अल्मोड़ा में यहां महिलाएं बना रही है पिरूल से राखी (rakhi with pirul),आप भी जीनिए कैसे बनाए इको फ्रेंडली राखी

उत्तरा न्यूज डेस्क
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Women are making rakhi with pirul here in Almora, how can you make eco friendly rakhi

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अल्मोड़ा, 26 जुलाई 2020- अल्मोड़ा के हवालबाग ब्लाँक के खड़खूना में ग्रामीण महिलाएं पिरूल से राखी (rakhi with pirul)बनाना सीख रही हैं.

rakhi with pirul
पिरूल की डिजायनदार राखी

यह राखियांं rakhi with pirul इकोफ्रेंडली है इसमें चीड़ का छिलका यानि बगेट और कोन यानि ठीटा भी उपयोग में लाया जा रहा है. सजावट में इस्तेमाल होने वाला गत्ता भी पिरूल की लुगदी से बने कागज की इस्तेमाल हो रहा है. रंगीन तागा या कलावा, एक कैंची, चिपकाने के लिए गम और अन्य सजावटी चीजों का प्रयोग आप कर सकते हैं.

rakhi with pirul
तैयार राखियां

इस कार्य को जीबी पंत पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिकों की देखरेख में खड़खूना सहित चयनित पांच गांवों के कलस्टर में किया जा रहा है.प्रशिक्षण ले चुके ट्रेनर अब गांव की महिलाओं को इसे सिखाएंगी.

rakhi with pirul

इरादा यही है कि महिलाएं इसे सीखकर अपने घर के उपयोग के लिए राखियां बनाएं और चाहे तो स्थानीय बाजार में इस इकोफ्रेंडली और अपेक्षा कृत सस्ती राखी rakhi with pirulको बेचकर कुछ आमदनी भी कर ले.

rakhi with pirul

पिरूल यानि चीड़ के पत्तों को जंगलों के लिए दुश्मन माना जाता है. पिरुल की वजह से हर साल करोडों की वन संपदा हर साल आग से स्वाहा हो जाती है.

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अब अल्मोड़ा में जीबी पंत पर्यावरण संस्थान की मदद से इसी पिरुल से इस बार आकर्षक राखियों rakhi with pirul का निर्माण किया जा रहा है. राखी बनाने में पिरूल के साथ ही चीड़ की छाल और कोन जिसे ठीठा कहते है उसे भी राखी में सजावट के रूप में उपयोग किया जा रहा है.

यह राखियां rakhi with pirul जो ईकों फ्रेडली भी हैं इनका सारा कच्चा माल स्थानीय स्तर पर ही मिल जाता है.
इसके लिए जीबी पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान महिलाओं को प्रशिक्षण दे रहा है. हवालबाग ब्लाक के दर्जनों गांवों में महिलाओं को संस्थान राखी बनाने के प्रशिक्षण दे रहा है.जिससे महिलायें चीड़ के पत्तों,छाल और कोन से राखी के साथ ही घर का सजावटी सामान भी बनाएंगी.

जीबी पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिक सतीश चन्द्र आर्या का कहना है कि महिलाओं को चीड़ से घर के सजावटी सामान के साथ ही राखी बनाने के प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. जिससे महिलायें आत्मनिर्भर बनेंगी. उन्होंने कहा कि रक्षाबंधन में राखी rakhi with pirul के लिए चीड़ के पत्ते (पिरूल),छाल (बगेट)और कोन(ठीटा) का इस्तेमाल किया जा रहा है.

स्थानीय निवासी व प्रशिक्षक दीप्ती भोजक का कहना है कि यह राखियां rakhi with pirul ईको फ्रेंडली हैं. इनको बनाने का प्रशिक्षण पूरा हो चुका है.

अब वह अपने साथ ही गांव वालों को भी राखी rakhi with pirul बनाने का प्रशिक्षण देंगे जिससे महिलायें बाजार से राखी खरीदने की बजाय जरूरत के अनुसार खुद राखियां बनाए . कहा कि इसके साथ ही गांव के महिलाओं को घर के सजावटी सामान को बनाने के भी प्रशिक्षण दिया जायेगा.

अन्य ट्रेनर दीपा का कहना है कि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के पहल के साथ ही जंगलो में आग का कारण बनने वाले पिरूल के निस्तारण की राह मिले और महिलाएं स्थानीस स्तर पर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़े यह इस प्रशिक्षण का मुख्य लक्ष्य है. उन्होंने कहा कि हैंडीक्राफ्ट और इकोफ्रेंडली राखी को लोग जरूर पसंद करेंगें और कोरोना काल में जब लोग घरों से कम ही निकल रहे है तब स्थानीय महिलाओं द्वारा तैयार राखियों rakhi with pirul को लोग जरूर खरीदेंगे.

इस तरह बनाएं पिरूल से राखी rakhi with pirul

पिरूल- राखी बनाने के लिए हरा पिरूल जो बार्डर और डोरी का भी का करेगा, इससे पिरोकर कोई भी आकार दिया जा सकता है. चीड़ का बगेट और ठीटा का उपयोग सजावट के लिए करें. ठीटे की हर पंखुरी को जरूरत के,अनुसार तोड़ कर सजावट के रूप में प्रयोग करें.


कलावा डोरी व गत्ता- कलावा डोरी राखियों की डोर को मजबूत बनाने के काम में आती हैं इसमें सजावटी चीजों को भी पिरो़या जा सकता है. गत्ता घर में सामान के साथ आने वाले कागज का इस्तेमाल भी किया जा सकता है .

गम या अडेसिव- गोंद या गम डिजायन को पूरा स्वरूप देने व सजावटी वस्तुओं को चिपकाने का काम आता है. अच्छी सफाई या कार्य में तेजी के लिए बिजली से चलने वाली गम गन का उपयोग भी किया जा सकता है.

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