भारत के अंतरिक्ष अभियानों में एक और बड़ी सफलता जुड़ गई है। इसरो के चंद्रयान-2 ऑर्बिटर ने चंद्रमा से जुड़ी एक ऐसी खोज की है जिसने वैज्ञानिकों को चौंका दिया है। दरअसल ऑर्बिटर में लगे वैज्ञानिक उपकरण चेस-2 यानी चंद्राज एटमॉस्फेरिक कंपोजिशन एक्सप्लोरर-2 ने पहली बार सूर्य से निकलने वाले कोरोनल मास इजेक्शन का सीधा असर चंद्रमा पर दर्ज किया है।
इस खोज से यह बात सामने आई कि जब सूर्य की ओर से भारी मात्रा में ऊर्जा और गैस का विस्फोट होता है तो उसका सीधा प्रभाव चंद्रमा के बेहद पतले वातावरण पर पड़ता है। वैज्ञानिकों के अनुसार जब यह घटना हुई तब चंद्रमा के दिन वाले हिस्से का वायुदाब करीब एक हजार गुना तक बढ़ गया था। इससे पहले वैज्ञानिक मॉडल्स में इस तरह की संभावना जताई गई थी लेकिन यह पहला मौका था जब किसी ने इसे लाइव तरीके से देखा। चंद्रयान-2 ने इसे प्रत्यक्ष रूप से रिकॉर्ड किया।
चंद्रमा का वातावरण बहुत हल्का होता है जिसे एक्सोस्फीयर कहा जाता है। इसमें मौजूद गैस के कण इतने कम होते हैं कि वे एक-दूसरे से शायद ही टकराते हैं। चंद्रमा की सतह को ही इसका हिस्सा माना जाता है इसलिए वैज्ञानिक इसे सतह सीमा एक्सोस्फीयर कहते हैं। सूर्य की किरणें सौर हवा और उल्कापिंडों की टक्कर जैसी घटनाएं इस पतले वातावरण को बनाती हैं। इन सब वजहों से चंद्रमा की सतह से परमाणु और अणु निकलकर एक्सोस्फीयर में पहुंचते हैं।
अब बात करें कोरोनल मास इजेक्शन की तो यह तब होता है जब सूर्य अपने अंदर जमा भारी मात्रा में गैस और ऊर्जा को विस्फोट के साथ अंतरिक्ष में फेंक देता है। इसमें ज्यादातर हाइड्रोजन और हीलियम होती है। जब यह सौर ऊर्जा चंद्रमा की दिशा में बढ़ती है तो वहां की सतह पर इसका असर सीधे तौर पर दिखता है। ऐसा इसलिए क्योंकि चंद्रमा पर न हवा है और न ही कोई चुंबकीय ढाल जो उसे सूर्य के असर से बचा सके।
इसरो को 10 मई 2024 को ऐसा दुर्लभ मौका मिला जब सूर्य ने लगातार कई सीएमई छोड़े थे। उसी दौरान चंद्रयान-2 ने देखा कि चंद्रमा की सतह से परमाणुओं के निकलने की प्रक्रिया तेज हो गई थी। इन परमाणुओं ने एक्सोस्फीयर का दबाव बढ़ा दिया था। यह दबाव सामान्य से हजार गुना ज्यादा था जो इस अवलोकन को बेहद खास बना देता है।
इस खोज से यह समझने में बड़ी मदद मिलेगी कि सूर्य की गतिविधियां चंद्रमा के वातावरण को किस तरह प्रभावित करती हैं। इससे भविष्य में चंद्रमा पर वैज्ञानिक ठिकाने या बेस बनाने में भी मदद मिलेगी क्योंकि ऐसी घटनाओं का असर वहां के माहौल को अस्थायी रूप से बदल सकता है। इसरो के लिए यह उपलब्धि इसलिए भी अहम है क्योंकि इससे अंतरिक्ष मौसम और चंद्रमा के एक्सोस्फीयर पर शोध के नए रास्ते खुल गए हैं।
