नेपाल की राजधानी काठमांडू इन दिनों आगजनी और भारी विरोध प्रदर्शनों से जल रही थी। गुस्से से भरे लोगों के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली खुद को चारों तरफ से घिरा हुआ महसूस कर रहे थे। हालात बिगड़ते गए तो प्रदर्शनकारी उनके घर तक पहुंच गए। इसी बीच ओली ने सेना प्रमुख अशोक राज सिग्देल से हेलीकॉप्टर की मांग की ताकि राजधानी से निकल सकें। लेकिन उन्हें सख्त लहजे में जवाब मिला कि उड़ान तभी मिलेगी जब आप पद छोड़ देंगे।
ओली 2024 में शेर बहादुर देउबा सरकार गिरने के बाद सत्ता में लौटे थे। लेकिन लौटते ही उन पर भ्रष्टाचार भाई भतीजावाद और तानाशाही जैसे आरोप लगने लगे। जनता का गुस्सा दिन पर दिन बढ़ता गया। आठ सितंबर को सरकार ने अचानक 26 सोशल मीडिया ऐप्स पर पाबंदी लगा दी। इसके बाद हालात भड़क उठे। उसी दिन पुलिस की फायरिंग में 19 लोगों की मौत हो गई और तीन सौ से ज्यादा घायल हुए।
कर्फ्यू का एलान भी लोगों को सड़कों पर उतरने से रोक नहीं पाया। नौ सितंबर को राजधानी समेत पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया गया। फिर भी युवा और उनके माता पिता आदेश तोड़ते हुए प्रदर्शन जारी रखते रहे। सुबह ओली ने पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारियों से जानकारी ली। उन्हें बताया गया कि बड़े नेताओं के घरों को भी घेर लिया गया है। लेकिन उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया और बस सुरक्षा बढ़ाने का आदेश दिया।
जैसे ही पुलिस की गोलीबारी तेज हुई भीड़ और भड़क गई। नारा गूंजने लगा कि नेताओं के घर घेरो। प्रदर्शनकारियों ने माओवादी नेता प्रचंड और कांग्रेस अध्यक्ष देउबा के घरों को निशाना बनाया। प्रचंड के घर उस वक्त हमला हुआ जब सर्वदलीय बैठक की तैयारी हो रही थी।
सरकार को पुलिस को छोड़कर कोई और मदद नहीं मिली। कई इलाकों में सुरक्षाबल नदारद थे। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक में भी ओली ने इस बगावत को सिर्फ युवा आंदोलन कहकर नजरअंदाज कर दिया। हालात बेकाबू हुए तो प्रदर्शनकारी देउबा के घर तक पहुंच गए। उनकी पत्नी भी घायल हो गईं। तभी ओली ने सेना प्रमुख को फोन किया और मदद मांगी। लेकिन सेना प्रमुख ने साफ कहा पहले इस्तीफा दीजिए तभी हेलीकॉप्टर मिलेगा।
इस विद्रोह की वजह थी बढ़ती बेरोजगारी और सत्ताधारियों की ऐशो आराम भरी जिंदगी। युवाओं के बीच नेपो बेबी अभियान जोर पकड़ चुका था जिसमें नेताओं और उनके परिवारों की बेहिसाब संपत्ति और भ्रष्टाचार उजागर हो रहा था। ऑनलाइन नारे गूंजे कि अब केवल इंटरनेट पर आवाज उठाने से कुछ नहीं होगा सड़कों पर उतरना होगा। देखते ही देखते यह आंदोलन देशभर में फैल गया।
प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन सिंह दरबार समेत कई नेताओं के घरों और सरकारी दफ्तरों में आग लगा दी। पुलिस ने आंसू गैस और पानी की बौछारों के साथ गोलियां भी चलाईं। लेकिन भीड़ थमने का नाम नहीं ले रही थी। अस्पताल घायलों से भर गए।
आखिरकार ओली ने राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल को इस्तीफा भेज दिया। उसी रात सेना प्रमुख सिग्देल के नेतृत्व में हालात काबू में लाए गए। इसके बाद नेपाल को पहली महिला प्रधानमंत्री मिलीं। पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया। उन्हें Gen Z ने ऑनलाइन पोल के जरिए चुना था और उन्होंने शपथ लेकर इतिहास रच दिया।
