देहरादून। उत्तराखंड की पहाड़ी भाषाओं को नई पहचान देने के लिए राज्य के दो आईटी पेशेवरों ने एक वेबसाइट तैयार की है। यह वेबसाइट गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी जैसी भाषाओं को डिजिटल दुनिया से जोड़ने का काम करेगी। इसे जनता के लिए खोल दिया गया है और अब कोई भी इस पर जाकर चैट जीपीटी की तरह सवाल पूछ सकता है और उत्तर गढ़वाली में पा सकता है।
इस पहल का उद्देश्य पहाड़ी भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन में मदद करना है। वेबसाइट का नाम pahadi.ai रखा गया है और इसकी शुरुआत राज्य के कैबिनेट और भाषा मंत्री सुबोध उनियाल ने देहरादून में की।
इस प्लेटफॉर्म को बनाने वाले जय आदित्य नौटियाल और सुमितेश नैथानी ने इसकी रूपरेखा विदेश में रहते हुए तैयार की थी। जय नौटियाल मूल रूप से उत्तरकाशी के पालर गांव से हैं और सुमितेश नैथानी पौड़ी के नयालगढ़ गांव से हैं। उन्होंने उत्तरकाशी और श्रीनगर के गांवों में जाकर स्थानीय बोलियों, उच्चारण और ध्वनियों का गहन अध्ययन किया।
इस प्रोजेक्ट में करीब डेढ़ साल का समय लगा। आवाज के तौर पर गणेश खुगशाल ‘गणी’ की रिकॉर्डिंग का इस्तेमाल किया गया है। वह एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में लोक कला और संस्कृति केंद्र के निदेशक भी हैं। फिलहाल इस एआई प्लेटफॉर्म में गढ़वाली भाषा का डाटा शामिल किया गया है और भविष्य में कुमाऊंनी और जौनसारी भाषाओं का डाटा भी इसमें जोड़ा जाएगा।
गणेश खुगशाल बताते हैं कि पहाड़ी भाषाओं पर काम हमेशा कम हुआ है और राजनीतिक तौर पर भी इन भाषाओं को पर्याप्त समर्थन नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि आज की युवा पीढ़ी तकनीक के माध्यम से अपनी भाषाओं के प्रति सजग और उत्साहित है। मोबाइल और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से यह प्रयास आने वाले समय में इन भाषाओं के संरक्षण में बहुत मददगार साबित होगा।
वेबसाइट का इस्तेमाल करना आसान है। pahadi.ai पर जाकर निःशुल्क लॉग इन किया जा सकता है। चैट बटन दबाने पर चैट जीपीटी जैसा इंटरफेस खुल जाएगा। यूजर टेक्स्ट या माइक्रोफोन से प्रश्न पूछ सकता है और उत्तर स्क्रीन पर गढ़वाली में देख सकता है। स्पीकर बटन से उत्तर को आवाज में भी सुना जा सकता है। सभी चैट्स स्वतः सेव रहती हैं।
