आज के समय में सोशल मीडिया हमारी दिनचर्या का इतना जरूरी हिस्सा बन गया है कि सुबह आंख खुलते ही फोन उठाना और रात को उसी के साथ सो जाना आम बात हो गई है। कभी रील्स देखते हुए वक्त निकल जाता है, कभी पोस्ट लाइक करते रहते हैं और कई बार बिना किसी वजह बस यूं ही स्क्रॉल करते रहते हैं। हम यह मानकर चलते हैं कि सोशल मीडिया हमें थोड़ा सुकून देता है, लेकिन इसका ज्यादा इस्तेमाल दिमाग पर बोझ डालने लगता है और मानसिक सेहत पर सीधा असर छोड़ता है।
इसी बीच JAMA Network Open में आई एक ताज़ा रिसर्च ने इस चिंता को और बड़ा कर दिया है। अध्ययन में यह सामने आया कि सिर्फ एक हफ्ते के लिए सोशल मीडिया से दूरी बनाने पर युवाओं में डिप्रेशन के लक्षण लगभग 24 प्रतिशत घटे, एंग्जायटी करीब 16 प्रतिशत कम हुई और नींद बिगाड़ने वाली परेशानियों में भी करीब 14 प्रतिशत तक सुधार दिखा। ऐसे में अगर किसी को महसूस होता है कि मोबाइल की स्क्रीन उन्हें लगातार थका रही है या नींद पर असर डाल रही है, तो सात दिन का सोशल मीडिया डिटॉक्स एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है।
डिटॉक्स की शुरुआत अपने इरादे तय करने से होती है। सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि आप यह ब्रेक क्यों चाहते हैं। मन में चल रही बातों को कागज पर लिख देने से दिमाग डिटॉक्स के लिए तैयार होने लगता है और लक्ष्य साफ हो जाते हैं। इसके बाद सबसे बड़ा कदम नोटिफिकेशन बंद करना है, क्योंकि यही छोटी-छोटी टनटनाहटें फोन बार-बार हाथ में उठवा देती हैं। कई लोग ऐप्स को स्क्रीन से हटाकर किसी फोल्डर में डाल देते हैं जिससे उन्हें खोलने की आदत खुद कम हो जाती है।
जब स्क्रॉलिंग में खर्च होता समय खाली मिलता है, तो उसी वक्त को किसी अच्छी आदत में लगाया जा सकता है। किताब पढ़ना, थोड़ी एक्सरसाइज, किचन में कुछ नया बनाना या किसी पुराने शौक को दोबारा समय देना दिमाग को राहत देता है और धीरे-धीरे स्क्रीन से दूरी आसान होने लगती है। इस प्रक्रिया में ऑफलाइन जीवन से जुड़ना बहुत मदद करता है। बिना मोबाइल टहलने निकल जाना, पार्क में बैठना, परिवार के साथ बिना फोन के खाना खाना जैसे छोटे फैसले माहौल हल्का कर देते हैं और मूड भी सुधरने लगता है।
डिटॉक्स के बीच कुछ मिनट अपने मन को शांत रखने के लिए निकालना जरूरी है। गहरी सांस लेते हुए यह महसूस करना कि सोशल मीडिया से दूरी आपको कैसा अनुभव करा रही है, और दिन के अंत में यह सब एक छोटे नोट में लिख देना अपने भीतर हो रहे बदलाव समझने में मदद करता है। इसी दौरान असली दुनिया के रिश्तों से जुड़ाव भी बढ़ता है। जब फोन की पकड़ ढीली पड़ती है, तो दोस्तों और परिवार के लिए समय निकालना आसान हो जाता है और ऐसे रिश्ते मानसिक मजबूती देते हैं।
सातवें दिन पूरा हफ्ता पीछे मुड़कर देखने का समय होता है। यह समझना जरूरी है कि इस डिटॉक्स ने जीवन में क्या बदलाव लाए। क्या मन हल्का महसूस हुआ, क्या नींद सुधरी, क्या ध्यान पहले से ज्यादा टिकने लगा। इसी अनुभव के आधार पर आगे यह तय किया जा सकता है कि कौन सी आदतें जारी रखनी हैं ताकि रोजमर्रा की जिंदगी और संतुलित और सहज महसूस हो सके। सात दिन का यह छोटा सफर मानसिक सेहत में बड़ा फर्क ला सकता है।
