पिथौरागढ़ की चौदास घाटी में औषधीय पादपों की खेती से संबंधित कार्यशाला आयोजित

अल्मोड़ा। गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल अल्मोड़ा के जैव विवधता संरक्षण एवं प्रबंधन केन्द्र की ओर से पिथौरागढ़ जनपद के सीमावर्ती…

A workshop on the cultivation of medicinal plants was organized in the Chaudas Valley of Pithoragarh.

अल्मोड़ा। गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल अल्मोड़ा के जैव विवधता संरक्षण एवं प्रबंधन केन्द्र की ओर से पिथौरागढ़ जनपद के सीमावर्ती क्षेत्र, चौदास घाटी में दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन 4 और 5 दिसंबर 2025 को किया गया। बताया गया कि कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य स्थानीय समुदाय को औषधीय पादपो की महत्वता, कृषिकरण, एवं आजीविका इत्यादि पर जानकारी प्रदान करना था।

कार्यशाला का संचालन करते हुए संस्थान के वैज्ञानिक डा० अमित बहुखण्डी द्वारा स्थानीय कृषकों को संस्थान द्वारा विगत वर्षों में चौदास घाटी में किये जा रहे विभिन्न औषधीय पादपों जैसे वन हल्दी, सम्यों कूट, जम्बू इत्यादि के सफल कृषिकरण पर जानकारी प्रदान की गई। उन्होंने बताया कि संस्थान निदेशक डा० आई०डी० भट्ट के दिशा-निर्देशन में वर्ष 2018 से ही चौदास घाटी के कृषकों को औषधीय पादपों के कृषिकरण हेतु जोड़ा गया है। साथ ही आर्गनिक कृषि को बढ़ावा देने एवं बाजारीकरण हेतु क्वालिटी काउंसिल ऑफ इण्डिया, नई दिल्ली द्वारा विभिन्न पादपो (सम्मों, वन हल्दी) का पंजीकरण कराया गया है। वर्तमान में अदिति ऑर्गेनिक प्राइवेट लिमिटेड , बैंगलोर के सीनियर इंस्पेक्टर नयन ज्योति बोराह द्वारा घाटी में उगाए जा रहे सम्यो पौधों का निरीक्षण, एवं दस्तावेजीकरण किया गया ताकि उनके उत्पादों को ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन प्राप्त हो सके।

इस दौरान वरिष्ठ वैज्ञानिक डा० के०एस० कनवाल ने प्रतिभागियों को बताया कि वर्तमान में संस्थान को डी०बी०टी०, भारत सरकार, नई दिल्ली एवं आई०सी०ए oआर० नई दिल्ली, द्वारा पोषित परियोजनाओं को पिथौरागढ़ के चौदास दारमा, व्यास एवं बागेश्वर के विभिन्न ग्रामों में संचालित किया जा रहा है। जिसका मुख्य उद्‌देश्य, जम्बू, कुटकी, वन हल्दी, कूट, एवं रोजमेरी आदि का वृहद कृषिकरण बंजर भूमि में किया जाना है। इसी उद्देश्य के तहत संस्थान विभिन्न क्षेत्रों में जाकर स्थानीय समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित कर रहा है एवं कृषि हेतु बीज सामाग्री तथा तकनीकी ज्ञान प्रदान कर रहा है। उक्त प्रयास हिमालयी जड़ी-बूटी संरक्षण एवं संवर्धन में सहायक सिद्ध होगा।

परियोजना में कार्यरत डा० बसंत सिंह द्वारा प्रतिभागियों को बताया गया कि औषधीय पादपों की मांग निरंतर देश-विदेश में बढ़ रही है जिसकी खपत पूर्ण करने हेतु कृषि एक मुख्य विकल्प के रूप में उभर रहा है। । साथ ही यह हमारी आजीविका वृध्दि में भी सहायक सिध्द हो सकता है। अतः हम विथौरागढ़ जनपद के विभिन्न क्षेत्रों में औषधीय पादपों के कृषिकरण हेतु जागरूकता अभियान एवं बीज सामाग्री आवंटित कर रहे है जिसका लाभ क्षेत्र को ओषधीय पादपों के कृषिकरण में विख्यात करने में सहायक होगा। इसी क्रम मे मुकेश सिंह मेर ने बताया कि श्री नारायण आश्रम में स्थापित नर्सरी में विभिन्न पौधों को तैयार किया जा रहा है एवं आवश्यकताअनुसार समय-समय पर स्थानीय कृषकों को कृषिकरण हेतु निशुल्क प्रदान किया जाता है। साथ ही संस्थान द्वारा प्रगतिशील कृषको का पजीकरण एच०आर०डी० आइ ० गोपेश्वर में किया जाता है ताकि कृषकों को उत्पादित पादपो को बेचने में किसी प्रकार की परेशानी ना हो।

कार्यशाला में वरदान सेवा समिति के प्रतिनिधि लक्ष्माण मतोलिया एवं उमेद प्रसाद वर्मा द्वारा बताया गया कि सस्थान के आईoईoआर०पी० द्वारा चौदास घाटी में औषधीय पौधों के कृषि हेतु परियोजना पोषित की गई है। जिसके तहत ग्राम नियांग एवं पस्ती में औषधीय पौधों की नर्सरी स्थापित की जा रही है जिसका लाभ स्थानीय समुदायों द्वारा अर्जित किया जा सकता है। कार्यशाला में उपस्थित ग्राम सभा सोसा के ग्राम प्रधान सुरेखा देवी द्वारा संस्थान के संस्थान के द्वारा किये जा रहे विविध प्रयासों की सराहना की गई एवं भविष्य में विभिन्न सरकारी योजनाओं जैसे मनरेगा एवं हार्टीकल्चर मिशन को परियोजना से जोड़‌ने का प्रयास किया जाएगा। इस अवसर पर सुरेंद्र सिंह, बहादुर सिंह, ममता, भागीरथी दीवान सिंह, द्वारा विचार व्यक्त किए गए एवं कार्यशाला में 80 कृषकों द्वारा प्रतिभाग किया गया।

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