28 साल पहले वायुसेना की ऐतिहासिक हवाई पट्टी बेच डाली गई, मां-बेटे की साजिश का अब हुआ पर्दाफाश

फिरोजपुर जिले से सामने आया ये मामला किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है जहां एक मां और उसका बेटा मिलकर वायुसेना की जमीन बेच…

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फिरोजपुर जिले से सामने आया ये मामला किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है जहां एक मां और उसका बेटा मिलकर वायुसेना की जमीन बेच डालते हैं और पूरे अट्ठाईस साल तक किसी को भनक तक नहीं लगती। ये वही हवाई पट्टी है जो तीन अलग अलग युद्धों में इस्तेमाल हो चुकी है और जिसे अंग्रेजों के वक्त से लेकर भारतीय वायुसेना ने सीमावर्ती इलाके में ऑपरेशन के लिए जरूरी ठिकाने के रूप में संभाल रखा था। मां उषा अंसल और बेटा नवीन चंद अंसल ने इस जमीन पर झूठा हक दिखाकर उसे बेच दिया और इस फर्जीवाड़े में कुछ अधिकारियों की मिलीभगत भी सामने आई। रेवेन्यू विभाग से जुड़े कुछ लोगों की मदद से इस जमीन का मालिकाना हक अपने नाम करवा लिया गया और फिर साल 1997 में इसे बेच भी दिया गया जबकि दस्तावेजों में जिनके नाम से बिक्री दिखाई गई उनकी मौत छह साल पहले यानी 1991 में ही हो चुकी थी। ये पूरा खेल सालों तक दबा रहा लेकिन जब एक रिटायर्ड अधिकारी निशान सिंह ने इस घोटाले की शिकायत की और पंजाब विजिलेंस ब्यूरो को चिट्ठी भेजकर जांच की मांग की तो धीरे धीरे परतें खुलनी शुरू हुईं।

शिकायत पर कार्रवाई न होने से परेशान होकर निशान सिंह ने पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर की जहां से कोर्ट ने मामले को गंभीर मानते हुए जांच का आदेश दिया और तब जाकर हकीकत सामने आई। जांच में साफ हुआ कि जिस जमीन को बेचा गया वह फत्तूवाला गांव में है जो पाकिस्तान सीमा के काफी करीब है और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से बेहद संवेदनशील इलाका माना जाता है। हाईकोर्ट ने न सिर्फ आरोपियों पर सख्ती दिखाई बल्कि फिरोजपुर के डिप्टी कमिश्नर को भी फटकार लगाई कि इतने गंभीर मामले में समय रहते कार्रवाई क्यों नहीं की गई। अदालत ने साफ कहा कि ऐसी जमीन अगर गलत हाथों में जाती है तो देश की सुरक्षा पर सीधा असर पड़ सकता है। अब इस मामले में एफआईआर दर्ज हो चुकी है और आरोपी मां बेटे के खिलाफ आईपीसी की कई गंभीर धाराओं में केस चल रहा है। जांच अधिकारी डीएसपी करन शर्मा की टीम इस पूरे घोटाले की तह तक जाने में जुटी है कि और कौन कौन इसमें शामिल था। मई 2025 में यह जमीन फिर से आधिकारिक रूप से रक्षा मंत्रालय को वापस सौंप दी गई और सरकार की रिपोर्ट में ये भी स्वीकार किया गया कि जमीन पर अब भी सेना का ही कब्जा है और रिकॉर्ड भी वैसा ही है जैसा साल 1958 और 1959 में था।