लिए गए हैं अगर वहां ऐसे हालात हैं तो पूरी उम्मीद है कि अन्य जगहों पर भी ऐसे हालात हो सकते हैं।
डॉ. गुलेरिया ने कहा कि इस सर्वे से दो बातें मुख्यत: पता चलती हैं। पहली यह कि बड़ी संख्या में बच्चों को हल्का संक्रमण हो जाता है और वे ठीक हो जाते हैं और दूसरी बात यह है कि बड़े बच्चों को पहले ही संक्रमण हो चुका है इसलिए उनमें दोबारा संक्रमण होने की संभावना कम है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि यह संभावना नहीं है कि बच्चों को गंभीर संक्रमण होगा या बड़ी संख्या में बच्चे संक्रमित होंगे।
एक बार जब कोई व्यक्ति कोविड से संकेरमित हो जाता है, तो उसके बाद के चार से छह महीनों के भीतर, एंटीबॉडी कम हो जाती है, लेकिन व्यक्ति की कोशिका-मध्यस्थ प्रतिरक्षा महीनों और वर्षों तक रहती है।
इसके अलावा अस्थि मज्जा में मौजूद स्मृति कोशिकाओं के जरिए भी वायरस की जानकारी मिलती है। इसलिए जब भी व्यक्ति वायरस के संपर्क में आता है, तो उसकी स्मृति कोशिकाएं शरीर को उत्तेजित करती हैं और अस्थि मज्जा और अन्य कोशिकाएं वायरस को मारने के लिए बड़ी संख्या में एंटीबॉडी का उत्पादन शुरू कर देती हैं।

