नेपाल में जेन जेड विरोध प्रदर्शनों के दमन की जांच कर रहे न्यायिक आयोग ने बड़ा कदम उठाया है। आयोग ने अपदस्थ प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली समेत पांच लोगों के पासपोर्ट जब्त करने की सिफारिश की है। इनमें पूर्व गृहमंत्री रमेश लेखक के अलावा तीन पूर्व वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हैं। आयोग ने साफ कर दिया है कि इन सभी को अब काठमांडू छोड़ने से पहले अनुमति लेनी होगी ताकि जांच के दौरान उनकी जवाबदेही तय हो सके।
आठ सितंबर को शुरू हुए जेन जेड प्रदर्शनों के पहले ही दिन पुलिस गोलीबारी में उन्नीस लोगों की मौत हुई थी। इसके अगले दिन ओली को पद से हटना पड़ा। भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर पाबंदी के खिलाफ दो दिन तक चले इस आंदोलन में अब तक पचहत्तर लोग जान गंवा चुके हैं। इसके बाद सुशीला कार्की ने अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली और इक्कीस सितंबर को मंत्रिमंडल की बैठक में न्यायिक जांच आयोग बनाने का फैसला हुआ।
जिन नामों पर जांच आयोग ने सिफारिश की है उनमें पूर्व गृह सचिव गोकर्ण मणि दुवादी राष्ट्रीय जांच विभाग के पूर्व प्रमुख हुतराज थापा और काठमांडू के पूर्व मुख्य जिला अधिकारी छवि रिजाल भी हैं। आयोग का कहना है कि इन अधिकारियों पर कार्रवाई से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि जांच आगे बढ़ने पर वे जवाबदेही से बच न पाएं।
इस बीच ओली ने खुद पर लगे आरोपों से इनकार किया है। उन्होंने भक्तपुर में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि उन्होंने कभी भी जेन जेड प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश नहीं दिया। पद छोड़ने के बाद अपने पहले बयान में ओली ने कहा था कि प्रदर्शनकारियों पर स्वचालित हथियारों से गोलियां दागी गईं जबकि पुलिस के पास ऐसे हथियार नहीं होते। उन्होंने इस पूरे मामले की स्वतंत्र जांच की मांग की है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी ओली सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। आयोग ने कहा है कि सरकार विरोध प्रदर्शनों की तीव्रता का अंदाजा लगाने में नाकाम रही और सुरक्षा बलों ने भीड़ पर जरूरत से ज्यादा बल प्रयोग किया। सुरक्षा सूत्रों के मुताबिक आठ सितंबर को पुलिस और अन्य बलों ने प्रदर्शनकारियों को तितर बितर करने के लिए एसएलआर और इंसास राइफल से लेकर पिस्तौल तक से हजारों राउंड फायर किए।
