अल्मोड़ा। अल्मोड़ा के ऐतिहासिक पाटिया गांव में इस साल भी सदियों पुरानी बग्वाल की परंपरा निभाई गई। हर साल की तरह इस बार भी गांव के लोगों ने पारंपरिक तरीके से पत्थर युद्ध (बग्वाल) खेला, जो करीब सवा घंटे तक चला।
गाय की पूजा के बाद शुरू हुआ पत्थर युद्ध
दोपहर करीब 3:30 बजे गाय की बछिया की पूजा के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। पूजा के बाद पाटिया गांव की टीम परंपरा के अनुसार पचघटिया गधेरे की ओर गई। पाटिया की ओर से भटगांव और कसून गांव के रणबाकुरों ने हिस्सा लिया, जबकि कोटयूड़ा की ओर से बड़खुना गांव के योद्धा शामिल हुए।इस बार की बग्वाल में पाटिया खाम के साथ चुराड़ी,खड़ाऊ गांव के लोगों ने भी भागीदारी की।
शाम 4 बजे के आसपास बग्वाल शुरू हुई, जो करीब सवा घंटे तक चली।इस दौरान दोनों पक्षों के योद्धाओं ने पूरी परंपरा के साथ पत्थरों से युद्ध किया। इस बार पांच लोगों को हल्की चोटें आईं, जिनका उपचार बिच्छू घास से किया गया — यही इस परंपरा की खासियत मानी जाती है।
लगभग 5:15 बजे के आसपास बग्वाल का समापन हुआ।पत्थरों की बरसात के बीच पाटिया के देवेन्द्र पिलख्वाल और कुलदीप पिलख्वाल ने गधेरे में जाकर पानी पिया और इसके पाटिया खाम की जीत के साथ ही बग्वाल का समापन हो गया। जैसे ही दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर पानी छिड़का, परंपरा के मुताबिक युद्ध खत्म मान लिया गया।
🧓 सदियों पुरानी परंपरा
बुजुर्गों का कहना है कि पाटिया की यह बग्वाल करीब 100 साल या उससे भी पुरानी परंपरा है।
पुराने समय में यह आयोजन बेहद भव्य हुआ करता था, लेकिन अब इसका दायरा सीमित होता जा रहा है।
वरिष्ठ ग्रामीणों ने बताया कि अब इस परंपरा को संरक्षित और प्रचारित करने की जरूरत है, ताकि यह अगली पीढ़ियों तक जीवित रह सके।
🏞️ क्यों शुरू हुई थी यह परंपरा, इसके पीछे कई कहानियां
स्थानीय लोगों के अनुसार, इस पत्थर युद्ध की शुरुआत को लेकर कई दंतकथाएं हैं। कहा जाता है कि सदियों पहले किसी दुश्मन या आतताई को भगाने के लिए दो गांवों के लोगों ने एकजुट होकर पत्थरों से उसका मुकाबला किया था। जब वह व्यक्ति भाग गया और पानी पीने की इजाजत मांगी, तब गांव वालों ने उसे छोड़ दिया। तब से यह बग्वाल एक लोक परंपरा के रूप में हर साल निभाई जाती है।
💥 कैसे होती है बग्वाल
बग्वाल में दोनों पक्ष नदी या गधेरे के दो किनारों से आमने-सामने पत्थर फेंकते हैं। जब किसी टीम का व्यक्ति सबसे पहले नदी में उतरकर पानी पी लेता है, वही टीम विजेता मानी जाती है। हालांकि इस बार की बग्वाल में किसी को विजेता घोषित नहीं किया गया।इस खेल की सबसे खास बात यह है कि कोई भी योद्धा दवा का इस्तेमाल नहीं करता, बल्कि चोट लगने पर बिच्छू घास से ही इलाज किया जाता है।
🎯 एक झलक में बग्वाल
- ⏱️ समय: करीब सवा घंटे तक चला युद्ध
- 📍 स्थान: पाटिया, पचघटिया गधेरे (अल्मोड़ा)
- ⚔️ प्रतिद्वंदी: पाटिया-भटगांव बनाम कोटयूड़ा-बड़खुना
- 💪 घायल योद्धा: 5 (बिच्छू घास से उपचार)
- 🧓 परंपरा: 100 वर्ष से अधिक पुरानी
