हिमालय की जैव विविधता (Himalayan Biodiversity) वैश्विक निधि, इनका संरक्षण जरूरी, एनएमएचएस की कार्यशाला में वैज्ञानिकों ने रखी राय

Newsdesk Uttranews
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Himalayan Biodiversity Global Fund, their conservation is imperative, scientists gave opinion in NMHS workshop

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अल्मोड़ा, 04 नवंबर 2020- राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन तहत संचालित परियोजनाओं के मूल्यांकन में राष्ट्रीय स्तर पर दूसरे दिन 15 शोध परियोजनाओं का मूल्यांकन किया गया।(Himalayan Biodiversity)

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चौथी मूल्यांकन कार्यशाला के तहत गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी से आनलाईन विषय विशेषज्ञों ने इसका मूल्यांकन किया।


भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के पूर्व निदेशक प्रो. जे.एस. रावत की अध्यक्षता में विषय विशेषज्ञों ने परियोजना प्रमुखों से निर्धारित समय में शोध अनुसंधान कार्य को पूरा करने को कहा।
राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन नोडल अधिकारी ई. किरीट कुमार ने कहा कि हिमालयी राज्यों की जैवविविधता (Himalayan Biodiversity)
के संरक्षण और यहां कौशल विकास तथा क्षमता निर्माण की दिशा में मिशन के तहत अनेक परियोजनाएं उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही है।


भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के सम्मानित डा. डीसी उप्रेती, इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय से प्रो. जेएस गर्ग, वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ एसके नंदी, डब्लू डब्लू एफ इंडिया नई दिल्ली से डाॅ. दिवाकर शर्मा , गुरूकुल कांगड़ी से प्रो. प्रकाश चंद्र, व प्रो. गोपाल एस रावत ने परियोजनाओं का मूल्यांकन किया और आवश्यक सुझाव दिए।

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इस अवसर पर केंद्रीय विश्वविद्यालय पंजाब से प्रो. आरके कोहली, सीएसआईआर एनईआईएसटी जोराहटअसम से डाॅ एचपीडे काबऊराह, सैकोन तमिलनाडू से डाॅ पीवी करूणाकरण, जूलाॅजिकल सर्वे आफ इण्डिया से डाॅ ललित कुमार शर्मा, असम कृषि विश्वविद्यालय से डाॅ राजदीप दत्ता , सिक्किम विश्वविद्यालय से डाॅ भोज के आचार्य, भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून से डाॅ वीपी उनियाल, जूलाॅजिकल सर्वे आफ इण्डिया से डाॅ नवनीत सिंह, बाॅटनीकल सर्वे आफ इण्डिया से डाॅ एए माओ, नागालैण्ड विश्वविद्यालय से प्रो. सीआर देव, पर्यावण संस्थान से डाॅ आईडी भटट, सिक्किम विश्वविद्यालय से डाॅ लक्ष्युमन शर्मा, एलआरईडीए लेह लद्दाख से पंकज रैना, जीजीएस आईपी नई दिल्ली से डाॅ तुसेम सीमराह, वाईएस परमार विश्वविद्यालय हिमांचल प्रदेश से डाॅ नवेदिता शर्मा आदि ने अपनी शोध परियोजनाओं की प्रगति प्रस्तुत की। (Himalayan Biodiversity)

विषय विशेषज्ञों ने परियोजना अनुसंधान कार्यों पर परियोजनावार टिप्पणी देते हुए कहा कि हिमालयी राज्यों में वाह्य आक्रामक पौध प्रजातियों के उन्मलून और प्रबंधन तथा पारिस्थितिकीय प्रभावों के अध्ययन, असम में संरक्षित वनों के पारिस्थितिकीय व कार्बन धारण क्षमता पर अध्ययन , मेघालय में सामुदायिक संरक्षित वन क्षेत्रों महत्व पर अध्ययन, वनाग्नि का उत्तरपूर्व के राज्यों में वनों व जीवों पर पड़ने वाले प्रभावों पर जो शोध कार्य संचालित किए जा रहे हैं उनके ठोस परिणामों को सामने लाना जरूरी है।

उन्होंने कहा कि नवीन पद्धतियों, उपागमों और आयामों से इन अनुसंधान कार्यों को समय पर पूरा करना अनिवार्य है। अरूणांचल प्रदेश में नदी पारिस्थितिकी और जलीय जीवन पर चल रहे अध्ययन, दार्जलिगं क्षेत्र में पर्वतीय जैवविविधता (Himalayan Biodiversity) सूचना तंत्र के विकास हेतु किए जा रहे कार्यों, जलवायु परिवर्तन के दौर में परागणों और कीटों के संरक्षण, हिमालय क्षेत्र में संकटग्रस्त पौधों के संरक्षण की दिशा में चल रहे अनुसंधान कार्यों की उन्होंने सराहना की और आवश्यक सुझाव दिए।

नागालैण्ड में स्थानीय केले के संरक्षण, पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में संकटग्रस्त पौध प्रजातियों के संरक्षण तथा सिक्किम में स्थानीय फसलों के संरक्षण की दिशा में चले रही शोध कार्यों का भी विषय विशेषज्ञों ने मूल्यांकन किया।(Himalayan Biodiversity)

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जलवायू परिवर्तन के हिमालयी उच्च क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रभावों, भारतीय क्षेत्रों में सतत परम्पराग प्रबंधन पद्धतियों के प्रोत्साहन व आजीविका विकल्पों की तलाश तथा चीड़ पत्ती से जैव ईंधन बनाने की दिशा में चल रही परियोजनाओं को विशेषज्ञों द्वारा आवश्यक सुझाव दिए गए। विशेषज्ञों ने कहा कि युवा वैज्ञानिकों को इन अनुसंधान कार्यों को सामाजिक वृहद उत्तरदायित्वों के साथ पूरा करना चाहिए।
(Himalayan Biodiversity)

उन्होंने कहा कि शोध उपलब्धियां हिमालयी राज्यों ही नहीं अपितु सम्पूर्ण देश व महाद्वीय के समाज व पर्यावरण के लाभप्रद हो यह प्रयास किए जाने चाहिए। संस्थान से डाॅ ललित गिरी, पुनीत सिराड़ी, अशीष जोशी, अरविंद कुमार, योगेश परिहार, जगदीश चन्द्र आदि ने सहयोग दिया|

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