मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने बनभूलपुरा क्षेत्र के रेलवे लाइन के नजदीक अतिक्रमण के मामले में सुनवाई की है। हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास स्थित 4365 घरों को हटाने के आदेश के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने प्रभावित लोगों के लिए पुनर्वास की व्यवस्था करने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने राज्य सरकार को प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए भूमि चिन्हित करने का आदेश भी दिया है।
क्या है मामला ?
इस विवाद की शुरुआत 2013 में हुई जब एक जनहित याचिका दायर की गई। इस याचिका में आरोप लगाया गया कि हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास गौला नदी में अवैध खनन हो रहा है। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि इस अवैध खनन के कारण 2004 में नदी पर बना पुल गिर गया था। अदालत ने रेलवे से इस मामले पर जवाब मांगा। रेलवे ने 1959 का नोटिफिकेशन, 1971 का रेवेन्यू रिकॉर्ड और 2017 का लैंड सर्वे प्रस्तुत किया, जिसमें यह दिखाया गया कि यह जमीन रेलवे की है और इस पर अवैध अतिक्रमण हुआ है। हाईकोर्ट ने इसके बाद अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया। इसके परिणामस्वरूप, प्रभावित लोगों को जमीन खाली करने का नोटिस दिया गया।
प्रभावितों ने की सुप्रीम कोर्ट में अपील
जमीन खाली करने के आदेश के खिलाफ प्रभावित लोग सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह इन लोगों की बात सुने। लंबी सुनवाई के बाद, हाईकोर्ट ने इस क्षेत्र में अतिक्रमण की बात मानी और 20 दिसंबर को हल्द्वानी में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया। प्रभावित लोगों ने इसके खिलाफ दो जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में राज्य के मुख्य सचिव को रेलवे प्रशासन और रेल मंत्रालय के साथ बैठक करने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने जोर देकर कहा कि प्रभावित परिवारों का पुनर्वास सुनिश्चित किया जाए ताकि उन्हें किसी प्रकार की असुविधा का सामना न करना पड़े।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह निर्णय प्रभावित लोगों के पुनर्वास की आवश्यकता को रेखांकित करता है। राज्य सरकार के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा कि वह पुनर्वास के लिए उचित भूमि चिन्हित करे और प्रभावित परिवारों को सुरक्षित और सम्मानजनक स्थान प्रदान करे।
