उत्तरकाशी के धराली गांव के लोग इस वक्त बड़ी मुश्किल में हैं। पहले से ही आपदा ने सब कुछ छीन लिया था और अब सेब की फसल भी खतरे में है। गांव में जिन लोगों की रोजी रोटी सेब से चलती थी उनकी उम्मीदें अब धीरे धीरे टूटती जा रही हैं। जिन पेड़ों पर फल लग चुके थे अब उन पर दाग और पतझड़ की बीमारी लगने लगी है। इसका कारण है कि लोगों को वक्त पर दवाइयां नहीं मिल पा रही हैं।
धराली गांव में हर परिवार किसी न किसी तरह सेब की खेती से जुड़ा है। कई लोगों के बगीचे पूरी तरह से आपदा में बह गए हैं। और जिनके बगीचे बचे हैं वो भी अब खराब होते जा रहे हैं। क्योंकि आपदा के चलते सड़कें बंद हैं और दवाइयों की सप्लाई रुक गई है।
सेब उत्पादक ममता पंवार बताती हैं कि इन दिनों बगीचों में छिड़काव होता था ताकि पतझड़ और दाग न लगे। लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि दवाइयां ही नहीं मिल पा रहीं। ऊपर से गांव के लोग खुद अभी तक सदमे से नहीं निकल पाए हैं।
कई लोग बगीचों की तरफ ध्यान ही नहीं दे पा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ धराली के सेब काश्तकार संजय पंवार का कहना है कि पहले जहां करीब पच्चीस मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता था अब उसका अस्सी फीसदी से ज्यादा हिस्सा बीमारी की वजह से खराब हो गया है।
उन्होंने बताया कि उद्यान विभाग से बातचीत की गई है। और विभाग की तरफ से भरोसा दिया गया है कि जल्द ही कुछ उपाय किए जाएंगे।
बता दें कि पांच अगस्त को आई तबाही ने पूरे धराली गांव को हिला कर रख दिया। खीर गाड़ में आए सैलाब ने बाजार होटल मकान और सेब के बागानों को बर्बाद कर दिया।
इस आपदा के बाद से अभी तक सैंसठ से ज्यादा लोग लापता हैं। दो शव बरामद हुए हैं और मलबा हटाने का काम लगातार चल रहा है। गांव के लोगों को अब भी अपने परिजनों के इंतजार के साथ साथ अपने नुकसान की भरपाई की भी चिंता सता रही है।
