अलीनगर में मैथिली ठाकुर की पहली बड़ी परीक्षा, जीत के लिए तीन मोर्चों पर करनी होगी कड़ी जंग

बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ तब आया जब मशहूर लोक गायिका मैथिली ठाकुर को बीजेपी ने दरभंगा जिले की अलीनगर सीट से उम्मीदवार…

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बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ तब आया जब मशहूर लोक गायिका मैथिली ठाकुर को बीजेपी ने दरभंगा जिले की अलीनगर सीट से उम्मीदवार बनाया। इस घोषणा के साथ ही पूरे इलाके में चुनावी हलचल बढ़ गई। हालांकि यह सीट बीजेपी के लिए आसान नहीं मानी जा रही। यह वही सीट है जो विधायक मिश्रीलाल यादव की सदस्यता रद्द होने के बाद खाली हुई थी। 2020 में एनडीए ने यहां आरजेडी को केवल तीन हजार एक सौ एक वोटों के मामूली अंतर से हराया था।

अलीनगर कभी आरजेडी के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी का गढ़ रहा है। यहां यादव और ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर है और यही समीकरण चुनाव का रुख तय करते हैं। पहले यह चर्चा थी कि मैथिली ठाकुर बेनीपट्टी या अलीनगर में से किसी एक सीट से चुनाव लड़ सकती हैं। लेकिन बेनीपट्टी सीट पर पहले ही उम्मीदवार तय हो चुका था। इसलिए बीजेपी ने उन्हें अलीनगर से मैदान में उतार दिया। अब सवाल यह है कि क्या मैथिली ठाकुर के लिए यह राह आसान होगी।

मैथिली ठाकुर के सामने विपक्ष के साथ-साथ स्थानीय राजनीति की जटिलताएं भी हैं। यह इलाका लंबे समय तक आरजेडी के सिद्दीकी और मिश्रा जैसे नेताओं का गढ़ रहा है। बीजेपी चाहती है कि वह अब इस सीट को अपना मजबूत केंद्र बना ले। इसके लिए मैथिली ठाकुर को पार्टी संगठन जातीय संतुलन और जनता से जुड़ाव—इन तीनों मोर्चों पर मेहनत करनी होगी। अगर वह इन सबको साध लेती हैं तो जीत की संभावना काफी बढ़ जाएगी।

अलीनगर से 2020 में मिश्रीलाल यादव वीआईपी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते थे। बाद में उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया। लेकिन उन्हें दो साल की सजा मिलने के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता खत्म कर दी गई। इसी वजह से यह सीट खाली हुई। बीजेपी को यहां नया और साफ-सुथरा चेहरा चाहिए था। पार्टी को लगा कि मैथिली ठाकुर का चेहरा जनता के बीच भरोसे का प्रतीक बन सकता है।

अलीनगर की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों पर टिकी रही है। पहले यह इलाका आरजेडी के प्रभाव में था। 2008 में परिसीमन के बाद मीनागाछी सीट का कुछ हिस्सा अलीनगर में आ गया। इसके बाद अब्दुल बारी सिद्दीकी ने 2010 और 2015 में यहां से जीत दर्ज की। 2020 में आरजेडी ने ब्राह्मण उम्मीदवार उतारा जबकि एनडीए ने यादव उम्मीदवार मैदान में भेजा और जीत गई। अब बीजेपी फिर से ब्राह्मण चेहरा लेकर आई है। उसे उम्मीद है कि यादव और ब्राह्मण दोनों वर्गों का समर्थन मिलेगा।

अलीनगर में ब्राह्मण और यादव मतदाता लगभग समान संख्या में हैं। पिछली बार बीजेपी को भरोसा था कि ब्राह्मण वोट उनके साथ रहेगा लेकिन आरजेडी ने वहां भी पैठ बना ली। इस बार बीजेपी ने वही गलती नहीं दोहराई। मैथिली ठाकुर के रूप में पार्टी ने ब्राह्मण चेहरा उतारा है। बीजेपी मानती है कि मैथिली ठाकुर सिर्फ जाति से नहीं बल्कि अपनी लोकप्रियता से भी वोट जुटा सकती हैं। उनके गीत सादगी और सोशल मीडिया पर उनकी मौजूदगी ने उन्हें युवाओं और महिलाओं के बीच जाना-पहचाना चेहरा बना दिया है।

बीजेपी का यह फैसला जोखिम भरा भी है लेकिन अगर दांव सही बैठा तो बड़ा फायदा मिल सकता है। पार्टी को उम्मीद है कि मैथिली ठाकुर की लोकप्रियता और उनकी जातीय पहचान दोनों मिलकर आरजेडी के वोट बैंक में सेंध लगा सकती हैं। अब देखना यह है कि मैथिली ठाकुर अपने पहले ही चुनाव में इस मुश्किल सीट पर किस तरह से प्रदर्शन करती हैं और क्या वाकई वह जीत की नई कहानी लिख पाती हैं।