जोशो खरोश और उत्साह के साथ पाटिया में खेली गयी बग्वाल
अल्मोड़ा। ताकुला विकासखण्ड के ऐतिहासिक गांव पाटिया में पूरे रीति रिवाज के साथ बग्वाल संपन्न हो गई। बता दे कि यह परंपरा कई सदियों से चली आ रही है। इस बा भी ग्रामीणों ने सदियों से चली आ रही परंपरा को निभाते हुए बग्वाल खेली। सर्वप्रथम पाटिया गांव के गायखेत में गाय की पूजा कर बग्वाल की अनुमति मांगी। ग्राम प्रधान हेम आर्या की मौजूदगी में सामाजिक कार्यकर्ता पूरन चन्द्र पाण्डे और हेम चन्द्र पाण्डे ने पूजा कार्य संपन्न कराया। पाटिया खाम के अगुवा रहने वाले पिलखवाल खाम की अनुपस्थिति में उनके प्रतिनिधि रवि भोज ने पाटिया खाम का नेतृत्व किया। जबकि कोटयूड़ा खाम की ओर से कुंदन सिंह बिष्ट ने अगुवाई की।
सोमवार को आयोजित बग्वाल में पाटिया क्षेत्र के पचघटिया में खेले गये इस बग्वाल में पाटिया— भटगांव तथा कोटयूड़ा— कसून के ग्रामवासियो ने भाग लिया जबकि क्षेत्र के दर्जना गांवों के वाशिंदे इस पाषाण युद्ध के गवाह बने। पाटिया और कोट्यूड़ा के बीच मूलतः खेले जाने वाले इस युद्ध में कोटयूड़ा के साथ कसून और तथा पाटिया के साथ भटगांव के योद्धाओं ने शिरकत की। पत्थर युद्ध का आगाज पाटिया गांव के अगेरा मैदान में गाय खेत में गाय की पूजा के साथ षुरू हुआ ,जहा पर मान्यता के अनुसार पिलख्वाल खाम की अनुपस्थिति में उनके प्रतिनिधि चीड़ की टहनी खेत मे गाड़कर बग्वाल की अनुमति मांगी । इसके बाद मैदान को पार कर यह पाटिया पक्ष के लोगपचघटिया ( स्थानीय नदी ) के एक छोर पर गये और दूसरे छोर पर मौजूद कोटयूड़ा और कसून के लोगों के साथ उन्होने पत्थर युद्ध खेला। लगभग पौन घंटे तक चली बग्वाल में पाटिया पक्ष के रवि भोज के पचघटिया में पानी को छूकर पीने के साथ ही इस अनोखे पाषाण युद्ध का समापन हो गया। इसके बाद लोगों ने एक दूसरे को बधाई दी और अगली बार मिलने का वादा कर विदा ली। प्राचीन समय में केवल ठाकुर (क्षत्रिय) लोगों द्वारा इस बग्वाल को खेला जाता था लेकिन अब समय बीतने के साथ ही हर जाति का व्यक्ति और युवा इस पत्थर युद्ध में पूरे जोश खरोश के साथशिरकत करता है।यह पत्थर युद्ध कबसे और क्यों खेला जा रहा है इस बारे में नयी और कुछ पुरानी पीढी को भी बहुत अधिक पता नहीं है लेकिन पुरखों की इस परम्परा को निभाने के लिए आज भी लोग पूरा समय देते हैं। सम्बन्धित क्षेत्र के युवाओं में पिछले कई दिन से इस युद्ध के आयोजन के लिए तैयारी शुरू हो जाती है।
हर वर्ष दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा के दिन आयोजित होने वाली बग्वाल के बारे में बड़े बुजुर्ग बताते है कि मान्यता है कि वर्षो पूर्व किसी आतताई को भगाने के लिए दोनों गांवो के लोगों ने एकजुट होकर उसे पत्थरबाजी कर पकड़ लिया था । और बाद में उसके भाग जाने और पानी पीने की मोहलत देने के अनुरोध पर ही गांव वासियों ने उसे छोड़ा था। हालाकिं नई पीढी इस कहानी के बारे में भी ज्यादा नहीं जानती है। पत्थर युद्ध नदी के दोनों छोरों से खेला जाता है और जिस टीम का व्यक्ति सबसे पहली पानी पीने पहुंच जाता है वही टीम विजयी घोषित हो जाती है। इसके साथ ही युद्ध का समापन हो जाता है। इस युद्ध की सबसे बढ़ी खासियत यह है कि युद्ध के दौरान पत्थरों से चोटिल हो जाने वाला योद्धा किसी दवा का इस्तेमाल नहीं करता बल्कि बिच्छू घास के उबटन को घाव पर लगाया जाता है। इस बार की बग्वाल में कोटयूड़ा खाम के तीन य़ोद्धा चोटिल हुए जिनका पंरपरागत तरीके से उपचार किया गया। पाटिया निवासी भगवती प्रसाद पाण्डे ने बताया कि पूर्वजों के दौर से चली आ रही यह परिपाटी जारी है लेकिन युद्ध का आगाज कबसे और किस कारण हुआ इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। यहां पर यह भी बताना जरूरी है कि सदियों से आपसी आयोजन से चल रही इस परम्परा को उभारने और चम्पावत के देवीधूरा की तर्ज पर इसका प्रचार प्रसार करने के प्रशासन द्वारा कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी है इसीलिए यह आयोजन प्रसिद्धि नहीं पा सका है।