भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा है कि बैंकों पर लगे अधिग्रहण वित्तपोषण के प्रतिबंध हटाने से देश की असली अर्थव्यवस्था को नई ताकत मिलेगी। उनका कहना है कि इससे कारोबारी गतिविधियां तेज होंगी और निवेश को भी बल मिलेगा।
आरबीआई ने पिछले महीने ही बैंकों को कंपनियों के अधिग्रहण के लिए लोन देने की अनुमति दी थी। साथ ही आईपीओ में शेयर खरीदने के लिए लोन की सीमा भी बढ़ाई गई। इसे बैंकिंग सेक्टर में पूंजी प्रवाह बढ़ाने और देश में आर्थिक रफ्तार तेज करने के बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है।
हालांकि इस फैसले के साथ कुछ शर्तें भी जोड़ी गई हैं ताकि बैंकों की सुरक्षा बनी रहे। नए नियम के तहत बैंक अब किसी सौदे की कुल रकम का सत्तर फीसदी तक ही कर्ज दे सकेंगे। साथ ही लोन और निवेश के बीच संतुलन बनाए रखना जरूरी होगा। इस बदलाव का मकसद बैंकों को जोखिम से बचाना और कंपनियों को नए बिजनेस अवसरों का लाभ उठाने का मौका देना है।
पहले कंपनियों के लिए किसी बिजनेस या फर्म को खरीदने के लिए बैंक से लोन लेना बेहद मुश्किल था। अब पाबंदियां हटने के बाद कंपनियों को मर्जर और अधिग्रहण के लिए फंड मिलना आसान हो जाएगा। इससे निवेश बढ़ेगा और नए प्रोजेक्ट्स शुरू होने से आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी।
आरबीआई गवर्नर ने एसबीआई के बैंकिंग और इकॉनॉमिक्स कॉन्क्लेव में कहा कि किसी भी रेगुलेटर को बोर्डरूम के फैसले में दखल नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि हर बैंकिंग लेनदेन की अपनी अलग परिस्थितियां होती हैं इसलिए संस्थानों को खुद निर्णय लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
संजय मल्होत्रा ने यह भी कहा कि आरबीआई की निगरानी ने बैंकिंग सिस्टम को मजबूत बनाया है। उनके मुताबिक रिस्क वेट्स प्रोविजनिंग नॉर्म्स और काउंटर साइक्लिकल बफ़र्स जैसे उपायों से जोखिमों को नियंत्रित रखा गया है। उन्होंने कहा कि इन कदमों से भारत की बैंकिंग व्यवस्था और भी लचीली और भरोसेमंद बनी है।
