सीमित साधनों से आईएएस बनने तक का सफर, अनुराधा पाल बनीं राज्य की पहली महिला आबकारी आयुक्त

देहरादून से एक नई शुरुआत की खबर आई है जहां अनुराधा पाल को उत्तराखंड का नया आबकारी आयुक्त बनाया गया है। ये पहली बार हुआ…

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देहरादून से एक नई शुरुआत की खबर आई है जहां अनुराधा पाल को उत्तराखंड का नया आबकारी आयुक्त बनाया गया है। ये पहली बार हुआ है जब राज्य बनने के बाद किसी महिला आईएएस अधिकारी को आबकारी विभाग की इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। अनुराधा पाल ने हाल ही में इस पद का कार्यभार संभाल लिया है।

आईएएस अनुराधा पाल साल 2016 बैच की अधिकारी हैं। आबकारी आयुक्त का पद उस समय खाली हुआ जब वरिष्ठ अधिकारी हरिचंद सेमवाल 31 मई को रिटायर हो गए। इसके बाद शासन ने अनुराधा पाल को इस पद पर तैनात किया। ये फैसला इसलिए भी खास है क्योंकि उत्तराखंड में हाल के दिनों में महिलाओं को लगातार अहम पदों पर नियुक्त किया जा रहा है।

प्रदेश की पहली महिला मुख्य सचिव बनी राधा रतूड़ी के बाद डीएम सोनिका को कुंभ मेला अधिकारी की जिम्मेदारी मिली। वहीं आईजी कुमाऊं के पद पर रिद्धिम अग्रवाल को नियुक्त किया गया। अब अनुराधा पाल को आबकारी विभाग की कमान सौंपी गई है। इसके अलावा ऋतु खंडूड़ी को भी विधानसभा अध्यक्ष जैसा महत्वपूर्ण दायित्व मिल चुका है। यानी उत्तराखंड की प्रशासनिक व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी तेजी से बढ़ रही है।

अनुराधा पाल की कहानी भी उतनी ही प्रेरणादायक है। हरिद्वार के एक छोटे से गांव में जन्मी अनुराधा के पिता दूध बेचते थे। उन्होंने जवाहर नवोदय विद्यालय से पढ़ाई की और फिर जीबी पंत यूनिवर्सिटी से बीटेक किया। पढ़ाई के बाद वह दिल्ली चली गईं जहां उन्होंने टेक महिंद्रा कंपनी में नौकरी शुरू की। लेकिन उनका सपना कुछ और ही था।

नौकरी करते हुए ही उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी। आर्थिक तंगी थी तो खर्च चलाने के लिए रुड़की के एक कॉलेज में लेक्चरर की नौकरी भी की। दिन में पढ़ाना और रात को पढ़ाई करना उनकी दिनचर्या बन गई। साल 2012 में उन्होंने पहले ही प्रयास में यूपीएससी पास कर ली। उस समय रैंक 451 थी और उन्होंने सेवा ज्वाइन नहीं की। इसके बाद उन्होंने दोबारा तैयारी की और 2015-16 में एक बार फिर परीक्षा पास की और इस बार वह देश की शीर्ष सेवाओं में शामिल हो गईं।

अब जब वह उत्तराखंड के आबकारी विभाग की कमान संभाल रही हैं तो यह केवल उनकी जीत नहीं बल्कि उन हजारों लड़कियों की उम्मीद भी है जो सीमित साधनों में भी बड़े सपने देखती हैं।