पापा ! हम नहीं बचेंगे की चीख के साथ टूटा आखिरी फोन कॉल ,उत्तरकाशी आपदा में नेपाली पिता का बेटा लापता

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की हर्षिल घाटी में मंगलवार को बादल फटने के बाद हालात बेकाबू हो गए। दोपहर के वक्त अचानक आई तेज बारिश…

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उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की हर्षिल घाटी में मंगलवार को बादल फटने के बाद हालात बेकाबू हो गए। दोपहर के वक्त अचानक आई तेज बारिश ने पूरे इलाके को डर और तबाही के साये में ला खड़ा किया। धराली गांव जो गंगोत्री जाने वाले रास्ते में एक अहम जगह है इस आपदा की सीधी चपेट में आ गया। बाढ़ का पानी इतनी तेजी से बहा कि घर पेड़ गाड़ियां और रास्ते में आने वाली हर चीज बहा ले गया। इस भीषण हादसे में पांच लोगों की जान चली गई जबकि कई लोग अब भी मलबे में दबे होने की आशंका है।

नेपाल से आए मजदूरों के लिए यह मंजर और भी दर्दनाक साबित हुआ। काली देवी और विजय सिंह दंपति अपने गांव से यहां सड़क और पुल निर्माण के काम के लिए आए थे। वे कुल 26 लोगों के साथ घाटी में पहुंचे थे। मंगलवार दोपहर करीब बारह बजे अपना काम खत्म कर दोनों भटवारी के लिए रवाना हो गए जो यहां से करीब सैंतालीस किलोमीटर दूर है। उन्हें यह अंदाजा तक नहीं था कि वे अपने बच्चों और साथियों को मौत के मुंह में छोड़कर जा रहे हैं।

विजय सिंह ने बताया कि उनका अपने बेटे से हुआ आखिरी फोन कॉल उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी पीड़ा बन गया है। बेटे ने रोते हुए कहा था पापा हम नहीं बचेंगे नाले में बहुत पानी आ गया है। इतना कहने के बाद फोन कट गया और फिर बेटे का कोई पता नहीं चला। काली देवी का दर्द भी शब्दों में बयां नहीं हो सकता। उनका कहना है कि अगर जरा भी अंदेशा होता तो वे अपने बच्चों को छोड़कर कभी नहीं जातीं। उन्होंने सरकार से गुहार लगाई है कि उन्हें हर्षिल घाटी तक पहुंचाया जाए ताकि वे खुद अपने बच्चों को ढूंढ सकें।

बुधवार को यह दंपति किसी तरह गंगावाड़ी तक पैदल पहुंचे लेकिन भगीरथी नदी पर बना बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन का अहम पुल बाढ़ में बह चुका था। इस वजह से उनका आगे जाना नामुमकिन हो गया। उनके साथ आए बाकी चौबीस मजदूरों से भी अब तक कोई संपर्क नहीं हो पाया है। इसी तरह घाटी में मौजूद सेना के ग्यारह जवान भी लापता बताए जा रहे हैं।