उत्तराखंड में धरती के भीतर जमा हो रही तबाही, वैज्ञानिकों ने जताई 7 तीव्रता वाले भूकंप की आशंका

उत्तराखंड समेत पूरा हिमालयी क्षेत्र एक बड़े भूगर्भीय खतरे की ओर बढ़ रहा है। देश के प्रमुख भूवैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि राज्य में…

उत्तराखंड समेत पूरा हिमालयी क्षेत्र एक बड़े भूगर्भीय खतरे की ओर बढ़ रहा है। देश के प्रमुख भूवैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि राज्य में कभी भी 7.0 तीव्रता तक का बड़ा भूकंप आ सकता है। यह चेतावनी कोई कल्पना नहीं, बल्कि उन वैज्ञानिक अध्ययनों का नतीजा है जो पिछले कुछ महीनों से देहरादून में हुए हैं। भूवैज्ञानिकों के मुताबिक, हिमालय की टकराती टेक्टोनिक प्लेटों के बीच लगातार ऊर्जा इकट्ठा हो रही है, जिसकी आहट चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जैसे जिलों में बार-बार महसूस हो रहे छोटे-छोटे भूकंपों से मिल रही है।

हाल ही में देहरादून स्थित वाडिया इंस्टिट्यूट में आयोजित ‘अंडरस्टैंडिंग हिमालयन अर्थक्वेक्स’ और एफआरआई में आयोजित ‘अर्थक्वेक रिस्क असेसमेंट’ जैसी कार्यशालाओं में देशभर के भूविज्ञानी जुटे। यहां हुए विचार-विमर्श में एक बात बार-बार दोहराई गई कि पिछले 30 वर्षों से हिमालय क्षेत्र में कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है। इससे यह आशंका और भी गहरी हो गई है कि अब जो भूकंप आएगा, वह पिछले झटकों से कई गुना अधिक विनाशकारी हो सकता है।

नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी की रिपोर्ट बताती है कि पिछले छह महीनों में उत्तराखंड में 22 बार हल्के भूकंप दर्ज किए गए हैं, जिनकी तीव्रता 1.8 से लेकर 3.6 तक रही। वैज्ञानिकों का कहना है कि 4.0 तीव्रता के भूकंप से जो ऊर्जा निकलती है, उससे 32 गुना ज्यादा ऊर्जा 5.0 तीव्रता के भूकंप से निकलती है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर ऊर्जा का यह भंडार फूटता है, तो तबाही की कल्पना भी डरावनी होगी।

वाडिया संस्थान के निदेशक डॉ. विनीत गहलोत के अनुसार, उत्तराखंड में टेक्टोनिक प्लेटों की गति बेहद धीमी है और यही “लॉकिंग” की स्थिति बड़े भूकंप का कारण बन सकती है। उन्होंने यह भी बताया कि मैदानों के मुकाबले पहाड़ी इलाकों में नुकसान कम होता है, लेकिन अगर भूकंप कम गहराई का हुआ, तो इसका असर कई गुना ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है।

देहरादून की भूकंपीय स्थिति का अध्ययन करने के लिए केंद्र सरकार ने अब सीएसआईआर बेंगलूरू के ज़रिए विस्तृत परीक्षण की योजना बनाई है। पहले वाडिया और भूगर्भीय सर्वेक्षण विभाग की ओर से किए गए माइक्रोज़ोनेशन के आधार पर अब शहर के अलग-अलग हिस्सों की मिट्टी और चट्टान की मजबूती को जांचा जाएगा। इससे तय होगा कि किस क्षेत्र में कितना खतरा है और क्या इंतजाम किए जाने चाहिए।

वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. इम्तियाज परवेज़ का कहना है कि पूरे हिमालयी क्षेत्र में भूकंपीय ऊर्जा धीरे-धीरे एकत्र होती रहती है और कब, कहां यह फूट पड़े, कहना बेहद कठिन है। यही वजह है कि भूकंप का पूर्वानुमान संभव नहीं है, लेकिन उसकी दिशा में सतर्कता ही एकमात्र रास्ता है।

राज्य सरकार ने भी इस खतरे को देखते हुए तकनीकी तैयारी शुरू कर दी है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में 169 स्थानों पर सेंसर लगाए जा चुके हैं, जो अगर 5.0 तीव्रता से अधिक का भूकंप होता है, तो 15 से 30 सेकंड पहले चेतावनी दे सकते हैं। यह चेतावनी ‘भूदेव एप’ के ज़रिए लोगों तक पहुंचाई जाएगी ताकि लोग खुद को समय रहते सुरक्षित स्थान पर पहुंचा सकें।

भूकंप का विज्ञान जितना गहरा है, उससे ज्यादा ज़रूरत अब चेतना की है। वैज्ञानिक लगातार कह रहे हैं कि अब वक्त बचाव योजनाओं को धरातल पर लाने का है, क्योंकि जब धरती कांपेगी, तब चेतावनी नहीं, तैयारी काम आएगी।