डेस्क । भारत-चीन सीमा पर स्थित चमोली जिला सुरंम्य होने के साथ ही धार्मिक थाती के चलते पूरे विश्व में प्रसिद्ध है |
1960 में अस्तित्व में आए इस जिले में कितनी भी प्राकृतिक मुसीबतें आई हों लेकिन यहां के लोग हर बार हौसला दिखाते हुए आगे बढे़ हैं। भारत पर चीन आक्रमण के कारण वर्ष 1960 में पौड़ी जनपद से पृथक कर चमोली को अलग जिला बनाया गया। उत्तर प्रदेश में रहते हुए जिले में रेशम निदेशालय, एसएसबी सेंटर, एएनएम प्रशिक्षण सेंटर, पशुपालन निदेशालय, भेड़ प्रजनन केंद्र, कांचुलाखर्क में कस्तुरा मृग प्रजनन केंद्र, भराड़ीसैंण में विदेशी पशु प्रजनन केंद्रों की स्थापना की गई थी। मगर राज्य बनते ही एक-एक कर सभी संस्थानों को मैदान भेज दिया गया| यहां यह भी बताना मुनासिब है कि जिस केन्द्र बिन्दु को रखकर अलग राज्य की लड़ाई लड़ी गई थी वह गैरसैंण भी इसी जनपद में है |
यहां पिछले वर्षें में गैरसैंण में विधान सभा सत्र शुरू हुआ, जिससे चमोली जिले को राज्य के मानचित्र में विशिष्ट स्थान मिला। गैरसैंण में विधान भवन के निर्माण भी चल रहा है, हालांकि जनआंदोलनकारी इसी गैरसैंण को राज्य की स्थाई राजधानी घोषित करने की मांग कर रहे हैं |
इस जिले ने कई बड़ी प्राकृतिक आपदाओं का दंश भी झेला। बीते वर्ष की जलप्रलय में जिले ने भ्यूंडार और पुलना गांव खो दिए। बदरीनाथ हाईवे के कई पड़ाव भी जलप्रलय के कारण नक्शे से गायब हो गए हैं। जिले में स्थित पर्यटन स्थल दुर्मीताल, कागभुषुंडी, सप्तकुंड जैसे रमणीक स्थल आज भी पर्यटन मानचित्र पर जगह नहीं बना पाए हैं।
ऐसा है अपना चमोली
जिले का गठन 24 फरवरी 1960 को हुआ। इस जनपद की आबादी -3 लाख 91 हजार 605
महिलाएं -1 लाख 97 हजार 5 सौ 42
पुरुष -1 लाख 93 हजार 5 सौ 72 , जिले की साक्षरता – 83.48 फीसदी
महिला -73.20 फीसदी
पुरुष -94.18 फीसदी है |