एचआरडी मिनिस्टर निशंक के विवादित बयान पर पढिए, इंद्रेश मैखुरी का सटीक आलेख।

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इंद्रेश मैखुरी।

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बयानों के जरिये सुर्खी बटोरने वाले केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने अब बयान का गोला बी.एड करने वालों पर दाग दिया है. कुछ लोग सोच कर बोलते हैं,कुछ लोग बोलने के बाद सोचते हैं और जब आदमी सत्ता में हो तो वह न बोलने से पहले सोचता है, न बोलने के बाद. शायद इसी रास्ते पर केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री भी हैं. वे कहाँ बोल रहे हैं,क्या बोल रहे हैं,क्यूँ बोल रहे हैं,इससे उनका ज्यादा सरोकार नहीं लगता. चूंकि बोलना है,इसलिए बोल देते हैं. इसके निहितार्थ क्या हैं,ये गौर करने की जहमत नहीं उठाते.
वे कह रहे हैं कि जिनको नौकरी नहीं मिलती वे बी.एड कर लेते हैं. उन्होंने कहा कि प्रतिवर्ष 19 लाख लोग बी.एड करते हैं,लेकिन 3.30 लाख लोग अध्यापक बनते हैं. फर्ज कीजिये कि मंत्री जी सही कह रहे हैं. तो प्रश्न यह है कि बेरोजगार युवाओं को योग्यता अनुसार रोजगार उपलब्ध करवाने का जिम्मा किसका है ? अगर युवाओं के पास रोजगार नहीं है तो इसके लिए किसी केन्द्रीय मंत्री को बेरोजगारों पर तंज़ कसना चाहिए या अपनी सरकार की नीतियों की समीक्षा करनी चाहिए कि आखिर ऐसा क्यूँ हो रहा है कि प्रचंड बहुमत के साथ दूसरे कार्यकाल में पहुंची सरकार के काल में भी युवा रोजगार से वंचित है ?बेरोजगारी की दर पिछले 45 सालों में सबसे उच्चतम स्तर पर पहुँच गयी है तो मंत्री जी, यह बेरोजगारों की नहीं सरकार की नाकामी है.
दूसरी बात यह कि युवा बी.एड कर रहे हैं. मंत्री जी ने बी.एड करने पर तंज़ ऐसे कसा जैसे कि यह कोई निकृष्ट कोटि का काम हो. यदि युवा यह सोचता है कि बी.एड करके वह शिक्षक का रोजगार पा सकता है तो ऐसा सोचना गलत कैसे है? जो युवा बी.एड की डिग्री हासिल कर रहे हैं,क्या ये डिग्री वे अपने घर पर बना रहे हैं?सरकार द्वारा चलाये जाने वाले मान्यता प्राप्त संस्थानों से ही वे डिग्री हासिल कर रहे हैं.किसी भी कोर्स के लिए सीटों का निर्धारण भी तो नीतिगत मसला है. यदि जितनी सीटें बी.एड विभागों/कॉलेजों में हैं,उतने ही युवा बी.एड कर रहे हैं तो वे ऐसा करने के लिए उपहास के पात्र कैसे हुए ?
मंत्री जी ने अपने बयान में कहा कि कुछ लोगों ने शिक्षा को दुकान बना दिया है. यह बात एकदम वाजिब है. लेकिन मंत्री जी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि कौन लोग हैं,जिन्होंने ऐसा किया है. कम से कम जिन बी.एड करने वाले छात्रों पर वे तंज़ कस रहे हैं,उन्होंने तो ऐसा नहीं किया है. वे तो शिक्षा के इन दुकाननुमा कॉलेजों से लुटने वाले ग्राहक हैं. मंत्री जी,जिस उत्तराखंड से संसद में पहुंचे हैं,उसी उत्तराखंड में उनकी पार्टी के एक पूर्व विधानसभा अध्यक्ष के बेटे ऐसी ही दुकान के संचालक हैं,एक महामहिम के भतीजे की भी शिक्षा की ऐसी दुकान है. स्वयं मंत्री जी को स्पष्ट घोषणा करना चाहिए कि शिक्षा या डिग्री बेचने की ऐसी किसी दुकान से उनका दूर-दूर तक का कोई संबंध न अभी है,न आगे होगा !
मंत्री जी कहते हैं कि शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए बी.एड का कोर्स चार साल का किया जा रहा है. जो आजतक चार साल के कोर्स के बिना बी.एड करते रहे क्या वे सब गुणवत्ता हीन हैं ? क्या कोर्स की अवधि बढ़ाना गुणवत्ता के सुधार की गारंटी है? मंत्री जी, कोर्स की अवधि इसलिए नहीं बढ़ाई जाती कि गुणवत्ता सुधार करना है बल्कि रोजगार देने में नाकाम सरकार,कोशिश करती है कि कोर्स की अवधि बढ़ा कर रोजगार मांगने वालों को कुछ और समय,डिग्री हासिल करने के चक्र में ही उलझा कर रखा जाये.
एक और बात मंत्री जी ने कही कि शिक्षक बनने के लिए ऐसे मानदंड बनाए जाएँगे जो आई.ए.एस बनने से भी कठिन होंगे. बिलकुल कड़े मानदंड बनाइये. पर यह भी बताइये कि कड़े मानदंड से बने शिक्षकों से सरकार वोट गणना,मनुष्य गणना,पशु गणना जैसे तमाम शिक्षणेत्तर काम लेना जारी रखेगी या उसके मानदंड में भी कुछ बदलाव होगा ? और हाँ,जिस आई.ए.एस के कड़े मानदंड का हवाला आप दे रहे हैं,उसमें निकलने वाले भी इसी देश के युवा हैं. अलबत्ता उस आई.ए. एस. में बैकडोर एंट्री का प्रावधान आप ही की सरकार ने कर दिया है.आप के ही राज में यह हो गया है कि बिना आई.ए.एस की कठिन परीक्षा पास किए ही लेटरल एंट्री के जरिये सीधे केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव बना जा सकता है. तो मंत्री महोदय,जहां मानदंड कड़े थे,वहाँ तो सब ढीले किए जा चुके हैं. तो यह बी.एड करने वालों से ऐसी खुन्नस क्यूँ ?
अंतिम बात यह कि बी.एड करने वालों पर तंज़ कसने वाले मंत्री जी,अपनी धारा के स्कूलों में आचार्य और प्रधानाचार्य भी रह चुके हैं. लेकिन लोकसभा चुनाव के शपथ पत्र में उनके द्वारा घोषित अपनी शैक्षणिक योग्यता के अनुसार उनके पास बी.एड की कोई डिग्री नहीं है. बिना बी.एड की डिग्री के आचार्य और प्रधानाचार्य होने वाला व्यक्ति किस मुंह से बी.एड की डिग्री हासिल करने वालों का उपहास उड़ाता है ? मंत्री जी, डिग्रियों के मामले में तो यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि जिनके घर शीशे के होते हैं,वे दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते !

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इस लेख के लेखक इंद्रेश मैखुरी, गढवाल विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष रहे हैं। कई जनांदोलनों में उन्होंने सक्रिय भागीदारी निभाते हुए उनका नेतृत्व किया है। इंद्रेश मैखुरी उत्तराखंड राज्य का चिरपरिचित नाम एवं व्यक्तित्व है।
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