आधी रात बाद छेनागाड़ में कुदरत का कहर, कई घर जमींदोज बिंदेश्वर महादेव मंदिर दबा

रुद्रप्रयाग जिले का छेनागाड़ शुक्रवार को हादसा हो गया। आधी रात के बाद तीन बजे अचानक तेज गर्जना हुई और कुछ ही मिनटों में पूरा…

Nature wreaked havoc in Chenagad after midnight, many houses razed to the ground and Bindeshwar Mahadev temple buried

रुद्रप्रयाग जिले का छेनागाड़ शुक्रवार को हादसा हो गया। आधी रात के बाद तीन बजे अचानक तेज गर्जना हुई और कुछ ही मिनटों में पूरा इलाका मलबे में तब्दील हो गया। बसुकेदार का छोटा बाजार भी इस आपदा में पूरी तरह दब गया। जहां कभी रौनक हुआ करती थी वहां अब सिर्फ पत्थरों और मलबे का ढेर नजर आ रहा है। लोगों का कहना है कि यह मंजर इतना खौफनाक था कि हर तरफ चीख पुकार मच गई।

इस हादसे में 18 इमारतें ढह गईं और आठ लोग लापता हो गए। जो लोग किसी तरह जान बचाने में सफल रहे उन्होंने इसे भगवान की कृपा बताया। विश्वनाथ बस सेवा के ड्राइवर और कंडक्टर भी किसी तरह सुरक्षित निकल पाए। मगर उनकी बस का अगला हिस्सा अब भी गदेरे की तरफ अटका पड़ा है जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं। इन्हें देखकर भी लोगों की रूह कांप रही है।

ग्रामीणों का कहना है कि उस रात ऐसा लग रहा था जैसे पत्थर आपस में टकरा रहे हों और मकान हिल रहे हों। दरवाजे खिड़कियां चरमराने लगीं और रास्ते बंद हो गए। लोग घर छोड़कर बाहर निकल आए और रातभर खुली छत के नीचे बैठे रहे। ताल जामण इलाके में भी कई मकान मलबे में दब गए हैं। कई लोग दूसरों के घरों में शरण लिए हुए हैं। एक ग्रामीण संदीप ने बताया कि जब बादल फटा तो आवाज इतनी तेज थी जैसे बम फट रहे हों। पूरा इलाका भूकंप जैसा हिलने लगा।

यह हादसा देखकर लोगों की यादें फिर 2013 की केदारनाथ आपदा की तरफ चली गईं। वहां भी ऐसी ही गर्जना और तबाही ने हजारों जिंदगियां निगल ली थीं। अब फिर से वही खौफ गांव वालों के दिल में बस गया है। सबसे बड़ा सदमा उन्हें तब लगा जब बिंदेश्वर महादेव मंदिर भी मलबे में दब गया।

यह मंदिर पूरे इलाके की आस्था का केंद्र था और महाशिवरात्रि पर यहां हजारों लोग दर्शन के लिए आया करते थे। ग्रामीण इसे अशुभ संकेत मान रहे हैं। उनका कहना है कि भगवान बिंदेश्वर को क्षेत्र का रक्षक माना जाता था और अब मंदिर का मिट जाना भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

आपदा की यह मार सिर्फ मकानों और बाजार तक सीमित नहीं रही। इसने गांव वालों की उम्मीदें और विश्वास भी तोड़ दिया है। ग्रामीणों की आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे और वे लगातार यही सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर हर साल कुदरत क्यों इतनी बड़ी सजा देती है।