आमिर की फिल्म के शो पर भंसाली को मिली ‘नंदिनी’

मुंबई। साल 1999 में रिलीज हुई फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’,  इसके सितारों के रंग बिरंगे कपड़ों, आलीशान हवेलियों, मीलों बिखरे रेगिस्तान, मांडवी के…

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मुंबई। साल 1999 में रिलीज हुई फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’,  इसके सितारों के रंग बिरंगे कपड़ों, आलीशान हवेलियों, मीलों बिखरे रेगिस्तान, मांडवी के विजय विलास पैलेस और छोटे छोटे चबूतरों पर बने मंडपों के बीच सिमटते खामोश लम्हों के कारण यह मुझे याद आती हैं। यह फिल्म एक ऐसा कैनवस है जिस पर इसके निर्देशक संजय लीला भंसाली ने प्यार गढ़ा था। कोई कहता है ये फिल्म अनिल कपूर की फिल्म ‘वो सात दिन’ की कहानी पर बनी, किसी ने इसका किस्सा मैत्रेयी देवी की लिखी किताब ‘ना हन्यते’ से जोड़ा। लेकिन, खुद संजय लीला भंसाली बता चुके हैं कि ये फिल्म उन्होंने गुजराती लेखक ज़वेरचंद मेघानी  के नाटक ‘शेतल ने काठे’ पर बनाई थी और ये कहानी लेकर मेघानी खुद संजय लीला भंसाली से मिलने मुंबई पहुंचे थे। जैसे फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ की कहानी चलकर संजय लीला भंसाली तक पहुंची। इस कहानी की नायिका नंदिनी यानी ऐश्वर्या राय भी खुद ही संजय लीला भंसाली तक पहुंचीं।

निर्देशक संजय लीला भंसाली को गानों के फिल्माने में महारत हासिल रही है। विधु विनोद चोपड़ा के जब वह सहायक थे तो विधु गानों की शूटिंग भंसाली के भरोसे ही छोड़ देते थे। फिल्म ‘1942 ए लव स्टोरी’ के गानों को फिल्माने में भंसाली की निर्देशन क्षमता का बड़ा हाथ रहा है। ये उन दिनों की बात है जब बतौर निर्देशक अपनी पहली फिल्म ‘खामोशी द म्यूजिकल’ से संजय का सिक्का हिंदी सिने जगत में चल निकला था। अपनी इस पहली फिल्म में संजय लीला भंसाली दरअसल अपनी पहली पसंद करीना कपूर को लेना चाहते थे लेकिन बात बनी नहीं। करीना के मना करने के बाद इस फिल्म में आईं अभिनेत्री मनीषा कोइराला ने ‘खामोशी’ की एनी ब्रिगेंजा बनकर ऐसा काम किया कि ‘हम दिल दे चुके सनम’ की नंदिनी कौन बनेगी, इसे लेकर भंसाली कन्फ्यूज हो गए। संजय का दिल अब भी करीना कपूर पर अटका हुआ था। और, दिमाग कह रहा था कि नंदिनी का किरदार मनीषा कोइराला को दिया जाना चाहिए। लेकिन फिर हुआ कुछ ऐसा जिसकी उम्मीद खुद संजय लीला भंसाली भी को नहीं थी।

फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ में ऐश्वर्या राय बच्चन कैसे आईं, इसकी भी दिलचस्प कहानी है। ऐश्वर्या को उन्हीं दिनों आमिर खान की फिल्म ‘राजा हिंदुस्तानी’ ऑफर हुई थी, वह ये फिल्म तारीखों के चक्कर में कर नहीं पाईं तो इसकी स्पेशल स्क्रीनिंग पर वह इसलिए चली गईं कि कहीं फिल्म से जुड़े लोग बुरा न मान जाएं। वहीं ऐश्वर्या की पहली मुलाकात संजय लीला भंसाली से हुई। मिस वर्ल्ड वह बन चुकी थीं। आत्मविश्वास उनमें भरपूर था ही। जैसे ही वह भंसाली से मुखातिब हुईं, उन्होंने अपना दाहिना हाथ बढ़ाया और जैसे ही भंसाली ने उनका हाथ लपका, वह बोलीं, “हाय! आई एम ऐश्वर्या राय एंड आइ लाइक्ड ‘योर मूवी खामोशी द म्यूजिकल’।” ऐश्वर्या की आवाज भंसाली के कानों से जब टकराई तो उन्हें भान हुआ कि वह लगातार उनकी आंखें देखे जा रहे थे। बड़ी बड़ी सी हिरनी जैसी आंखें। रंग किसी शांत झील सा और उन आंखों की चमक ने संजय लीला भंसाली का मन मोह लिया। उनके मन में आवाज आई, यही तो मेरी नंदिनी है। एक तरह से देखा जाए तो भंसाली से ऐश्वर्या राय को मिलाने में आमिर खान का बड़ा हाथ रहा, आखिर उन्हीं के बुलावे पर तो ऐश्वर्या फिल्म ‘राजा हिंदुस्तानी’ के स्पेशल शो पर पहुंची थीं।

