क्लाउड सीडिंग का प्रयोग फेल, दिल्ली की जहरीली हवा में बच्चों के फेफड़े भी खतरे में, विशेषज्ञों ने सचेत किया

दिल्ली की हवा जहरीली होती जा रही है, और हर सांस के साथ लोगों के फेफड़े प्रदूषण से भरते जा रहे हैं। उम्मीद थी कि…

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दिल्ली की हवा जहरीली होती जा रही है, और हर सांस के साथ लोगों के फेफड़े प्रदूषण से भरते जा रहे हैं। उम्मीद थी कि हाल ही में किए गए क्लाउड सीडिंग के प्रयोग से धुंध को कुछ राहत मिलेगी, लेकिन इस प्रयास ने केवल सवाल खड़े कर दिए हैं। मौसम वैज्ञानिक पहले ही बता चुके थे कि दिल्ली के आसमान में न तो पर्याप्त बादल हैं और न ही नमी, यानी बारिश की संभावना नगण्य थी। इसके बावजूद करोड़ों रुपए खर्च कर यह महंगा प्रयोग किया गया।

जलवायु विशेषज्ञ मंजरी शर्मा के अनुसार, यह पूरी प्रक्रिया वैज्ञानिक दृष्टि से गलत समय पर की गई। उन्होंने बताया कि भारत मौसम विभाग ने IIT दिल्ली को पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वायुमंडल में नमी बहुत कम है और क्लाउड सीडिंग की सफलता के लिए कम से कम 60-70 प्रतिशत नमी जरूरी होती है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि मान लें यह प्रयोग कुछ हद तक सफल भी होता, तो असर केवल दो से ढाई दिन तक ही रहता। प्रदूषण फिर लौट आता है और लगातार इस प्रक्रिया को दोहराने पर खर्च हर बार करोड़ों में होता है। अनुमान है कि अगर पूरे मौसम में इसे जारी रखा जाए तो 25 से 30 करोड़ रुपये तक का खर्च आ सकता है।

दिल्ली-एनसीआर की हवा इस समय इतनी सूखी और धूल से भरी है कि तकनीक की सफलता नामुमकिन थी। क्लाइमेट ट्रेंड्स की रिपोर्ट बताती है कि क्लाउड सीडिंग तभी असरदार हो सकती है जब पर्याप्त बादल मौजूद हों, लेकिन इस समय वायुमंडल पूरी तरह सूखा था।

प्रदूषण की मार सिर्फ प्रयोगों की नाकामी तक सीमित नहीं है। गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल के फेफड़ों के विशेषज्ञ डॉ. अरविंद कुमार ने बताया कि पिछले 30 वर्षों में उन्होंने मरीजों के फेफड़ों में भयावह बदलाव देखा है। पहले हल्के गुलाबी फेफड़े आज पूरी तरह काले हो चुके हैं। यह स्थिति अब सिर्फ धूम्रपान करने वालों तक सीमित नहीं रही; बच्चों और महिलाओं के फेफड़े भी जहरीले कणों से कोयले जैसे काले हो गए हैं।

मंजरी शर्मा का कहना है कि दिल्ली में सिर्फ कृत्रिम बारिश या सड़कों पर पानी छिड़कने से कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ेगा। असली जरूरत क्लीन एयर की मांग की है। अगर संभव हो तो जहरीली हवा से बचने के लिए लोगों को दिल्ली से दूर रहना ही बेहतर विकल्प है।

वायु प्रदूषण अब सिर्फ सांस लेने में तकलीफ नहीं बल्कि धीरे-धीरे मौत की प्रमुख वजह बन रहा है। हाल की रिपोर्टों के अनुसार, प्रदूषित हवा से जुड़ी बीमारियों में स्ट्रोक, फेफड़ों का कैंसर और हृदय रोग शामिल हैं। प्रदूषण बच्चों और युवाओं के फेफड़ों को कमजोर कर रहा है और यह हाइपरटेंशन, डायबिटीज़, एनीमिया और मल्टी-सिस्टम ऑर्गन फेलियर जैसी गंभीर स्थितियों का कारण बन सकता है। डॉ. कुमार ने चेतावनी दी कि प्रदूषण अब हर अंग पर असर डाल रहा है—हृदय, मस्तिष्क, फेफड़े, किडनी और नसों की कार्यप्रणाली भी इसकी चपेट में आ रही है।