114 साल की उम्र में दुनिया को प्रेरणा देने वाले मशहूर मैराथन धावक फौजा सिंह का सोमवार को पंजाब के जालंधर में निधन हो गया। वे सुबह अपने गांव ब्यास में टहलने निकले थे, तभी एक अज्ञात वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी। सिर में गंभीर चोट आने के बाद उन्हें निजी अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान शाम को उन्होंने अंतिम सांस ली। जालंधर के आदमपुर थाना प्रभारी हरदेवप्रीत सिंह के मुताबिक, हादसे के बाद वाहन चालक फरार हो गया और पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ लापरवाही से गाड़ी चलाने का मुकदमा दर्ज कर लिया है।
फौजा सिंह के निधन की पुष्टि पंजाब के पूर्व सूचना आयुक्त और उनके जीवन पर ‘द टर्बन्ड टॉरनेडो’ नाम से किताब लिखने वाले लेखक खुशवंत सिंह ने की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी फौजा सिंह के निधन पर गहरा दुख जताया। उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा कि फौजा सिंह जी अपनी फिटनेस और आत्मबल से देश के युवाओं के लिए प्रेरणा बने। उन्होंने आगे लिखा कि वे अविश्वसनीय हौसले और दृढ़ संकल्प वाले अद्भुत एथलीट थे, जिनका जाना एक बड़ी क्षति है।
साल 1911 में पंजाब के एक किसान परिवार में जन्मे फौजा सिंह चार भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। उन्होंने अपने जीवन की पहली मैराथन सौ साल की उम्र में पूरी की थी और इसके बाद उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय मैराथन में भाग लेकर रिकॉर्ड बनाए। उन्हें ‘टर्बन्ड टॉरनेडो’ नाम से पहचाना जाने लगा। उन्होंने 1999 में समय से पूर्व जन्मे बच्चों की मदद के लिए चैरिटी दौड़ से अपनी शुरुआत की थी। वर्ष 2012 में उन्हें लंदन ओलंपिक में मशाल लेकर चलने का गौरव भी प्राप्त हुआ।
वृद्धावस्था में भी अपनी जबरदस्त सहनशक्ति और हौसले से दुनियाभर के युवाओं को प्रेरित करने वाले फौजा सिंह न केवल एक एथलीट बल्कि सिख संस्कृति के संदेशवाहक भी रहे। उनका कहना था कि उनकी पगड़ी और दाढ़ी ने उन्हें दुनिया में अलग पहचान दी और ईश्वर पर विश्वास ही उनकी सबसे बड़ी ताकत रही। 2013 में फतेहगढ़ साहिब के एक स्कूल में सम्मानित होने के दौरान उन्होंने कहा था कि वे अपने जीवन से बस इतना ही संदेश देना चाहते हैं कि उम्र सिर्फ एक संख्या है, हौसला हो तो हर मुकाम पाया जा सकता है।
