अल्मोड़ा (Almora) में इस शिला में मूर्छित होकर गिर पड़े थे स्वामी विवेकानंद, एक मुस्लिम फकीर ने की थी उनकी मदद

उत्तरा न्यूज डेस्क
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उत्तरा न्यूज अल्मोड़ा। सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा (Almora) से स्वामी विवेकानंद का गहरा नाता रहा है. स्वामी विवेकानंद यहां दो बार आए और कई दिनों तक रहकर साधना की

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आपको पता है अपनी यात्रा के दौरान करबला पहुंचते ही थकान के चलते स्वामी विवेकानंद को मूर्छा आ गई और वह एक पत्थर (शिला)पर लेट गए थे तब एक मुस्लिम फकीर ने उनकी मदद की उन्हें ककड़ी खिला कर तरोताजा रखने का प्रयास किया. फकीर के इस मदद को विवेकानंद कभी नहीं भूले।

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विवेकानंद पहली बार 1890 की यात्रा के दौरान काकड़ीघाट पहुंचे यहां स्थित पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था, अब प्रशासन ने वैज्ञानिकों के सहयोग से उसी पीपल के पेड़ का क्लोन तैयार कर उस पौधे को वहां रोपा है।

जानकारी के मुताबिक स्वामी जी अल्मोड़ा (Almora) में वह कई दिनों तक खजांची मोहल्ला में स्व.बद्री शाह के मेहमान बनकर भी रहे।
करीब 115 साल पहले स्वामी विवेकानंद जब दूसरी बार अल्मोड़ा (Almora)
पहुंचे तो अल्मोड़ा में उनका भव्य स्वागत हुआ था. नगर को सजाया गया था और लोधिया से एक सुसज्जित घोड़े में उन्हें नगर में लाया गया और 11 मई 1897 के दिन खजांची बाजार में उन्होंने जन समूह को संबोधित किया। बताया जाता है कि इस स्थान पर तब पांच हजार लोग एकत्र हो गए थे।

तब स्वामी विवेकानंद ने संबोधन में कहा था ‘यह हमारे पूर्वजों के स्वप्न का प्रदेश है। भारत जननी श्री पार्वती की जन्म भूमि है। यह वह पवित्र स्थान है जहां भारत का प्रत्येक धर्मपिपासु व्यक्ति अपने जीवन का अंतिम काल बिताने का इच्छुक रहता है।

यह वही भूमि है जहां निवास करने की कल्पना मैं अपने बाल्यकाल से ही कर रहा हूं। मेरे मन में इस समय हिमालय में एक केंद्र स्थापित करने का विचार है. उन्होने कहा कि संभवत: मैं आप लोगों को भली भांति यह समझाने में समर्थ हुआ हूं कि क्यों मैंने अन्य स्थानों की तुलना में इसी स्थान को सार्वभौमिक धर्मशिक्षा के एक प्रधान केंद्र के रूप में चुना है।’
उन्होंने यह भी कहा कि ‘इन पहाड़ों के साथ हमारी जाति की श्रेष्ठतम स्मृतियां जुड़ी हुई हैं।

स्वामी जी का कहना था कि यदि धार्मिक भारत के इतिहास से हिमालय को निकाल दिया जाए तो उसका अत्यल्प ही बचा रहेगा। अतएव यहां एक केंद्र अवश्य चाहिए। यह केंद्र केवल कर्म प्रधान न होगा, बल्कि यहीं निस्तब्धता, ध्यान तथा शांति की प्रधानता होगी। मुझे आशा है कि एक न एक दिन मैं इसे स्थापित कर सकूंगा।’


यह बताना भी जरूरी है कि 1916 में स्वामी विवेकानंद के शिष्यों स्वामी तुरियानंद और स्वामी शिवानंद ने अल्मोड़ा (Almora)
में ब्राइट इन कार्नर पर एक केंद्र की स्थापना कराई। जो आज रामकृष्ण कुटीर नाम से जाना जाता है। यहां से अब स्वामी जी के विचारों का प्रचार प्रसार होता है. जानकारी के अनुसार स्वामी जी 1890 ,1897,1898 को अल्मोड़ा आए थे।

जब जान बचाने वाले फकीर को पहचान गए विवेकानंद

संस्मरणों के अनुसार अल्मोड़ा (Almora) की इस अभिनंदन समारोह के दौरान स्वामी विवेकानंद उस फकीर को पहचान गए जिसने 1890 की हिमालय यात्रा के दौरान के करबला के निकट स्वामी जी के अचेत होने पर खीरा(ककड़ी) खिलाकर उनकी जान बचाई थी। स्वामी जी उस फकीर के पास गए और उसे दो रुपये भी दिए।

1897 के इस भ्रमण के दौरान स्वामी विवेकानंद करीब तीन माह तक देवलधार और अल्मोड़ा में निवास किया। इस अंतराल में उन्होंने स्थानीय लोगों के आग्रह पर अल्मोड़ा (Almora) में तीन बार विभिन्न सभागारों में भी व्याख्यान दिया। 28 जुलाई 1897 को अल्मोड़ा के तत्कालीन इंग्लिश क्लब में हुए व्याख्यान की अध्यक्षता तत्कालीन गोरखा रेजीमेंट के प्रमुख कर्नल पुली ने की, इसमें अंग्रेज अफसरों के अलावा लाला बद्री शाह, चिरंजीलाल शाह, ज्वाला दत्त जोशी आदि भी उपस्थित रहे

स्वामी विवेकानंद का अल्मोड़ा भ्रमण

विवेकानंद जब 1890 और 1897 में दो बार अल्मोड़ा (Almora) आए और दोनों बार वह खजांची मोहल्ला में बद्री शाह के घर पर रुके। बद्री शाह जी के इस घर में आज भी उनकी बाद की पीढ़ी के लोग रहते हैं।
स्वामी विवेकानंद 1890 में पहली बार अल्मोड़ा पहुंचे। यहां स्वामी शारदानंद और स्वामी कृपानंद से उनकी मुलाकात हुई। यहां वह लाला बद्री साह के घर पर रुके।

तब वह एकांतवास की चाह में एक दिन वह घर से निकल पड़े और कसारदेवी पहाड़ी की गुफा में तपस्या में लीन हो गए. 11 मई 1897 में विवेकानंद दूसरी बार अल्मोड़ा पहुंचे। तब उन्होंने यहां खजांची बाजार में जनसभा को संबोधित किया़

1897 में दूसरी बार अल्मोड़ा के भ्रमण के दौरान स्वामी विवेकानंद ने करीब तीन माह तक यहां निवास किया। वह 1898 में तीसरी बार अल्मोड़ा आए। इस बार उनके साथ स्वामी तुरियानंद व स्वामी निरंजनानंद के अलावा कई शिष्य भी थे। इस बार उन्होंने सेवियर दंपती का आतिथ्य स्वीकार किया। इस दौरान करीब एक माह की अवधि तक स्वामी जी अल्मोड़ा में प्रवास पर रहे. करबला में आज भी वह शिला मौजूद है जिसमें स्वामी जी लेटे थे. वहा स्मारक भी अब बना दिया गया है. हर साल 12 जनवरी को यहां भी रामकृष्ण कुटीर व स्थानीय विद्यालयों के छात्र कार्यक्रम करते हैं.

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