नई दिल्ली: कोरोना वायरस पहले सिर्फ जानवरों में ही खतरनाक होता था, लेकिन बाद में जिस तरीके से लोगों में स्वरूप बदल कर कहर बरपाने लगा वह निश्चित तौर पर सवाल जरूर खड़े करता है। संभव है कि वायरस में जेनेटिक इंजीनियरिंग हुई हो। यह कहना है आईसीएमआर में चीफ एपिडेमोलॉजिस्ट डॉक्टर समीरन पांडा का। डॉक्टर समीरन ने विशेष बातचीत में कोरोना वायरस के बदलते स्वरूप और उसकी तमाम स्थितियों के बारे में विस्तार से बातचीत की।
जिस तरीके से कोरोना वायरस अपना स्वरूप बदल रहा है क्या आपको लगता है यह सामान्य प्रक्रिया है?
जो वायरस आरएनए आधारित होते हैं उनमें शुरुआती दौर में इस तरीके के बदलाव होते ही रहते हैं। चूंकि यह महामारी की शुरुआत है इसलिए वायरस में इतने बदलाव होंगे। कोरोना से पहले एचआईवी वायरस में भी शुरुआती दौर में इसी तरीके के परिवर्तन देखे गए थे।
दुनिया के अलग-अलग एक्सपर्ट वायरस के इस बदलाव को जेनेटिक इंजीनियरिंग के तौर पर देख रहे हैं। उनका मानना है यह वायरस लैब में तैयार हुआ है?
इस बात को नकारा तो नहीं जा सकता है। अपने देश में भी वैज्ञानिकों का एक समूह इस दिशा में शोध कर रहा है। लेकिन एक बात तो निश्चित है जो वायरस पहले सिर्फ जानवरों में ही खतरनाक होता था, वह इंसानों में कैसे इतना खतरनाक होने लगा। यह जरूर शक पैदा करता है कि कहीं वायरस में जेनेटिक इंजीनियरिंग हुई है। हालांकि स्पष्ट तौर पर शोध के नतीजों के बाद ही इस बात की पुष्टि हो सकेगी।
अपने देश में तो डेल्टा प्लस के भी मरीज मिलने लगे हैं। क्या यह बहुत खतरनाक स्वरूप है वायरस का?
देखिए यह बहुत खतरनाक वायरस है या नहीं यह तो इसके मिलने वाले मामलों और फिर जीन सीक्वेंसिंग से ही पता चलेगा। चूंकि यह कोरोना वायरस के डेल्टा स्वरूप का बदला हुआ नया वायरस स्वरूप है। लेकिन इस बात के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं कि यह वायरस उतनी ही तबाही मचाएगा जितनी दूसरी लहर में मची थी।
तीसरी लहर को लेकर तमाम सूचनाएं आ रही हैं। क्या वास्तव में तीसरी लहर जैसा कुछ अनुमानित है?
अब इसे तीसरी लहर कहें या कुछ और लेकिन जब महामारी फैलती है तो कई सालों तक उसके ऐसे ही परिणाम देखे जाते हैं। 1919 में आये इनफ्लुएंजा वायरस महामारी में भी ऐसा ही परिणाम देखने को मिले थे। फिर एचआईवी में भी कमोबेश ऐसा ही दिखा। 2009 में स्वाइन फ्लू के दौरान भी ऐसी ही स्थितियां हुई। बस अंतर इतना है कि महामारी की शुरुआत के दौरान स्थितियां ज्यादा भयावह हो जाती हैं। हालांकि बाद के वर्षों में उसका असर कम होने लगता है।
कोरोना वायरस का असर कब तक कम होने का अनुमान है।
वायरस जब तक अपना स्वरूप बदलता रहेगा और हमारे शरीर की एंटीबॉडी उसके खिलाफ मजबूती से नहीं खड़ी होगी तब तक उसका असर ज्यादा दिखेगा। टीकाकरण से वायरस के खिलाफ लड़ने की क्षमता हमारे शरीर में बहुत बढ़ जाती है, इसलिए अनुमान लगाया जा रहा है कि जल्द से जल्द कोरोना की लहर को काबू कर लिया जाएगा। वैसे भी वायरस का तालमेल जब ह्यूमन बॉडी से होने लगता है तो उसका असर बहुत हद तक कम हो जाता है।

