शौर्य के 21 साल: करगिल युद्ध(Kargil war) में अल्मोड़ा के 7 जांबाज हुए देश के लिए कुर्बान

उत्तरा न्यूज डेस्क
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21 years of Shaurya: 7 sacrifices of Almora sacrificed for the country in Kargil war

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अल्मोड़ा, 25 जुलाई 2020-
26 जुलाई 1999, यह दिन देश के लिए एक यादगार दिन है. इसी दिन भारत के वीर सैनिकों ने पाकिस्तान की सेना को परास्त कर करगिल (Kargil war)पर फतेह पाई थी.अल्मोड़ा के रणबांकुरों ने भी इस युद्ध में अपनी वीरता के झंडे गाड़े थे. इस लड़ाई में जिले के 7 जवानों ने अपने नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित करवाये.

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सन 1999 में भारत—पाक के बीच हुए इस भीषण युद्ध में भारत ने विजय हासिल की थी. वीर शपूतों के शौर्य व अदम्य साहस को याद करने के लिए प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को करगिल (Kargil war)विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.
इस दिन जहां एक ओर शहीद वीर सैनिकों को श्रद्धाजंलि अर्पित करते लोगों की आंखें नम हो जाती है वही, इन वीर सपूतों की दास्तां व इनकी शौर्य गाथाओं को सुन लोगों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है.
 
उत्तराखंड जिसे देवभूमि के साथ ही वीरों की भूमि भी कहा जाता है. बात जब मातृभूमि की रक्षा की हो तो यहां के रणबांकुरे अपनी जान देने से पीछे नहीं हटते. 21 साल पहले हुए करिगल युद्ध (Kargil war)में अल्मोड़ा के जांबाजो ने पाकिस्तान की ओर से भारत में घुसे घुसपैठियों व पाक सैनिकों से जमकर लोहा लिया. मातृभूमि की रक्षा करते हुए इस युद्ध में अल्मोड़ा के 7 सैनिकों ने अपने प्राण न्योछावर किए. वीर सपूतों के साहस व उनकी वीरता को देखते हुए जनपद के दो सैनिकों को मरणोपरांत सेना मेडल से नवाजा गया.

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फोटो— नायक, हरी बहादुर द्यले, सेना मेडल
करीब 2 माह तक हुए करगिल युद्ध में 2 नागा रेजीमेंट के नायक, हरी बहादुर द्यले पाकिस्तानों सैनिकों से लोहा लेते शहीद हो गए थे. उनकी वीरता  व साहस को देखते हुए भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत उन्हें सेना मेडल से नवाजा गया. हरी बहादुर द्यले का परिवार यहां नगर के दुगालखोला में रहता है.

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फोटो— हवालदार, तम बहादुर क्षेत्री, सेना मेडल
करगिल युद्ध (Kargil war)में जनपद के चिनियानौला निवासी हवालदार, तम बहादुर क्षेत्री भी देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे. वह 1 नागा रेजीमेंट से थे. उनकी वीरता के लिए भारत सरकार द्वारा उन्हें मरणोपरांत सेना मेडल से नवाजा गया. शहीद तम बहादुर की पत्नी मीरा देवी हाल में दिल्ली में रहती है.

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फोटो— लांस नायक, हरीश सिंह देवड़ी
जिले के ग्राम देवड़ा, बाड़ेछीना निवासी लांस नायक, हरीश सिंह देवड़ी करगिल युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे. शहीद देवड़ी 17 गढ़वाल रेजीमेंट से थे. उनकी पत्नी सावित्री व 2 बेटे वर्तमान में यहां सरकार की आली में रहते है. सावित्री देवी ने बताया कि जिस वक्त उनके पति शहीद हुए थे उनका बड़ा बेटा 11 तो छोटा बेटा 6 वर्ष का था.

भले ही करगिल युद्ध सेना के तत्कालीन उच्चाधिकारियों के नेतृत्व में लड़ा गया हो, लेकिन सैन्य इतिहास के अनुसार इस युद्ध में नौजवान सैनिकों ने काफी अहम भूमिका निभाई थी. अल्मोड़ा के लाल कैप्टन, आदित्य मिश्रा ने भी भारत माता की रक्षा के लिए इस युद्ध में अपना बलिदान दिया. आदित्य मिश्रा काफी कम उम्र में देश रक्षा के लिए शहीद हो गए थे वह अविवाहित थे. उनका परिवार उस समय यहां पातालदेवी मिश्रा भवन में निवास करता था. हाल में उनकी माता बीना मिश्रा अपने परिजनों के साथ लखनउ, उत्तर प्रदेश रहती है.

इस युद्ध में ग्राम रेखौली, बिलौना निवासी हवालदार, हरी सिंह थापा वीरगति को प्राप्त हुए थे. वह 54 इंजीनियर रेजीमेंट से थे. इसके अलावा 10 पैरा रेजीमेंट के पैराटुपर, राम सिंह बोरा भी कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे.वह भगरतोला, ड्योनाई के रहने वाले थे. (ये दोनों शहीद सैनिकों का तत्कालीन जिला अल्मोड़ा व वर्तमान में बागेश्वर है)

पति के शहादत के वक्त गर्भ में पल रहा था बेटाKargil war


अल्मोड़ा तहसील के खड़ाऊ गांव निवासी मोहन सिंह बिष्ट भी करगिल युद्ध (Kargil war)में शहीद हो गए थे. जब मोहन सिंह युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों से लोहा ले रहे थे तो उस वक्त उनका बेटा उनकी पत्नी विमला देवी की गर्भ में पल रहा था. लेकिन मोहन सिंह बेटे के दुनिया में आने से पहले ही मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हो गए. शहीद बेटे की स्मृति में उनकी माता स्व. देबुली देवी ने गांव में मंदिर बनवाया और उनकी प्रतिमा लगाई. शहीद मोहन सिंह की दो बेटियां व एक बेटा है. उनकी पत्नी विमला देवी अपने बच्चों के साथ वर्तमान में दिल्ली में रहती है.

सशस्त्र संघर्ष का नाम है करगिल(Kargil war)


भारत-पाक के बीच मई व जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के करगिल जिले में हुए युद्ध में भारत ने विजय हासिल की थी. यह लड़ाई तत्कानी जनरल वीपी मलिक के नेतृत्व में लड़ी गई थी. पाक सैनिकों व घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए थल, जल व वायु सेना की ओर से ऑपरेशन विजय, ऑपरेशन सफेद सागर व ऑपरेशन तलवार चलाया गया. इस युद्ध में भारत ने 527 से ज्यादा वीर योद्धाओं को खोया था. जबकि 1300 से ज्यादा घायल हुए थे. भारतीय सेना के जवानों ने अदम्य वीरता और रणकौशल का परिचय देते हुए पाकिस्तानी सेना को धूल चटाई. इस जीत की चर्चा आज भी पूरे विश्व में होती है. 

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