13 बरस से कम उम्र में मोबाइल थमाने का असर अब बच्चों की सेहत पर दिखने लगा है। सोमवार को आई एक इंटरनेशनल रिसर्च में ये बात सामने आई है कि जो बच्चे छोटी उम्र में मोबाइल इस्तेमाल करने लगते हैं उन्हें आगे चलकर दिमागी दिक्कतें ज्यादा झेलनी पड़ती हैं। इस स्टडी में दुनिया भर के करीब एक लाख युवाओं की मेंटल हालत को लेकर आंकड़े इकट्ठा किए गए थे।
ये रिसर्च ह्यूमन डेवलपमेंट एंड कैपेबिलिटीज नाम की मैगजीन में छपी है जिसमें बताया गया है कि जिन युवाओं को बारह साल से पहले मोबाइल मिल गया उनमें बड़ी उम्र तक पहुंचते पहुंचते मन में खुद को नुकसान पहुंचाने जैसे ख्याल आने लगे। साथ ही उनमें गुस्सा ज्यादा देखा गया। मन की हालत कमजोर होती गई और खुद पर भरोसा भी कम हो गया।
रिपोर्ट कहती है कि मोबाइल हाथ में आने के बाद बच्चे सोशल मीडिया की दुनिया में जल्दी कूद जाते हैं जिससे उनकी नींद टूटने लगती है। इंटरनेट पर परेशान करने वाले मैसेज मिलते हैं। और अपने ही घर के लोगों से दूरियां बढ़ जाती हैं। अमेरिका की एक साइंटिस्ट डॉ तारा थियागराजन जो इस रिपोर्ट का हिस्सा थीं उन्होंने कहा कि अगर वक्त रहते कुछ नहीं किया गया तो आने वाले वक्त में मानसिक बीमारियां बहुत तेजी से बढ़ सकती हैं।
उन्होंने ये भी कहा कि दिक्कत ये है कि जिन बच्चों को ये परेशानी होती है उनके मन में उदासी और बेचैनी की वो लक्षण ही नहीं आते जो आमतौर पर इलाज के लिए देखे जाते हैं। इसलिए बीमारी पकड़ में नहीं आती। इस रिसर्च में सलाह दी गई है कि जैसे शराब और सिगरेट नाबालिगों के लिए बैन है उसी तरह तेरह साल से कम उम्र के बच्चों के लिए मोबाइल का इस्तेमाल रोक देना चाहिए।
साथ ही पढ़ाई के दौरान डिजिटल साक्षरता को जरूरी किया जाए और सोशल मीडिया कंपनियों पर जवाबदेही भी तय होनी चाहिए। इस रिसर्च में माइंड हेल्थ कोशेंट नाम का एक खास पैमाना इस्तेमाल हुआ जिससे यह पता चला कि लड़कियों में मोबाइल की वजह से अविश्वास और भावनात्मक कमजोरी ज्यादा देखने को मिली। वहीं लड़कों में मन की हालत अस्थिर रही। चिड़चिड़ापन और गुस्सा बढ़ गया।
दुनिया के कई देशों ने इस खतरे को देखते हुए स्कूलों में मोबाइल पर बैन या उसके इस्तेमाल को लेकर सख्त नियम बना दिए हैं। इनमें फ्रांस नीदरलैंड इटली और न्यूजीलैंड शामिल हैं। अमेरिका के भी कई राज्यों में अब इस दिशा में कानून बन चुके हैं।