संजय लीला भंसाली के पास अपनी फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ का समीर तो शुरू से था। हां, फिल्म के दूसरे नायक वनराज के किरदार के लिए वह आमिर खान से लेकर शाहरुख खान, संजय दत्त, अनिल कपूर और अक्षय कुमार तक को खांचे में फिट करके देख चुके थे, लेकिन जमे उन्हें तो बस अजय देवगन। अजय देवगन भी तब तक एक्शन हीरो की इमेज से बाहर आ चुके थे और ‘इश्क़’, ‘मेजर साब’, ‘प्यार तो होना ही था’ और ‘ज़ख्म’ जैसी फिल्मों में अपने प्रभावशाली सहज अभिनय का सिक्का भी जमा चुके थे। तो वनराज के किरदार में अजय देवगन बिल्कुल फिट बैठे। समीर और नंदिनी की मोहब्बत की कहानी में जिस चुलबुलेपन और शरारतों की गवाह शूटिंग के वक्त दरबार परिवार की दादी यानी जोहरा सहगल को बनना था, उसे भंसाली ने तो पन्नों से परदे पर उतारा। लेकिन, फिल्म के लिए जब समीर और नंदिनी का किरदार करने वाले सलमान खान और ऐश्वर्या राय पहली बार मिले तो दोनों के दिल में असली वाला प्यार उतर गया। इस मुलाकात में फिर वही वाकया दोहराया गया जो भंसाली के साथ ‘राजा हिंदुस्तानी’ की स्पेशल स्क्रीनिंग पर हुआ था। इस बार ऐश्वर्या की झील सी गहरी आंखों में सलमान डूबे और फिर ऐसा डूबे कि पूरा एक फसाना ही बन गया।

संजय लीला भंसाली ने फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ के म्यूजिक पर बहुत मेहनत की थी। फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले लगातार दो साल वह इस्माइल दरबार के साथ इस पर जतन करते रहे। फिल्म के गीतकार हैं महबूब। फिल्म का संगीत कमाल का संगीत है। करवा चौथ के दिन आज भी हर प्रेमी जोड़ा चांद छुपा बादल में गाता है। उदित नारायण और अलका याग्निक की आवाजों ने इस गाने में असर भी बहुत रूमानी किया है। बाकी गानों में ऐश्वर्या के किरदार की आवाज कविता कृष्णमूर्ति बनीं और उन्होंने भी ‘निंबूडा’ से लेकर ‘आंखों की गुस्ताखियां’ और ‘अलबेला सजन’ तक कमाल का गाया है।

फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ के खास गाने ‘आंखों की गुस्ताखियां’ में कुमार शानू की आवाज आप सुनेंगे तो शायद पहचान भी न पाएं, इतने शानदार तरीके से गाया है उन्होंने ये गाना। कुमार शानू के अलावा करसन सरगठिया, विनोद राठौड़, शंकर महादेवन, मोहम्मद सलामत और उस्ताद सुल्तान खान ने भी फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ के गाने गाए और कमाल गाए। लेकिन, जिन दो गानों का जिक्र यहां अलग से जरूरी है, उनमें से पहला है हरिहरन का गाया, ‘झोंका हवा का आज भी…’ और दूसरा गाना है फिल्म में प्रेम की पीड़ा के चरम का एहसास कराने वाला गाना, ‘तड़प तड़प के इस दिल से आह निकलती रही’। गायक कृष्णकुमार कुन्नथ यानी के के ने गाने तो इसके बाद और भी गाए लेकिन इस गाने में उनकी आवाज का दर्द ऐसा था कि बस महसूस ही किया जा सकता है, इसे लिखा नहीं जा सकता…

फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ का पूरा दर्द समेटे गाने, ‘तड़प तड़प के इस दिल से आह निकलती रही’ में गायिकी शुरू होने से पहले के म्यूजिक पर जो नंदिनी की तड़प दिखती है समीर की आखिरी झलक पाने को। वह फिल्म की जान है। बंधन से छिटक कर भागी हिरणी जैसी छलांगती नंदिनी को दुपट्टे में लगी आग का भान तब तक नहीं होता जब तक उसे रास्ता दिखाने वाला नहीं मिल जाता। वहीं वह पलटकर अपनी वह दुनिया देखती है जो उसके दुपट्टे सरीखी जल रही है। दुपट्टा वह वहीं फेंकती है और मुंडेर पर जा खड़ी होती है। संस्कारों की एक जंजीर नंदिनी के पैर अब भी रोके है। गुरुदक्षिणा में दिया वचन समीर के पैर रोक नहीं पा रहा है। प्रेम यही है। वह दूसरो को कष्ट नहीं देता। वह दूसरों के सुख में सुख पाता है, तत् सुखे सुखे त्वम। और फिल्म के हरिहरन वाले गाने में भी यही भाव दिखता है अजय देवगन के चेहरे पर। इस बार कदम नंदिनी के थमते हैं और भागना वनराज को होता है…

फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ हिंदी सिनेमा की कलाकारी की एक मिसाल है। ये मिसाल है नितिन चंद्रकात देसाई के कला निर्देशन की, जिनके बनाए सेट्स देखकर उनके पास विदेश से पत्र आते थे ये पूछने के लिए ये जगह भारत में कहां हैं? ये मिसाल है इस्माइल दरबार के संगीत की। वैभवी मर्चेंट ने दिखाया कि नृत्य में आत्मा हो तो कोई अभिनेत्री क्या कमाल कर सकती हैं। कमाल का काम इसमें दिग्गज सिनेमैटोग्राफर अनिल मेहता ने भी किया। इन चारों को भारत सरकार ने फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ में उनके चमत्कारिक कार्य के लिए नेशनल फिल्म अवार्ड से सम्मानित किया। वहीं, फिल्मफेयर अवार्ड्स में ‘हम दिल दे चुके सनम’ ने कुल नौ पुरस्कार जीते। इनमें सबसे अहम रहा ऐश्वर्या राय को मिला बेस्ट एक्ट्रेस का खिताब। ऐश्वर्या राय इस फिल्म से पहले हिंदी की दो और तमिल की भी दो फिल्में कर चुकी थीं और ये चारों फिल्में नाकाम रही थीं। फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ ने ऐश्वर्या राय को नया जीवन दान दिया और उनका करियर इसी फिल्म के बाद हिंदी सिनेमा में सरपट चल निकला।

फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ की कहानी बस इतनी सी है कि अपने गुरु की बिटिया से प्रेम करने वाले एक गायक को उसकी प्रेमिका से मिलाने की कोशिश उस प्रेमिका का पति करता है। लेकिन, जिस अंदाज में ये फिल्म बनी है, उसे देखकर हिंदी सिनेमा के हर चाहने वाले को फख्र होता है। और फख्र इस बात पर भी होता है कि इस फिल्म के गाने लिखने वाले महबूब जैसे गीतकार भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में हुए जिन्होंने कभी न अपना पीआर किया और न ही कभी इस बात का दावा किया कि वह दूसरों से बेहतर लिखते हैं।

झोपड़पट्टी में रहने वाले महबूब मुंबई में बांद्रा की अपनी लव बर्ड्स और शो केस में रखने वाली मछलियों की दुकान पर बैठते और वहीं खाली समय में कविताएं लिखते। फिल्मों के ऑर्केस्ट्रा में तब वायलिन बजाने वाले इस्माइल दरबार उनके दोस्त थे। महबूब ने ही फिल्म ‘रोजा’ के मूल गानों को हिंदी में लिखा था। ‘रोजा’ के रिलीज वाले साल ही राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘द्रोही’ में भी महबूब के गाने सुनाई दिए। फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ एक गीतकार और एक संगीतकार की दोस्ती की कामयाबी की अनोखी मिसाल भी है। ऐसी मिसालें इक्सीसवीं सदी में मिलना मुश्किल हैं।