पिथौरागढ़ के सीमान्त गांवों में आजीविका बढ़ाने के लिए शुरू हुआ क्षमता निर्माण कार्यक्रम

गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी-कटारमल, अल्मोड़ा के ई.आई.ए.सी.पी. केन्द्र द्वारा जनपद पिथौरागढ़ के सीमान्त गांव दारमा, व्यास और चौदास वैली में ‘‘गैर…

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गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी-कटारमल, अल्मोड़ा के ई.आई.ए.सी.पी. केन्द्र द्वारा जनपद पिथौरागढ़ के सीमान्त गांव दारमा, व्यास और चौदास वैली में ‘‘गैर काष्ठ वन उत्पादों का विकास, मूल्य संवर्द्धन एवं विपणन संपर्क हेतु आजीविका विविधीकरण’’ विषय पर तीन दिवसीय क्षमता निर्माण कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।


इस कार्यक्रम का उद्देश्य स्थानीय समुदायों की गैर-काष्ठ वन उत्पाद (एन.टी.एफ.पी.) संबंधी जानकारी एवं कौशल को सुदृढ. करना है, जिससे वे वन-आधारित संसाधनों एवं पारंपरिक उत्पादों के वैज्ञानिक उपयोग के माध्यम से आजीविका के नए अवसर विकसित कर सकेंगे। प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागियों को उत्पादन विकास, मूल्य संवर्द्धन तथा टिकाऊ बाजार संपर्क स्थापित करने के व्यावहारिक उपायों की जानकारी दी जा रही है।


कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ललित मोहन गोस्वामी, खण्ड विकास अधिकारी, धारचूला ने अपने संबोधन में विभिन्न शासकीय योजनाओं की जानकारी साझा की जो ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देने एवं आय सृजन में सहायक हैं। उन्होंने प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे इस प्रशिक्षण से प्राप्त ज्ञान का प्रयोग कर आत्म-रोजगार एवं स्थानीय आजीविका को सशक्त बनाएं।


संस्थान की वैज्ञानिक डॉ. शैलजा पुनेठा ने औषधीय एवं सुगंधित पौधों की खेती के माध्यम से आजीविका संवर्धन पर एक जानकारीपूर्ण सत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने द्वितीयक उत्पाद विकास, मूल्य संवर्द्धन एवं विपणन अवसरों की प्रक्रिया को विस्तारपूर्वक समझाया तथा प्रतिभागियों को दीर्घकालिक आर्थिक लाभ हेतु सतत् प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रेरित किया।


विशिष्ट अतिथि विक्रम, सहायक विकास अधिकारी (उद्यान), ने एन.टी.एफ.पी. आधारित उद्यमों की संभावनाओं और स्थानीय उत्पादों के विपणन हेतु आवश्यक रणनीतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने सीमांत ग्रामों के लोगों द्वारा झेली जा रही बाजार पहुँच की चुनौतियों पर चर्चा की और सामूहिक प्रयासों के माध्यम से इन बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता पर बल दिया।


ई.आई.ए.सी.पी. केन्द्र के कार्यक्रम अधिकारी, डॉ. महेशा नन्द ने कार्यक्रम के उद्देश्य एवं गतिविधियों की विस्तृत जानकारी साझा की।
उन्होंने प्रतिभागियों को बताया कि इस प्रशिक्षण के माध्यम से किसान गैर-काष्ठ वन उत्पादों के वैज्ञानिक उपयोग, उत्पाद विकास, मूल्य संवर्द्धन एवं विपणन के नए अवसरों को समझ सकेंगे, जिससे उनकी आय में वृद्धि और आजीविका में स्थायित्व प्राप्त होगा।


कार्यक्रम के प्रथम दिवस के संचालन में ईआईएसीपी केन्द्र के श्री हेम तिवारी एवं श्री मोहित तिवारी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत 40 प्रतिभागियों को उनकी क्षमता निर्माण हेतु विभिन्न विषयों पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।


कार्यक्रम में स्थानीय प्रतिभागियों का उत्साहपूर्ण भागीदारी रही। यह पहल हिमालयी सीमांत क्षेत्रों में टिकाऊ आजीविका के अवसरों को सशक्त बनाने की दिशा में एक सार्थक कदम सिद्ध होगी। इस कार्यक्रम को पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार के इ.आई.ए.सी.पी. सेल द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है।