उठी मांग— अल्मोडा में स्थापित सहकारिता निदेशालय को देहरादून स्थानान्तरित न किया जाए

Newsdesk Uttranews
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उत्तरा न्यूज अल्मोड़ा। पूर्व दर्जा मंत्री बिट्टू कर्नाटक ने अल्मोड़ा में स्थित निबंधक सहकारिता निदेशालय को देहरादून स्थानांतरित नहीं किए जाने की मांग की है।

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उन्होंने कहा कि वन एवं ग्राम्य विकास विभाग(Forest and Rural Development Department) के शासनादेष के बाद 31 मार्च 2001 के अनुसार निदेशालय का मुख्यालय देहरादून अस्थायी राजधानी रहने तक अल्मोडा स्थापित किया गया है । वर्ष 2001 से उक्त मुख्यालय सुचारू रूप से अल्मोडा में संचालित हो रहा है । शासन के कतिपय अधिकारियों द्वारा षड़यंत्र रच कर अल्मोड़ा में स्थापित सहकारिता निदेशालय को देहरादून स्थानान्तरित करने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि देहरादून अभी अस्थाई राजधानी(Temporary capital) है ।

उन्होंने आरोप लगया कि विगत कुछ समय से कुमांऊ की लगातार उपेक्षा की जा रही है । जिस क्रम में इस पर्वतीय राज्य के पर्वतीय जनपदों से लगातार कार्यालयों को स्थानान्तरित कर देहरादून ले जाने का काम वर्तमान सरकार के सम्मुख बेलगाम अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है । किन्तु दुर्भाग्य की बात है कि इस पर्वतीय राज्य में जहां राज्य निर्माण के लिये अनेकों लोगों ने अपनी शहादत दी वहीं आज राज्य की मूल अवधारणा को समाप्त कर कुछ भ्रष्ट अधिकारी मनमानी करते में लगे हैं और सरकार मूक दर्शक बन कर उनके हाथ की कठपुतली(Puppet) बनी हुई है ।

कहा कि सहकारिता सचिव आर.मीनाक्षी सुन्दरम के हस्ताक्षरों से 25 अक्टूबर 2019 को जो आदेश जारी किया गया है इसमें शासनादेष संख्या 23 दिनांक 31 मार्च 2001 को अतिक्रमित करते सहकारिता निदेशालय(Directorate of cooperatives) को देहरादून स्थानान्तरित करने के आदेश दिये गये हैं ।

कर्नाटक ने कहा कि सहकारिता विभाग के मुख्यालय को अल्मोडा में स्थापित करने के लिये पूर्व की कैबिनेट द्वारा स्पष्ट प्रस्ताव पारित किया गया था कि जब तक स्थायी राजधानी का निर्णय नहीं हो जाता तब तक मुख्यालय अल्मोडा ही रहेगा । उच्च अधिकारियों की मिलीभगत एवं पर्वतीय जनपदों की उपेक्षा तथा केवल देहरादून में ही जमे रहने की लालशा से षडयन्त्र रच कर निदेशालय को देहरादून स्थापित करने का आदेश जारी किया गया है।

उन्होंने चेतावनी दी कि यथाशीघ्र इस आदेश को निरस्त नहीं किया गया और षड़यंत्रकारी अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्यवाही नहीं की गयी तो पर्वतीय जनपदों के आम जनमानस को सडकों में उतरकर सरकार के खिलाफ उग्र आन्दोलन को बाध्य होना पडेगा जिसकी पूर्ण जिम्मेदारी सरकार व शासन की होगी ।